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    Digambar Jain Monks: इनके घोर तप का कोई जोड़ नहीं, जानें क्यों नहीं पहनते वस्त्र

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 30 Sep 2021 06:15 AM (IST)

    Digambar Jain Monks विशुद्ध सागरजी महाराज कहते हैं-जैसा हम जन्में हैं वैसा ही हमारा जीवन है। मां ने बिना कपड़ों का हमें जन्म दिया है। पृथ्वी नग्न हैं इसलिए दिगंबर नग्न हैं। साधु का जीवन बेदाग होता है उसे छुपाने के लिए किसी वस्त्र की जरूरत नहीं पड़ती है।

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    कठोर साधना से जैन साधुओं को ठंड या गर्मी का एहसास नहीं होता ( सांकेतिक फोटो)।

    दिलीप सिन्हा, गिरिडीह। जैन साधुओं की कठोर साधना जैन धर्मावंलबियों के साथ-साथ दूसरे धर्म के लोगों के लिए भी कौतूहल का विषय होता है। इनकी साधना देखकर आपको अंदाजा हो जाएगा कि ऐसे ही जैन धर्म के लोग उन्हें भगवान का दर्जा नहीं देते हैं। जैन साधु दो तरह के होते हैं। एक जो सफेद वस्त्र पहनते हैं, वह श्वेतांबर होते हैं। दूसरा जो बिना वस्त्र के होते हैं, वह दिगंबर होते हैं। दिगंबर साधुओं की कठोर साधना में एक यह भी है कि वह बिना वस्त्र के होते हैं। भीषण शीत लहर में जब हमलोग गर्म कपड़े एवं रजाई का सहारा लेकर अपनी जान बचाते हैं, वह बिना किसी वस्त्र के होते हैं। कठोर साधना ही है जो उन्हें ठंड का एहसास भी नहीं होता है।

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    हम बिना वस्क्ष के जन्मे हैं तो फिर वस्त्र की जरूरत क्यों

    लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर दिगंबर साधु बिना वस्त्र के क्यों रहते हैं। इस संबंध में इन साधुओं का मानना है कि क्या हम बिना वस्त्र के जन्मे है तो फिर हमें वस्त्र की जरूरत क्यों है। वस्त्र लोग विकारों को ढंकने के लिए धारण करते हैं। जो विकारों से परे हैं, उन्हें वस्त्र धारण करने की क्या जरूरत है। शिशु की तरह जैन मुनि भी विकारों से परे होते हैं। इसलिए उन्हें भी वस्त्र की जरूरत नहीं पड़ती है। दुनिया के सबसे बड़े जैन तीर्थस्थल श्री सम्मेद शिखरजी मधुबन में दर्जनों जैन साधु चातुर्मास कर रहे हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या दिगंबर साधुओं की है। इन साधुओं में आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज भी हैं। उनके साथ एक दर्जन से अधिक मुनि यहां चातुर्मास कर रहे हैं। बारिश के इस मौसम में दुनियाभर के जैन साधु चातुर्मास में रहते हैं। इसका मतलब है किसी एक जगह लगातार चार महीने तक रहकर तप व साधना करते हैं। इस दौरान वह विहार नहीं करते हैं।

    साधु का जीवन बेदाग

    दिगंबर साधु बिना वस्त्र के क्यों होते हैं, इस पर हमने जैन संत आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज से जानने की कोशिश की है। विशुद्ध सागरजी महाराज ने बताया कि जैसा हम जन्में हैं, वैसा ही हमारा जीवन है। मां ने बिना कपड़ों का हमें जन्म दिया है। पृथ्वी नग्न हैं, इसलिए दिगंबर नग्न हैं। साधु का जीवन बेदाग होता है, इस कारण उसे छुपाने के लिए किसी वस्त्र की जरूरत नहीं पड़ती है। वस्त्रों की जरूरत उन्हें पड़ती है, जिन्हें कुछ छुपाना होता है। वस्त्र नहीं पहनने के पीछे मूल कारण, यह भी बताया कि वस्त्र धारण करने से उनकी साधना बाधित होगी। वस्त्र किसी से मांगने होंगे। उसे साफ करना होगा। उसके साफ होने से जीवों की हिंसा हो सकती है। इससे अहिंसा का पालन कठोरता से करने की हमारी तपस्या भंग होगी। साथ ही वस्त्र से हमारा मोह बढ़ेगा। यह हमारे परिग्रह त्याग में रोड़ा बन सकता है। दिगंबर साधु कब से बिना वस्त्र के रहते हैं, पर उनका कहना है कि यह परंपरा अनादि काल से चली आ रही है।