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    Rare earth Minerals: आत्मनिर्भर भारत का 'दुर्लभ' रास्ता, मोनाजाइट भंडार से बदल रही तस्वीर

    रेयर अर्थ मिनरल्स भारत की आत्मनिर्भरता का नया आधार बन रहे हैं जिसमें छह मिलियन टन मोनाजाइट भंडार महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के विशेषज्ञ इस क्षेत्र में शोध और खनन प्रक्रियाओं को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि स्वच्छ ऊर्जा रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों के लिए एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला बन सके।

    By ashish singh Edited By: Chandan Sharma Updated: Tue, 26 Aug 2025 03:30 PM (IST)
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    रेयर अर्थ मिनरल्स: भारत की नई आर्थिक शक्ति का आधार।

    जागरण संवाददाता, धनबाद। भारत अपने विशाल मोनाजाइट भंडार के साथ, रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। ये खनिज, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, और स्वच्छ ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए indispensible हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चीन के वर्तमान वैश्विक प्रभुत्व और आपूर्ति श्रृंखला में इसके नियंत्रण को देखते हुए, भारत का यह कदम न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

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    इस दिशा में भारत की प्रगति को समझने के लिए  जागरण ने आइआइटी (आइएसएम) धनबाद के डिप्टी डायरेक्टर प्रोफेसर धीरज कुमार से बातचीत की। प्रोफेसर कुमार, खनन और पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय शोध के लिए जाने जाते हैं। उनकी विशेषज्ञता और अंतर्दृष्टि ने इस विषय पर एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान किया है।

    क्यों है Rare Earth Minerals पर इतनी चर्चा?

    प्रोफेसर कुमार के अनुसार वैश्विक स्तर पर दुर्लभ खनिजों की बढ़ती मांग का मुख्य कारण स्वच्छ ऊर्जा technologies, जैसे electric vehicles (EVs), पवन टर्बाइन और सौर पैनलों का तेजी से विकास है। इन प्रौद्योगिकियों के लिए दुर्लभ खनिज essential components हैं। इसके अलावा आपूर्ति श्रृंखला पर चीन का 60% से अधिक वैश्विक उत्पादन और 85% प्रसंस्करण क्षमता का एकाधिकार इसे एक संवेदनशील मुद्दा बनाता है। इस एकाधिकार से निपटने के लिए भारत ने 2025 में नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (एनसीएम्एम) की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य इन खनिजों के खनन और प्रसंस्करण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।

    भारत में उपलब्धता और चुनौतियां

    भारत के पास रेयर अर्थ मिनरल्स (आरईएम) का बड़ा भंडार है, जिसमें झारखंड, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में मोनाजाइट-समृद्ध तटीय रेत शामिल हैं। अनुमानों के अनुसार भारत में लगभग छह मिलियन टन मोनाजाइट का भंडार है, जिसकी संभावित कीमत दसियों अरब अमेरिकी डॉलर में हो सकती है।

    हालांकि, खनन और प्रसंस्करण में कई चुनौतियां हैं, जिनमें inadequate downstream processing infrastructure, regulator restrictions, और पर्यावरणीय concerns शामिल हैं। प्रोफेसर कुमार का मानना ​​है कि चीन ने प्रसंस्करण और शोधन क्षमताओं में शुरुआती निवेश करके इस क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित किया है। भारत, IIT ISM जैसे अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से, इन समस्याओं का समाधान करने के लिए काम कर रहा है।

    एनसीएमएम और आईआईटी आईएसएम की भूमिका

    एनसीएमएम का मुख्य लक्ष्य महत्वपूर्ण खनिजों पर अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है, ताकि भारत अपनी आपूर्ति श्रृंखला को लचीला और आत्मनिर्भर बना सके। आईआईटी आईएसएम खनन और खनिज इंजीनियरिंग में दुनिया के शीर्ष 20 संस्थानों में से एक है, जो इस mission में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

    आईआईटी आईएसएम, भारत के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे आईआईटी बीएचयू, आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी गांधीनगरऔर अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों जैसे कैम्ब्रिज (यूके), कर्टिन (ऑस्ट्रेलिया) और यूएफआरजे (ब्राजील) के साथ मिलकर काम कर रहा है। यह सहयोग advanced processing technologies जैसे हाइड्रोमेटालर्जी, आरईई पृथक्करण और circular economy जैसे उभरते क्षेत्रों में शोध को बढ़ावा देगा।

    हम ऐसे होंगे कामयाब

    प्रोफेसर कुमार के अनुसार भारत इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। एनसीएमएम के तहत, Centre of Excellence (सीओई) और फंडिंग के प्रावधानों जैसे कदम पहले से ही परिणाम दिखा रहे हैं।

    वे अनुमान लगाते हैं कि अल्पकालिक रूप से (2-3 साल में) तकनीकी सत्यापन और नीतिगत ढांचे में प्रगति होगी, मध्यावधि (4-6 साल में) में बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण और निजी भागीदारी बढ़ेगी, और दीर्घकालिक (7-10 साल में) में भारत कुछ select critical minerals के क्षेत्र में रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करेगा।

    भारत का लक्ष्य सिर्फ आत्म-निर्भर होना नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण खनिज अनुसंधान और विकास में एक वैश्विक technological leader बनना भी है। यह एआई-संचालित खनिज संवेदन, शून्य-अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों, और ई-कचरे से बैटरी recycling जैसी तकनीकों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह पहल न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगी।

    आगे क्या करना होगा

    प्रोफेसर कुमार ने भविष्य की चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने deep technical translation (लैब-स्तरीय innovations को बड़े पैमाने पर लागू करना), ESG compliance, skilled manpower का विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने पर जोर दिया।

    इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। दुर्लभ खनिजों के अलावा भारत को अन्य महत्वपूर्ण खनिजों जैसे लिथियम, कोबाल्ट, निकिल, टाइटेनियम, वैनेडियम, और ग्रेफाइट पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो EVs, एयरोस्पेस और डिफेंस जैसे क्षेत्रों के लिए crucial हैं।

    कुल मिलाकर भारत का यह कदम एक strategic shift का संकेत देता है, जो न केवल आर्थिक, बल्कि सुरक्षा और तकनीकी स्वायत्तता के लिए भी महत्वपूर्ण है।