बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है... रफी साहब के गीतों के बगैर बरात ही नहीं हर महफिल रहती सूनी
Mohammed Rafi Birthday 2021 मोहम्मद रफी गाते नहीं शब्दों को जीते थे। उनके गीत युवाओं की धड़कन उनके अहसास की अभिव्यक्ति का माध्यम थे। ये उनका जादू ही है जो अब तक हम सबके सिर चढ़कर बोलता है। आज भी उनके गाए गीतों का क्रेज कम नहीं हुआ है।
जागरण संवाददाता, धनबाद। आज भी जब बरात दरवाजे लगती है तो बैंड वाले एक गाना जरूर बजाते हैं-'बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है... '। यह भी कह सकते हैं कि इस गीत के बगैर बरात की महफिल जमती नहीं है। घोड़ी पर बैठा या किसी गाड़ी पर सवार दूल्हा के साथ बराती खूब झूमते हैं। यह गीत 1966 में आई फिल्म 'सूरज' का है। इस गीत को गाने वाले मोहम्मद रखी की आवाज की खास खासियत है कि 55 साल बाद भी 'बहारों फूल बरसाओ... ' का क्रेज कम नहीं हुआ है। दरअसल रफी साहब गाते नहीं, शब्दों को जीते थे। उनके गीत युवाओं की धड़कन, उनके अहसास की अभिव्यक्ति का माध्यम थे। ये उनका जादू ही है जो अब तक हम सबके सिर चढ़कर बोलता है। आज 24 दिसंबर को मोहम्मद रफी का जन्मदिन है। उन्हें देश-दुनिया याद कर रही है। धनबाद कोयलांचल के लोग भी रफी साहब के जन्म दिन पर उनके गीतों को गुनगुना रहे हैं- चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे...।
फकीरों को सुनकर गीत गाने की मिली प्रेरणा
अपनी सुरीली आवाज के जरिए पूरे देश-दुनिया के करोड़ों लोगों के दिलों में अपनी अलग जगह बनाने वाले प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) का आज जन्मदिन है। उनका जन्म पंजाब के अमृतसर के कोटला सुल्तानसिंह में 1924 को हुआ था। कुछ समय बाद ही इनके पिता लाहौर जाकर बस गए थे उस समय भारत का विभाजन नहीं हुआ था। मोहम्मद रफी घर में फीको के नाम से भी पुकारा जाता था। रफी गली में आने जाने वाले फकीरों को गाते हुए सुना करते थे। इन्हीं फकीरों को सुनकर रफी ने गाना गाना शुरू किया। एक फ़क़ीर ने रफी से कहा था कि एक दिन तुम बहुत बड़े गायक बनोगे।
इस तरह मिला गीत गाने का माैका और फिर छा गए
फिल्मी गीतों में अपना मुकाम बनाने के लिए 1942 में रफी साहब परिवार की ईच्छा न होते हुए भी अपनी जिद के कारण मुंबई पहुंचे। वे मुंबई के भिंडी बाजार इलाके में 10 बाई 10 के कमरे में रहा करते थे। एक बार की बात है कि ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक और अभिनेता कुन्दन लाल सहगल गाने के लिए आए हुए थे। रफी साहब और उनके बड़े बाई भी सहगल को सुनने के लिए गए थे। लेकिन अचानक बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। उसी समय रफी के बड़े भाई साहब ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ को शांत करने के लिए रफी को गाने का मौका दिया जाए। यह पहला मौका था जब मोहम्मद रफी ने लोगों के सामने गाया था। इसके बाद रफी साहब ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मात्र 13 साल की उम्र में रफी ने अपना पहला परफॉर्मेंस दिया था। आकाशवाणी लाहौर के लिए भी उन्होंने गाने गाए। उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना 1944 में गाया था फ़िल्म का नाम था ‘गांव की गोरी’।
रफी के गीतों के बगैर पूरी नहीं होती प्रेमी की आशिकी
किसी भी प्रेमी की आशिक़ी उनके बिना अधूरी है और अपनी महबूबा के रूठने-मनाने से लेकर उसके हुस्न की तारीफ़ करने में वह इन्हीं का सहारा लेकर आगे बढ़ता है। याद कीजिये- तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे, ए-गुलबदन, चौदहवीं का चांद हो, हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं, तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है, तारीफ़ करूं क्या उसकी, यूं ही तुम मुझसे बात करती हो और ऐसे कितने ही सदाबहार गीतों के माध्यम से जवां दिलों की क़ामयाब मोहब्बत की नींव पड़ी है। इनके आंदोलित करते गीतों ने भी प्रेमी-युगलों को समर्थन की ताजा सांसें उपहार में दी हैं। उदासी और विरह में रफ़ी जी के नग़मों के साथ बैचेनी भरे पल कटते हैं और प्रेमी-प्रेमिकाओं के आंसुओं की अविरल धार और प्रेम से उपजी पीड़ा की निश्छलता में भी इन्हीं के सुरों की प्रतिध्वनि गुंजायमान होती है। कौन भूल सकता है इन गीतों को, जिन्होंने विरह-काल में उसी महबूब की यादों की दुहाई दी है.... दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, क्या हुआ तेरा वादा, मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की क़सम, तेरी गलियों में न रखेंगे क़दम आज के बाद।
निराशा के पलों में भी अपना लगाता इनके गीत
'आदमी मुसाफिर है' जैसे कितने ही दार्शनिक और हृदयस्पर्शी गीतों में इनकी ही स्वर-लहरियों का भावनात्मक संचार हुआ है। निराशा के भीषण पलों में 'ये दुनिया ये महफ़िल', गीत कितना सच्चा और अपना-सा लगता है. प्यासा और कागज़ के फूल फिल्मों का प्रत्येक गीत नए गायकों के लिए एक पाठ्यक्रम की तरह है। जिसने ये गायकी सीख ली वो तर गया। दशकों बाद भी वर्तमान परिवेश में इस गीत की सार्थकता कम नहीं हुई है... ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया /ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया /ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया /ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... ।
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