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    तीन रास्तों से आते 'विदेशी मेहमान', इंसानों से बेहतर इनकी स्मरण शक्ति, भोजन की आदत जानकर हो जाएंगे हैरान

    Siberian Birds News धनबाद बड्र्स संस्था के संस्थापक एवं बर्ड वाचर पक्षी विशेषज्ञ एके सहाय कहते हैं कि साइबेरिया में इन दिनों तापमान माइनस में है। ऐसे में इन पक्षियों के समक्ष भोजन का संकट हो जाता है। भारत में सर्दियों में भी इनके लिए पर्याप्त भोजन है।

    By MritunjayEdited By: Updated: Thu, 06 Jan 2022 08:08 AM (IST)
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    नदी में साइबेरियन पक्षियों का हुजूम ( फाइल फोटो)।

    आशीष सिंह, धनबाद। Siberian Birds News हर साल साइबेरिया से परिंदे झारखंड आते हैं, धनबाद भी। इन पक्षियों की खासियत ये है कि इनकी स्मरण शक्ति मानव से दस गुना अधिक होती है। उसी की बदौलत वे चार हजार किमी का सफर बिना भूले व भटके तय कर लेते हैं। इस साल भी साइबेरियन पक्षियों की टीम धनबाद की तोपचांची झील और मैथन डैम पहुंच गई है। इनका कलरव गंूजने लगा है। इनके दीदार से सैलानियों के मन को सुकून मिल रहा है। मैथन डैम में 120 और तोपचांची झील में 81 साइबेरियन पक्षी आए हैं।

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    तीन अलग-अलग रास्तों से आते धनबाद

    दरअसल, ये पक्षी तीन अलग अलग रास्तों से होकर धनबाद आते हैं। एक रास्ता अफगानिस्तान, पाकिस्तान से गुजरात होते हुए धनबाद आता है। दूसरा हिमालय से चंडीगढ़ होते हुए धनबाद और तीसरा उत्तर पूर्व का रास्ता है। करीब चार हजार किमी की दूरी तय कर ये यहां पहुंचे हैं। इनमें कामन पोचार्ड, आरसीपी, रूडी शेल्डक, रू-शी, रू-शेल एवं गार्गेनी प्रजाति के पक्षी हैं।

    केवल दो बार करते हैं भोजन

    धनबाद बड्र्स संस्था के संस्थापक एवं बर्ड वाचर पक्षी विशेषज्ञ एके सहाय कहते हैं कि साइबेरिया में इन दिनों तापमान माइनस में है। ऐसे में इन पक्षियों के समक्ष भोजन का संकट हो जाता है। भारत में सर्दियों में भी इनके लिए पर्याप्त भोजन है। ये साइबेरियन पक्षी दिन में दो बार ही भोजन करते हैं। सुबह का साढ़े आठ बजे तक व उसके बाद शाम पांच से छह बजे के बीच। अमूमन पानी के अंदर मिलने वाले जलीय पौधे इनका भोजन हैं। ये पक्षी शाकाहारी हैं। जनवरी के अंत तक तोपचांची और मैथन में रहेंगे।

    साइबेरिया से निकलने से पहले करते हैं भरपेट भोजन

    बकौल सहाय, अपना घर छोड़कर यहां आने से पहले ये परिंदे दो-तीन महीने तक खूब भोजन करते हैं। ताकि अतिरिक्त ऊर्जा संचय कर लें। इसी के सहारे ये हजारों किमी की दूरी तय करते हैं। ये हर दिन औसतन 40 किमी की उड़ान भरते हैं। ये रास्ता नहीं भटकते। इनकी मस्तिष्क की तंत्रिकाएं मनुष्य की तुलना में अधिक सक्रिय और सटीक होती हैं। केवल भोजन के लिए हजारों किमी की दूरी तय कर ये यहां आते हैं। ये पक्षी शाकाहारी हैं, मांसाहारी नहीं। तोपचांची झील और मैथन डैम में पौष्टिकता से भरपूर जलीय पौधे हैं।

    मैथन व तोपचांची में हर वर्ष घट रही इनकी संख्या

    एके सहाय कहते हैं कि पांच वर्ष में हम देख रहे हैं कि हर वर्ष इनकी संख्या में कमी आ रही है। इसका कारण रास्ते में लोगों द्वारा इनका शिकार करना है। उसके अलावा ये भी संभव है कि इन्होंने झारखंड में कोई दूसरा आसरा भी तलाश लिया हो। इनका अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बहुत शिकार हो रहा है।