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    झारखंड में यूं ही नहीं भड़का कुर्मी आंदोलन; जब जो विपक्ष में रहा, तब उसने इस मुद्दे को दिया खुला समर्थन

    झारखंड एवं बंगाल में कुर्मी जाति को आदिवासी की सूची में शामिल करने का आंदोलन तेज हो चुका है। झारखंड के कोल्हान से लेकर बंगाल के पुरुलिया इलाके तक में जबरदस्त ढंग से रेल रोको आंदोलन कर कुर्मी समाज ने झारखंड बंगाल एवं केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है।

    By Dileep Kr SinhaEdited By: Deepak Kumar PandeyUpdated: Sat, 22 Oct 2022 09:07 AM (IST)
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    भाजपा एवं झामुमो के सभी सांसद एवं विधायक इनके निशाने पर हैं।

    धनबाद [दिलीप सिन्हा]: 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति का निर्णय कैबिनेट में पारित होने के बाद झारखंड एवं बंगाल में कुर्मी जाति को आदिवासी की सूची में शामिल करने का आंदोलन तेज हो चुका है। झारखंड के कोल्हान से लेकर बंगाल के पुरुलिया इलाके तक में जबरदस्त ढंग से रेल रोको आंदोलन कर कुर्मी समाज ने झारखंड, बंगाल एवं केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है। समाज ने कोयलांचल में भी आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। समाज के नेता शहर से लेकर गांव तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा पर निशाना साध रहे हैं। भाजपा एवं झामुमो के सभी सांसद एवं विधायक इनके निशाने पर हैं।

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    अर्जुन मुंडा की सरकार केंद्र से कर चुकी है सिफारिश

    कुर्मी समाज के इस आंदोलन को अब आजसू ने अपना आंदोलन बना लिया है। आजसू के नेता कुर्मी संगठनों के नाम पर इस मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इधर, इस मांग से सबसे अधिक पशोपेश में झामुमो है। झामुमो के लिए ना तो इस आंदोलन को समर्थन करते बन रहा है और ना ही विरोध। हालांकि थोड़ा पीछे जाएं तो पता चलेगा कि जिस काल में जो भी पार्टी विपक्ष में रही, उसने इस आंदोलन को खुला समर्थन दिया। मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तक इस आंदोलन को समर्थन दे चुके हैं। अर्जुन मुंडा तो मुख्यमंत्री रहते हुए इस मांग को अपनी कैबिनेट से पारित कर केंद्र सरकार को भेज चुके हैं। 23 नवंबर 2004 को झारखंड की तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार ने कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी।

    झारखंड के 15 सांसदों ने 2003 में तत्कालीन गृहमंत्री आडवाणी को दिया था ज्ञापन

    22 अगस्त 2003 को जमशेदपुर की तत्कालीन भाजपा सांसद आभा महतो के नेतृत्व में झारखंड के सभी सांसदों ने तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को ज्ञापन सौंपा था। इसमें कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग शामिल थी। ज्ञापन में भाजपा के आठ एवं कांग्रेस के दो लोकसभा सदस्य तथा भाजपा के पांच राज्यसभा सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे। इन सांसदों में भाजपा के गिरिडीह के रवींद्र कुमार पांडेय, धनबाद की प्रो. रीता वर्मा, जमशेदपुर की आभा महतो, रांची के रामहटल चौधरी, लोहरदगा के प्रो. दुखा भगत, पश्चिमी सिंहभूम के लक्ष्मण गिलुआ, पलामू के ब्रजमोहन राम, गोड्डा के प्रदीप यादव तथा कांग्रेस के कोडरमा सांसद तिलकधारी प्रसाद सिंह व राजमहल के थामस हांसदा शामिल थे। इसके अलावा राज्यसभा सदस्यों में परमेश्वर कुमार अग्रवाल, अजय मारू, अभयकांत प्रसाद, एसएस अहलूवालिया एवं देवदास आप्टे ने भी ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।

    हेमंत समेत भाजपा-झामुमो-कांग्रेस के 41 विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर को दिया था ज्ञापन

    आदिवासी कुर्मी संघर्ष मोर्चा ने पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के नेतृत्व में आठ फरवरी 2018 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को ज्ञापन दिया था। इसमें कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग की थी। ज्ञापन में झामुमो-भाजपा-कांग्रेस के 41 विधायकों व सांसदों के हस्ताक्षर थे। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष व मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, सरायकेला के चंपाई सोरेन, डुमरी विधायक जगरनाथ महतो, गोमिया विधायक योगेंद्र प्रसाद, जामताड़ा के डा. इरफान अंसारी, बगोदर के नागेंद्र महतो, बेरमो के योगेश्वर महतो बाटुल, तमाड़ के विकास कुमार मुंडा, बड़कागांव की निर्मला देवी, पोड़ैयाहाट के प्रदीप यादव, सिंदरी के फूलचंद मंडल, धनबाद विधायक राज सिन्हा, खरसावां के दशरथ गगरई, गांडेय विधायक जयप्रकाश वर्मा, बोकारो विधायक बिरंची नारायण, भवनाथपुर के भानू प्रताप शाही, जरमुंडी के बादल पत्रलेख, गिरिडीह के निर्भय कुमार शाहाबादी, सिल्ली के अमित कुमार, मांडू के जयप्रकाश भाई पटेल, साहिबगंज विधायक अनंत ओझा, रामगढ़ विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी, नाला विधायक व मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो, रांची सांसद रामटहल चौधरी आदि ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

    गिरिडीह सांसद बोले- शुरू से लड़ाई लड़ रही आजसू

    इस संबंध में गिरिडीह के आजसू सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने कहा कि कुर्मी समाज को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। आजसू शुरू से ही इसके लिए लड़ रही है। उन्‍होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति एवं गृहमंत्री से मिलकर इसकी मांग कर चुका हूं। इस मुद्दे पर हेमंत सरकार को अपना स्टैंड साफ करना चाहिए। ममता बनर्जी की सरकार इसका प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज चुकी है।

    वहीं राज्‍य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा कि कुर्मी जाति पहले से ही अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल थी। बिना किसी गजट या पत्र के कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर कर दिया गया। इस पर केंद्र सरकार को जवाब देना चाहिए।

    इधर, पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो का कहना है कि कुर्मी को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के मुद्दे पर झामुमो एवं भाजपा दोनों राजनीति कर रही है, जबकि दोनों पार्टियों के 41 विधायक संयुक्त रूप से इस मांग पर लिखित समर्थन दे चुके हैं। सरकार में आने के बाद दोनों ही इस मांग से पल्ला झाड़ लेते हैं।