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दो सौ वर्ष पुराना है झरिया पोद्दारपाड़ा का रक्षा काली धाम

दो सौ वर्ष पुराना है झरिया पोद्दारपाड़ा का रक्षा काली मंदिर धाम

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 May 2022 05:57 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 05:57 PM (IST)
दो सौ वर्ष पुराना है झरिया पोद्दारपाड़ा का रक्षा काली धाम
दो सौ वर्ष पुराना है झरिया पोद्दारपाड़ा का रक्षा काली धाम

दो सौ वर्ष पुराना है झरिया पोद्दारपाड़ा का रक्षा काली धाम

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सुमित राज अरोड़ा, झरिया: झरिया पोद्दारपाड़ा स्थित रक्षा काली मंदिर में ज्येष्ठ माह के अमावस्या में 24 घंटे का अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। दिन भर उपवास रख शाम में सैकड़ों श्रद्धालु राजा तालाब में स्नान करते हैं। फिर भूमि पर दंडवत करते हुए पोद्दारपाड़ा स्थित रक्षा काली धाम पहुंचे हैं। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि को यह उत्सव धूमधाम के साथ रक्षा काली धाम में आयोजित होता है। जिसमें भाग लेने के लिए झरिया, धनबाद के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के भक्त झरिया पहुंचते हैं। पोद्दारपाड़ा स्थित रक्षा काली मां के प्रति लोगों की काफी आस्था है।

मंदिर में भव्य सजावट

मां रक्षा काली पूजा को ले मंदिर की भव्य सजावट धूमधाम के साथ की जाती है। सुबह से ही पूजा की तैयारी में समिति के सदस्य सक्रिय रहते हैं। रात में राजा तालाब में कलश स्थापना में गाजाबाजा के साथ पवित्र जल लाया जाता है। प्रतिमा निर्माण के बाद रक्षा काली की विवि विधा से पूजा होती है। मंगल आरती के बाद श्रद्धालुओं के बीच भोग वितरण किया जाता है।

दो सौ वर्षों से होती आ रही है पूजा

झरिया पोद्दारपाड़ा रक्षा काली मंदिर में मां काली की विशेष पूजा लगभग दो सौ वर्ष पुरानी है। कहते है कि राजा शिव प्रसाद सिंह के पूर्वजों ने रक्षा काली पूजा की शुरूआत की थी। जो लगातार जारी है। आयोजन की शुरुआत दिन ढलने के साथ शुरू होती है और दूसरे दिन सूर्योदय के पहले ही समाप्त हो जाती है। इस बारह घंटे के दौरान ही मां रक्षा काली की प्रतिमा का निर्माण कर उनकी विशेष पूजा होती है। रात भर मंदिर परिसर में मेला का माहौल रहता है। पूरी रात लोगों का आना जाना ला रहता है। रात के अंतिम प्रहर यानी सूर्योदय के पहले ही रक्षा काली की बनी प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।

अन्य राज्यों से भी आते है लोग

रक्षा काली पूजा समिति के सदस्यों की मानें तो इस पूजा में अन्य राज्य के भी भक्त आते है। पोद्दारपाड़ा, धीवर पाड़ा, मिश्रा पाड़ा, अमलापाड़ा का शायद ही कोई घर हो जहां उनके रिश्तेदार इस पूजा में शामिल होने नहीं पहुंचे हो। झारखंड के अलावा बिहार, बंगाल एवं छत्तीसगढ़ में बसे उनके रिश्तेदार पूजा में शामिल होने पहुंचते हैं।


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