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Dussehra 2021: रावणेश्वर धाम में जलाए नहीं जाते लंकापति, लोग रावण के प्रति रखते कृतज्ञता का भाव; जानिए वजह

Dussehra 2021 भोलेनाथ का अनन्य भक्त रावण भगवान को प्रसन्न करने के बाद कैलाश पर्वत से शिवलिंग को लेकर चला तो लंका के लिए था लेकिन परिस्थिति संयोग व भगवान की शर्त के कारण अनिच्छा के बाद भी देवघर में ही शिवलिंग की स्थापना करनी पड़ी।

By MritunjayEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 09:41 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 02:34 PM (IST)
Dussehra 2021: रावणेश्वर धाम में जलाए नहीं जाते लंकापति, लोग रावण के प्रति रखते कृतज्ञता का भाव; जानिए वजह
रावण और बाबा बैद्यनाथधाम ( सांकेतिक फोटो)।

आरसी सिन्हा, देवघर। रावण बुराई का प्रतीक है। महापंडित और शिव का अनन्य भक्त होने के बावजूद रावण के प्रति भारतीय जनमानस में घृणा का भाव है। यही कारण है कि दशहरा पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतला दहन की परंपरा है। इन सबके बावजूद झारखंड के देवघर के लोग रावण के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हैं। इस वजह है कि दशहरा के मौके पर रावण का पुतला नहीं जलाते।

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रावण ने की थी बाबा बैद्यनाथ धाम की स्थापना

द्वादश ज्योर्तिलिंगों में एक बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग की स्थापना रावण ने ही की थी। यहां भोलेनाथ रावणेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते हैं। भोलेनाथ का अनन्य भक्त रावण भगवान को प्रसन्न करने के बाद कैलाश पर्वत से शिवलिंग को लेकर चला तो लंका के लिए था, लेकिन परिस्थिति, संयोग व भगवान की शर्त के कारण अनिच्छा के बाद भी देवघर में ही शिवलिंग की स्थापना करनी पड़ी। शर्त यह थी कि शिवलिंग को कहीं बीच में नहीं रखना है। जहां भी शिवलिंग रखा जाएगा, वहीं भोलेशंकर स्थापित हो जाएंगे। दोबारा उस स्थान से शिवलिंग को उठाकर कहीं ले जाना संभव नहीं हो पाएगा। संयोग ऐसा बना कि रावण को रास्ते में ही देवघर में शिवलिंग को रखना पड़ा और भोलेनाथ यहीं स्थापित हो गए।

सरदार पंडा ने रावण के बखान में रची रचनाएं

बाबा मंदिर के सरदार पंडा रहे भवप्रीतानंद ओझा ने रावण के बखान में कई रचनाएं रची हैं। देवघरवासियों का मानना है कि रावण की वजह से बाबा बैद्यनाथ देवघर पहुंचे। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के पूर्व वरीय उपाध्यक्ष दुर्लभ मिश्र कहते हैैं कि लंकापति द्वारा बाबा बैद्यनाथ को लाए जाने के कारण यहां के लोग रावण के प्रति श्रद्धा रखते हैैं। वर्ष 1928 से 1970 तक बाबा बैद्यनाथ मंदिर के सरदार पंडा भवप्रीता नंद ओझा थे। उन्होंने कई झूमर की रचना की। ओझा अपनी रचना में रावण के बखान में लिखते हैैं- 'देवघरे बिराजे गौरा साथ बाबा भोलानाथ, देवघरे बिराजे गौरा साथ...। धनी-धनी रावण राजा करे चाहि तोहर पूजा, पारस-मणि आनी देल्है हाथ, बाबा भोलानाथ, देवघर बिराजे भोलानाथ।' इससे स्पष्ट है कि देवघरवासियों को चाहिए कि लंकापति रावण की आराधना करें जिनकी कृपा से ही महादेव इस दुर्लभ स्थान झारखंड में पहुंचे हैैं।

रावण से बड़ा कोई पंडित नहीं

दुर्लभ मिश्र कहते हैं- भगवान शंकर के लंका ले जाने का वर्णन और उनके यहां स्थापित होने का पूरा वर्णन शिव महापुराण के कोटि रूद्र संहिता में उल्लेखित है। इसमें कहा गया है कि चिताभूमि में बैद्यनाथ स्थापित हंै। रावण से बड़ा इस संसार में कोई पंडित नहीं हुआ। दुनियाभर के लोग रावण के तमोगुण के लिए उससे घृणा करते हैैं, जबकि देवघर के लोग उनके सतोगुण की पूजा करते हैैं। यहां की मिट्टïी का एक-एक कण राजा रावण का ऋणी है।


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