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    भारत के पहले इंजीनियर ने किया था जिस कृष्णा सागर डैम का निर्माण, उसे अब नया जीवन देंगे सिंफर के साइंटिस्‍ट्स

    By Deepak Kumar PandeyEdited By:
    Updated: Mon, 25 Jul 2022 11:58 AM (IST)

    साल 1932 में डैम बनाना आसान नहीं था क्योंकि उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था। बावजूद इसके देश के पहले इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने हार ...और पढ़ें

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    साल 1932 में बना कृष्णा राज सागर बांध।

    धनबाद [तापस बनर्जी]: साल 1932 में डैम बनाना आसान नहीं था, क्योंकि उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था। बावजूद इसके देश के पहले इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने हार नहीं मानी। उन्होंने सहयोगी इंजीनियरों के साथ मिलकर माेर्टार तैयार कर दिया, जो सीमेंट से कहीं ज्यादा मजबूत था।

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    मोर्टार एक पेस्ट है, जो पत्थरों, ईंटों और कंक्रीट चिनाई इकाइयों जैसे बिल्डिंग ब्लॉक्स को उनके बीच अनियमित अंतराल को भरने और सील करने के काम आता है। उनके वजन को समान रूप से फैलाता है और कभी-कभी दीवारों पर सजावटी रंग या पैटर्न जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे आम तौर पर पानी के साथ चूना, रेत वगैरह से बनाया जाता है।

    उसी मोर्टार से कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण किया। कर्नाटक के मैसूर में उस समय बना बांध एशिया का सबसे बड़ा बांध था, जिसके चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया थे। 90 साल पुरानी इस धरोहर को अवैध खनन और उत्खनन से खतरा पैदा हो गया है। उस खतरे को कम करने के लिए अब धनबाद के केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के विज्ञानियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सिंफर विज्ञानियों ने स्थल निरीक्षण पहले ही कर लिया है। अब न सिर्फ अलग-अलग स्थानों पर कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग कराएंगे बल्कि सिस्मोग्राफ समेत दूसरे अत्याधुनिक उपकरणों के साथ ब्लास्टिंग की तीव्रता और जमीनी कंपन का भी अध्ययन करेंगे। सिंफर विज्ञानियों के के परीक्षण विस्फोट और उससे जुड़ी रिपोर्ट के आधार पर ही खनन गतिविधियों से संबंधित निर्णय लिए जाएंगे।

    [सिंफर के विज्ञानी डाॅ. सी सौम्लियाना और डाॅ. आदित्य राणा]

    कर्नाटक के दूसरे जलाशयों के आसपास खनन के नियम तैयार करने में भी मिलेगी मदद

    2621 मीटर लंबे और 39 मीटर ऊंचाई वाले कृष्णा सागर बांध के आसपास ब्लास्टिंग और डीप अर्थ माइनिंग गतिविधियों को लेकर विवाद चल रहा है। खनन गतिविधियों से राजा वाडियार के काल के डैम को खतरा उत्पन्न होने की बात कही जा रही है। यह भी दबाव बनाया जा रहा है कि डैम के खतरे के मद्देनजर उसके 20 किमी परिधि में खनन गतिविधियों को पूरी तरह रोक दी जाए। ब्लास्टिंग के परीक्षण का भी विरोध हो रहा है। इसके मद्देनजर ही सिंफर विज्ञानियों से मदद ली जा रही है। ब्लास्टिंग के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 10 अलग-अलग जगहों पर परीक्षण ब्लास्ट की तैयारी की गई है। परीक्षण ब्लास्ट के साथ अवैध पत्थर और ग्रेनाइट खनन गतिविधि और बांध के लिए इसके खतरे पर विवाद सुलझने की संभावना है। परीक्षण ब्लास्टिंग हो जाने के बाद सिंफर को रिपोर्ट और निष्कर्ष प्रशासन को भेजने में तीन महीने से अधिक का समय लगेगा। यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण होगी क्योंकि यह बांध के आसपास सभी खनन और उत्खनन गतिविधियों के लिए बेंचमार्क होगी। रिपोर्ट नीति निर्माताओं को अन्य जलाशयों के आसपास खनन के नियम तैयार करने में भी मदद करेगी।

    टीम में ये हैं शामिल

    डाॅ. आदित्य राणा, प्रोजेक्ट लीडर, सिंफर के ब्लास्टिंग विभाग के वरिष्ठ विज्ञानी डाॅ. सी सौम्लियाना, टेक्निकल आफिसर अमर प्रकाश कौशिक और टेक्निकल असिस्टेंट सैकत बनर्जी।