नवरात्रि का आज तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा ने ही महिषासुर का वध कर बचाया था देवताओं को
इनके पूजन-ध्यान का समय सूर्योदय से पूर्व है। ऐसी मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से रोग से भी मुक्ति मिलती है। गौरतलब है कि इस समय पूरी दुनिय ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, धनबादः जिले में सोमवार को चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघटा की पूजा अर्चना की जा रही है। मान्यता है कि मां दुर्गा के इसी स्वरूप ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी। धनबाद में भुईफोड़ मंदिर के पुजारी अक्षय आचार्यजी के अनुसार, जो भक्त मां चंद्रघंटा की पूजा करते है, उनकी कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। साथ ही दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है।
मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र मौजूद है। यही कारण है कि मां के इस स्वरूप को चंद्रघंटा कहा जाता है।
मां की पूजा से मिलती रोगों से मुक्ति: ‘ऐं कारी सृष्टि रूपाया हृीं कारी प्रति पालिका-क्लींकारी काम रूपिण्ये बीजरूपे नमोस्तुते’ मंत्र से देवी के चंद्रघंटा स्वरूप के पूजन की जाती है। इनके पूजन-ध्यान का समय सूर्योदय से पूर्व है। ऐसी मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से रोग से भी मुक्ति मिलती है। गौरतलब है कि इस समय पूरी दुनिया पर कोरोना वायरस का प्रकोप है। ऐसे में मां के इस स्वरूप की महिमा और बढ़ जाती है।
दैत्यों का बढ़ने लगा था आतंक तो मां चंद्रघंटा ने लिया अवतार: बताया जाता है कि, मां दुर्गा ने चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था, जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। कहा जाता है कि महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल कर पूरे स्वर्ग लोक पर राज करना चाहता था। उसे रोकने के लिए सभी देवता एक साथ भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे। उस समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मुख से निकली ऊर्जा से देवी चंद्रघंटा अवतरित हुईं। उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।
चौथे दिन मां कूष्माण्डा अपनी हंसी से ब्रह्माण्ड को करती हैं उत्पन्न: पावन नवरात्र के चौथे दिन मंगलवार को श्रद्धालु मां कूष्माण्डा स्वरूप में मां दुर्गा की पूजा करेंगे। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन मां कूष्माण्डा की पूजा करने से व्यक्ति पर मां की कृपा-दृष्टि बनी रहती है।
मान्यता है कि जब इस सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कूष्माण्डा ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदि-स्वरूप हैं। बताया जाता कि मां कूष्माण्डा अपनी हंसी से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करती हैं। वह सूर्य मंडल के भीतर निवास करती हैं। मां के सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चंद्र तथा गदा है। मां कूष्माण्डा भक्तों की सदैव रक्षा करने वाली देवी हैं। जिले के शक्ति मंदिर, भुईफोड़ मंदिर, खड़ेश्वरी मंदिर के साथ-साथ घरों में मां के सानिध्य में उपवास करने वाले श्रद्धालुओं को देखकर पूरा वातावरण धार्मिक हो चुका है।

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