Janmashtami 2021: जानें कहां है गुप्त वृंदावन, राधे-कृष्ण की लीला की आज भी गवाही देते पैरों के निशान
Janmashtami 2021 झारखंड के साहिबगंज जिले में कन्हैयास्थान को गुप्त वृंदावन कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां राधा और कृष्ण रास रचाते थे। यहां धूमधाम से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार कोरोना के कारण भक्तों की भीड़ नहीं होगी। लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं है।

कालीचरण मंडल, तालझारी ( साहिबगंज )। झारखंड के साहिबगंज जिले के राजमहल प्रखंड अंतर्गत सैदपुर पंचायत स्थित है भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली कन्हैयास्थान। यह देश-दुनिया में विख्यात हैं। प्राचीन काल में यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वैष्णव धर्म के प्रचारक श्री चैतन्य महाप्रभु को बाल्य रूप का दर्शन दिये थे। हिन्दू धर्म ग्रंथ श्री चैतन्य चरितामृत में वर्णन है कि 1505 ईस्वी में श्री चैतन्य महाप्रभु जब नदिया से गयाधाम अपने माता-पिता के पिंड दान हेतु जा रहे थे तो इसी क्रम में उन्होंने चारों तरफ जंगलों से घिरे कन्हाई नाट्यशाला में श्री चैतन्य महाप्रभु ने एक पेड़ के नीचे मोर मुकुट धारण किए भगवान श्री कृष्ण के बाल्य रूप का दर्शन किया। श्रीकृष्ण भगवान के बाल्य रूप को देख श्री चैतन्य महाप्रभु भाव-विभोर हो गए और उनसे भावविह्वल होकर आलिंगनबद्ध भी हुये। पूरे साल यहां ना केवल देश बल्कि विदेशों से भी कृष्ण भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। 30 अगस्त को जन्माष्टमी है। इसे लेकर यहां अभी से माहाैल में उत्साह है।
इसलिए कहा जाता गुप्त वृंदावन
कन्हैयास्थान को गुप्त वृंदावन की भी कहा जाता है। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में भी एक बार कन्हैयास्थान आये थे। कृष्ण लीला के समय जब भगवान श्रीकृष्ण गोपीयों के साथ महारास लीला कर रहे थे। इस दौरान श्रीराधारानी के मन में एक द्वेष उत्पन्न हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान उनके अलावा अन्य गोपियों के साथ भी महारास लीला कर रहे हैं। श्रीकृष्ण ने राधारानी की अंतरात्मा के विचारों को जान उन्हें लेकर एक गोपनीय स्थान में चले गये। जिस स्थान में श्रीकृष्ण ने राधारानी को लाकर प्रेम की भावना प्रकट किया। वह कन्हाई नाटशाला ही है। इस तरह कन्हाई नाट्यशाला भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली बन गई। कालांतर में इस स्थल व गांव का नाम कन्हैयास्थान पड़ गया है। इस लीला के उपरांत भगवान श्रीकृष्ण व श्रीराधारानी अपने पदचिन्ह यहां छोड़ गये, जो आज भी कन्हैयास्थान मंदिर में स्थापित है।
1995 में इस्कॉन को साैंप दी गई मंदिर
कन्हैयास्थान मंदिर को 1995 में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) को सौंप दी गई जो आज भी संचालित कर रही है। इस्कॉन ने जब इस मंदिर को स्वीकारा तब से यहां विकास की रफ्तार तीव्र हो गई और कुछ ही समय में इस स्थल को पूरे विश्व में प्रसिद्धि मिल गई। यही कारण है कि पतित पावनी गंगा नदी के तट पर एक छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित कन्हैयास्थान इस्कॉन मंदिर में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, यूनान, चीन, रूस, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान सहित अन्य देशों से कृष्णभक्तों का आगमन सालों भर होता है। इससे यहां भक्ति की गंगा सदैव बहती रहती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्माष्टमी पर्व अत्यंत ही धूमधाम से यहां मनाया जाता है जिसमें झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित अन्य राज्यों के हजारों कृष्ण भक्त कन्हैया स्थान आकर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। वर्तमान समय में यहां अतिथि भवन, प्रवेश द्वार, शौचालय, ठहरने की उत्तम व्यवस्था के साथ-साथ गंगा तट को भी आकर्षक तरीके से सजाया गया है जहां दूर-दराज से आने वाले कृष्ण भक्त एवं पर्यटक गंगा स्नान का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
