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    Akbar Allahabadi Birth Anniversary 2021: हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला...

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Tue, 16 Nov 2021 10:24 AM (IST)

    Akbar Allahabadi Birth Anniversary 2021 अकबर इलाहाबादी विद्रोही स्वभाव के थे। अकबर इलाहाबादी ने पियक्कड़ों के पक्ष में भी गजल कह डाली। हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है आज भी हर किसी की जुबान पर है।

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    मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ( प्रतीकात्मक फोटो)।

    आशीष सिंह, धनबाद। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 16 नवंबर 1846 को उर्दू के मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का जन्म हुआ। 75 वर्ष की उम्र में नौ सितंबर 1921 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अकबर इलाहाबादी को इस दुनिया से रुखसत हुए 100 बरस बीत गए, लेकिन उनकी शायरी और शख्सियत आज भी उसी तरह बुलंद है। नमन इंडिया के सचिव सह आलमी फलक के संपादक उर्दू शायर अहमद निसार बताते हैं कि उनकी शायरियों में तंज खूब बरसता था। चाहे इश्क हो या राजनीति, अकबर अपनी शायरियों के जरिए तीखा तंज कसते थे। उर्दू भाषा में शानदार पकड़ होने के बावजूद आसान शब्दों का इस्तेमाल कर आम लोगों तक पहुंच बनाई।

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    शायरी में उर्दू के साथ अंग्रेजी शब्दों का समावेश

    अकबर इलाहाबादी विद्रोही स्वभाव के थे। रूढ़िवादिता एवं धार्मिक ढोंग के सख्त विरोधी थे। अपने तंज के बाणों के दम पर कभी शराब को हाथ में न लगाने वाले अकबर इलाहाबादी ने पियक्कड़ों के पक्ष में भी गजल कह डाली। हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है, आज भी हर किसी की जुबान पर है। अहमद निसार बताते हैं कि अकबर इलाहाबादी पहले ऐसे शायर थे जिन्होंने अपनी शायरी में उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी के शब्दों का भी समावेश किया। इसके साथ ही अखबार में महिलाओं और मुस्लिम समाज में पर्दा की कुरीतियों के खिलाफ भी लिखा - बेपर्दा नजर आयीं जो चंद बीवियां, अकबर जमीन में गैरते कौमी से गिर गया। पूछा जो उनसे आपका पर्दा कहां गया, कहने लगीं कि अकल पे मर्दों की पड़ गया।

    हर विधा में अलग ही था अंदाज

    चाहे गजल हो या नज्म या फिर शायरी, हर विधा में अकबर इलाहाबादी का अपना एक अलग ही अंदाज था। समाज सुधार के नजरिए से रची उनकी शायरी में जितना हास्य है, उतना ही तंज का तड़का भी देखने को मिलता है। उनका विद्रोही स्वभाव उन्हें साहित्य के दूसरे दिग्गजों से जुदा करता है। व्यंग्यात्मक शायरी को नया आयाम देते हुए उन्होंने समाज से लेकर राजनीति तक तथा औरतों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी शायरी से बखूबी तंज कसे हैं। अहमद निसार बताते हैं कि धनबाद में भी अकबर इलाहाबादी के चाहने वालों की कम नहीं है। यहां भी उर्दू के शायर उनसे काफी कुछ सीखते हैं।

    अकबर इलाहाबादी : व्यंग का दबंग शायर

    अहमद निसार बताते हैं कि 11 वर्ष की उम्र में स्कूल का मुँह देखा और 13 की उम्र में शादी हो गयी। पढ़ाई जारी रखा और मुसलसल मेहनत करते हुए तीसरे दर्जे से वकालत का इम्तेहान पास किया और निचली अदालतों से वकालत करते हुए सेशन जज बने। अकबर इलाहाबादी मोतीलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय के बहुत करीब और अजीज़ थे। ये भी मशहूर है कि मोतीलाल नेहरू को विशाल मकान का नाम आनन्द भवन रखने का सुझाव अकबर इलाहाबादी ने ही दिया था। अकबर इलाहाबादी को एक कौमपरस्त मुसलमान बताते हुए युनुस अगास्कर साहब ने लिखा है कि अकबर इलाहाबादी एक सुलझा हुआ सियासी जे़ह्न रखते थे और गांधी की अगुआई में आजादी की लड़ाई को जोर पकड़ता देखकर खुश होते थे। एक फनकार थे। आजादी की लड़ाई उन्होंने अपनी कलम से लड़ी और हर कदम पर बापू का साथ दिया।

    रचनाओं में जिंदगी की तमाम पहलुओं की झलक

    स्वदेशी आन्दोलन पर खूब शायरी की है। देखिए ये शेर - भगवान का करम हो स्वदेशी के बैल पर, लीडर की खींच खांच है, गांधी की हांक पर। अपनी रचनाओं में जिन्दगी के तमाम पहलुओं को छुआ है। आजादी की जंग में अकबर इलाहाबादी के अशआर की गूंज साफ सुनाइ देती थी। उन्होंने लिखा - खेंचो न कमानों को, न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। अकबर इलाहाबादी के अशआर एक सदी से नई नस्लों की रहनुमाई कर रहे हैं। साहित्य जगत इस साल अकबर इलाहाबादी सदी मना रहा है।