आईआईटी-आईएसएम पहुंचे शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती, छात्रों को बताएंगे वैदिक गणित का महत्व
धनबाद के आईआईटी-आईएसएम में गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती पहुंचे जहां दुर्गापूजा की कलश स्थापना हुई। दो दिवसीय कार्यक्रम में छात्रों और प्रोफेसरों ने उनका भव्य स्वागत किया। शंकराचार्य जिज्ञासा कार्यक्रम को संबोधित करेंगे और वैदिक ज्योतिष पर व्याख्यान देंगे। उन्होंने सनातन धर्म सामाजिक मूल्यों और गुरुकुल परंपरा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने राजनीति के उद्देश्य और समाज को सकारात्मक दिशा देने की बात कही।

जागरण संवाददाता, धनबाद। आईआईटी-आईएसएम में पुरी स्थित गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती सोमवार को पहुंचे। इस दौरान शंकराचार्य की मौजूदगी में दुर्गापूजा की कलश स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ कराई गई।
दो दिवसीय कार्यक्रम में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज पहुंचे हैं। इस दौरान आईआईटी-आईएसएम दुर्गापूजा कमेटी ने शंकराचार्य का भव्य स्वागत किया गया।
इस दौरान शंकराचार्य को देखने एवं सुनने के लिए छात्रों व समेत संस्थान के प्रोफेसर व अन्य लोगों की भारी भीड़ हुई। मंगलवार को शंकराचार्य जिज्ञासा कार्यक्रम में संबोधित करेंगे।
वहीं, शाम को पेनमेन सभागार में वैदिक ज्योतिष पर व्याख्यान देंगे। शंकराचार्य सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और सामाजिक मूल्यों के महत्व पर अपना विचार रखेंगे। आईएसएम के छात्रों को गुरुकुल परंपरा के महत्व से भी रूबरू कराएंगे।
शंकराचार्य का मानना है कि आज के समय में यह शिक्षा व्यवस्था लगभग समाप्त हो चुकी है। राजनीति का उद्देश्य होना चाहिए। सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, समृद्ध, सेवाभावी, स्वस्थ और समाजोपयोगी नागरिक एवं समाज के निर्माण को शामिल रखना चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि राजनीति के नाम पर उन्माद फैलाना उचित नहीं है, बल्कि समाज को सकारात्मक दिशा देना ही उसका असली कार्य होना चाहिए।
महाराज से मिलने आते हैं वैज्ञानिक
बताते चलें कि वैज्ञानिक शंकराचार्य महाराज से मिलने आते हैं। इसरो के अहमदाबाद सेंटर में शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी वैदिक गणित के महत्व पर व्याख्यान भी दे चुके हैं।
ऐसा माना जाता है कि पुरी गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के लांच से पहले जुलाई महीने में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से परामर्श लिया था। ऐसा कुछ संदेहों को दूर करने के लिए किया गया था जिसका समाधान उस समय वैज्ञानिकों के पास भी नहीं था।
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