तमाल वृक्ष का है विशेष महत्व
कन्हैयास्थान इस्कॉन मंदिर से सटे उत्तर दिशा में कई तमाल के वृक्ष है जिनका धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्व है। कहते है तमाल वृक्ष भगवान श्रीकृष्ण के रंग का होता है और यह वृक्ष वहीं होते है जहां भगवान श्रीकृष्ण की लीला हुई हो अथवा उनका आगमन हुआ हो। इस वृक्ष का यहां होना भी भगवान श्रीकृष्ण की यह लीला स्थली होने का प्रमाण देती है। इसी तमाल वृक्ष के नीचे ही श्री चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य रूप का दर्शन किए थे। देश-विदेश से आनेवाले कृष्णभक्त इस वृक्ष को काफी महत्व देते है और यहां 108 बार वृक्ष की परिक्रमा करते है। इसके महत्वों का जानने पर क्षेत्रीय विधायक अनंत कुमार ओझा ने चुनाव जीतने के बाद ही इस वृक्ष के चहुंओर घेराबंदी व सौंदर्यीकरण का कार्य कराया जिससे यह स्थल और भी अधिक सुंदर व आकर्षक हो गए है।
जन्माष्टमी पर आयोजित होगी विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान
यहां भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी पर्व अत्यंत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल के हजारों कृष्णभक्त यहां पहुंचकर उत्सव में सम्मिलित होते है और दो दिन तक भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होकर भक्ति में लीन रहते है। पिछले वर्ष कोविड 19 के कारण सरकारी गाइड लाइन का अनुपालन करते हुए आम लोगों के लिए मंदिर बंद रखा गया था। इस बार भी कोविड 19 को लेकर भीड़ जुटाने पर पाबंदी है। इसे देखते हुए मंदिर के प्रबंधक ब्रजराज दास ने धार्मिक अनुष्ठानों में कमी की है। इसके बावजूद भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी पर्व यहां इस वर्ष अत्यंत ही धूमधाम व हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज रविवार की रात आठ बजे शुभ अधिवास कीर्तन से जन्माष्टमी पर्व का शुभारंभ किया जाएगा। इसके बाद सोमवार को जन्माष्टमी का त्योहार मनेगी। इसके लिए सुबह 4:30 बजे मंगल आरती, 7:45 बजे दर्शन आरती, 8:30 बजे भगवान श्रीकृष्ण कथा, 1 बजे भोग आरती, 4 बजे कीर्तन मेला, 6:30 बजे संध्या आरती, 7:30 बजे भजन-कीर्तन, 10 बजे महाभिषेक कार्यक्रम होगी जो पूरे कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण का केंद्र होगा और 12 बजे अर्धरात्रि को भगवान श्री कृष्ण की महाआरती की जाएगी।
दूसरे दिन नंदोत्सव पर होता विशेष आयोजन
जन्माष्टमी के दूसरे दिन मंगलवार को इस्कॉन के प्रतिष्ठाता ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जन्मोत्सव एवं नंदोत्सव के अवसर पर भी विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित की जाएगी। उन्होंने बताया कि पूरा देश कोविड 19 की तीसरी लहर आने को लेकर भयाक्रांत है। भक्तों में जन्माष्टमी को लेकर काफी उत्साह रहती है और सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटने का अनुमान है। इसे ध्यान में रखकर सरकारी गाइड लाइन का अनुपालन करते हुए कृष्णभक्तों एवं आम लोगों से फेस मास्क पहनकर ही मंदिर आने की अपील की है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।