आनंद मार्ग के संभागीय सेमिनार का आयोजन, कहा- ब्रह्म ही एकमात्र परम सत्य, जगत उन्हीं की मानस परिकल्पना
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित त्रिदिवसीय द्वितीय संभागीय सेमिनार के तीसरे दिन वरिष्ठ आचार्य नवरुणानंद अवधूत ने सृष्टि के मूल कारण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रागैतिहासिक युग से अभी तक मानव मन में सृष्टि के मूल कारण को जानने की जिज्ञासा बनी हुई है।

जागरण संवाददाता, धनबाद: आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित त्रिदिवसीय द्वितीय संभागीय सेमिनार के तीसरे दिन आनंद मार्ग के वरिष्ठ आचार्य नवरुणानंद अवधूत ने सृष्टि के मूल कारण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रागैतिहासिक युग से अभी तक मानव मन में सृष्टि के मूल कारण को जानने की जिज्ञासा बनी हुई है। इसका उत्तर जानने के लिए प्राचीन काल के ॠषियों, ब्रद्मविदों के पास जाकर अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए प्रश्न पूछते थे- ब्रद्म क्या है। हमारी उत्पत्ति का मूल कारण क्या है, मूल आधार क्या है, हम क्यों सुख-दुख हर्ष, विषाद के माध्यम से जीवन का अनुभव करते हैं। उन्हीं प्रश्नों में एक प्रश्न यह भी है कि यह सृष्टि क्या है, इस सृष्टि का मूल कारण क्या है!
उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऋषि कहते हैं कि ब्रह्म ही एक मात्र परम सत्य है। जो शिवशक्त्यातमक है और यह जगत उन्हीं की मानस परिकल्पना से बनी है, जो आपेक्षिक सत्य है। ब्रह्म परम सत्य है। जगत में हम अनेक चीजों को पाते हैं- ऐसे काल, नेचर (स्वभाव), नियति (भाग्य), यदिच्छा (एक्सीडेंट), प्रपंच (पदार्थ) एवं जीवात्मा। इनमें से कोई जगत का मूल कारण हो सकता है, क्या काल जगत का मूल कारण है, ऋषि कहते हैं कि काल जगत का मूल कारण नहीं है, क्योंकि वह एक आपेक्षिक तत्व है। काल क्रिया की गतिशीलता के उपर मन की कल्पना मात्र है। वहां काल भी नहीं है। इसलिए काल, देश और पात्र पर निर्भरशील हैं। इसी तरह नेचर प्राकृत शाक्ति का धारा प्रवाह मात्र है। सृष्टि लीला का धारा प्रवाह है। नेचर के आधार पर ही प्राणियों के स्वभाव का निर्धारण होता है। जिसे विज्ञान या जड़ विज्ञान कहते हैं। नेचर सिर्फ सत, रज और तम तीन गुणों का मात्र प्रवाह है।
भाग्य कर्म के प्रति कर्म या संस्कार का फल भोग है। इसलिए यह विश्व का मूल कारण नहीं हो सकता। सृष्टि का मूल कारण प्रपंच पंचभूत समूह या पदार्थ है। ऋषि ने कहा प्रपंच ब्राह्मी चित्र का तमोगुण प्रभाव से स्थूलीकृत होने का परिणाम है। इसलिए सृष्टि का मूल कारण नहीं हो सकता। अब अंत में लोगों ने ऋषि से पूछा कि क्या जीवात्मा सृष्टि का मूल कारण है। ऋषि ने कहा जीवात्मा ज्ञातृ सत्ता हो सकती है, कर्म शक्ति नहीं है। ज्ञान क्रिया संभव है मगर सृष्टि क्रिया संभव नहीं है। केवल मन के प्रत्येक क्रियाकलाप का साक्षी मात्र है। मन द्वारा किए गए पुण्य कर्म या पाप कर्म द्वारा थोड़े समय के लिए उपहत हो जाता है। जीवात्मा न तो पापी है न पुण्यआत्मा है। इसलिए जीवात्मा परम तत्व नहीं हो सकता। इस कार्यक्रम में धनबाद के आनंदमार्गी बड़ी संख्या में शामिल हुए।

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