पुण्यतिथि: सरदार वल्लभ भाई पटेल न होते तो कैसा होता भारत ? जानिए देश की एकता और अखंडता में उनका योगदान
Sardar Vallabhbhai Patel Death Anniversary 2021 आज जो हमारे सामने भारत का भौगोलिक स्वरूप है वह सरदार वल्लभ भाई पटेल की देन है। अगर वे न होते तो भारत का स्वरूप कुछ और होता। उन्होंने 565 देशी रियासतों में 562 को शांतिपूर्ण ढंग से भारत में विलय करवाया।

जागरण संवाददाता, धनबाद। भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 15 दिसंबर को 71वीं पुण्ततिथि है। इस माैके पर उन्हें देश याद कर रहा है। देश सेवा में उनके अहम योगदान को लेकर बातें की जा रही हैं। आजादी के बाद देश की एकता और अखंडता का उन्हें सूत्रधार भी कहा जाता है। आज जो हमारे सामने देश का भौगोलिक स्वरूप है वह उन्हीं की देन है। अगर वे न होते तो भारत का स्वरूप कुछ और होता। उन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाई बल्कि 565 देशी रियासतों में 562 को शांतिपूर्ण ढंग से भारत में विलय करवाया। अपनी रणनीति की बदाैलत कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद जैसे देशी रियासतों को भारत में विलय के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में सरदार पटेल हम सभी के लिए प्रेरणा के अद्वितीय स्त्रोत हैं। वह सच्चे अर्थों में भारत रत्न थे, जिन्होंने न सिर्फ आजादी में अहम भूमिका निभाई बल्कि उसके बाद देश को एक करने का भी बीड़ा उठाया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने ट्वीट कर भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनके योगदान के लिए नमन किया है।
भारत की 562 रियासतों का विलय कर एक सशक्त, समृद्ध और तेजस्वी राष्ट्र की आधारशिला रखने वाले लौह पुरुष भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल जी की पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन।#ironman #SardarVallabhbhaiPatel pic.twitter.com/hYvB39MwKx
— Babulal Marandi (@yourBabulal) December 15, 2021
पटेल को ऐसे मिली सरदार की उपाधि
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के नडियाद (ननिहाल) में 31 अक्तूबर 1875 को हुआ। उनका पैतृक निवास स्थान गुजरात के खेड़ा के आनंद तालुका में करमसद गांव था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी की चौथी संतान थे। उनका विवाह 16 साल की उम्र में झावेरबा पटेल से हुआ। पटेल ने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की व 22 साल की उम्र में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैरिस्टर बनें। सरदार पटेल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह, 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह के उपरांत 1928 में बारदोली सत्याग्रह में देकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की। इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि दी।
भारत के एकीकरण में असीम योगदान
1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा अनेक देशी रियासतों में प्रजा मण्डल और अखिल भारतीय प्रजा मण्डल की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह लौह पुरुष सरदार पटेल ने अत्यंत बुद्धिमानी और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए वी.पी. मेनन और लार्ड माउंट बेटन की सलाह व सहयोग से अंग्रेजों की सारी कुटिल चालों पर पानी फेरकर नवंबर 1947 तक 565 देशी रियासतों में से 562 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवा लिया।
महात्मा गांधी के कारण प्रधानमंत्री बनने-बनते रह गए
भारत की आजादी के बाद भी 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद अलग ही था लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को पाठ पढ़ा दिया और भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत के साथ रहने का रास्ता खोल दिया। आजादी के पहले कांग्रेस कार्य समिति ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए प्रक्रिया बनाई थी, जिसके तहत आंतरिक चुनावों में जिसे सबसे अधिक मत मिलेंगे वही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा और वही प्रथम प्रधानमंत्री भी होगा। कांग्रेस के 15 प्रदेशस्तर के अध्यक्षों में से 13 वोट पटेल को मिले थे और केवल एक वोट जवाहरलाल नेहरू को मिला था। लेकिन गांधी का पुरजोर पक्ष जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री बनाने को लेकर था। चूंकि गांधी को आधुनिक विचार बहुत पसंद थे, इन विचारों की झलक उन्हें पटेल की जगह विदेश में पढ़े-लिखे नेहरू में अधिक दिखती थी। वहीं गांधी विदेश नीति को लेकर पटेल से असहमत थे। इस कारण उन्होंने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से इंकार कर दिया व अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल नेहरू के पक्ष में किया। इसको लेकर भारतीय राजनीति में राजेंद्र प्रसाद का यह कथन प्रासंगिक है 'एक बार फिर गांधी ने अपने चहेते चमकदार चेहरे के लिए अपने विश्वासपात्र सैनिक की कुर्बानी दे दी।' लेकिन सवाल पटेल को लेकर भी उठते हैं कि उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया। आखिर उनके लिए गांधी महत्वपूर्ण था या देश?
विलक्षण प्रतिभा और साहस के बल पर कराया विलय
भारत के 2/5 भाग क्षेत्रफल में बसी देशी रियासतों जहां तत्कालीन भारत के 42 करोड़ भारतीयों में से 10 करोड़ 80 लाख की आबादी निवास करती थी, उसे भारत का अभिन्न अंग बना देना कोई मामूली बात नहीं थी। इतिहासकार सरदार पटेल की तुलना बिस्मार्क से भी कई आगे करते है क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण ताकत के बल पर किया और सरदार पटेल ने ये विलक्षण कारनामा दृढ़ इच्छाशक्ति व साहस के बल पर कर दिखाया। उनके इस अद्वितीय योगदान के कारण 1991 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न के सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत किया गया।
हैदराबाद की तरह कश्मीर का भी चाहते थे हल
हैदराबाद के बाद कश्मीर को भी भारत में विलय कराने के लिए पटेल ने पुरजोर प्रयास किए थे लेकिन उनकी अपनी सीमाएं थीं और यही सीमाएं कश्मीर की समस्या को विकट बना गई। हैदराबाद के नकचढ़े नवाब का दंभ चूर कर इस मुस्लिम रियासत को आसानी से भारत में मिलाने वाले पटेल कश्मीर को भी भारत में मिलाने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे। लेकिन कश्मीर पर बने अंतरराष्ट्रीय दबाव और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की निजी दिलचस्पी के कारण पटेल ने कुछ समय के लिए इस मुद्दे से किनारा कर लिया। जिसका फायदा पाकिस्तान और उसके परस्त कबाइलियों ने उठाया। हालांकि वक्त ने फिर करवट ली और पाक परस्त कबाइलियों के आक्रमण के बाद जब महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी तो पटेल ने एक बार फिर महाराजा को विलय का प्रस्ताव भेजा, इस बार बात बन गई और कश्मीर के भारत में सर्शत विलय पर मुहर लग गई। इसके बाद भारतीय सेना ने कठिन और विपरीत परिस्थितियों में श्रीनगर पहुंचकर कबाइलियों को खदेड़ने का अभियान शुरू किया। जिस तरह भारतीय सेना पाक परस्त कबाइलियों को ध्वस्त कर रही थी उससे लग रहा था कि जल्द ही उनके कब्जे वाले कश्मीर को पूरी तरह मुक्त करा लिया जाएगा। लेकिन इसी बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई और भारतीय सेना को अपना अभियान रोकना पड़ा। इसका नतीजा ये हुआ कि गिलगित और कुछ हिस्से पर पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों का नियंत्रण रह गया जो आज तक भारत के लिए नासूर बना हुआ है।
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