Nirsa sabha Chunav Result: 1808 वोटों का अंतर और फिर से लालगढ़ बना निरसा, CPIML ने मारी बाजी
निरसा विधानसभा सीट से खड़े नौ प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला शनिवार को मतपत्रों की गिनती के बाद हो गया। मतदाताओं ने इस बार खुलकर मतदान किया। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा की प्रत्याशी विधायक अपर्णा सेनगुप्ता व भाकपा माले के प्रत्याशी पूर्व विधायक अरूप चटर्जी के बीच रहा। दोनों में कांटे की टक्कर रही। इसी तरह अब निरसा लाल गढ़ बन गया है।

डिजिटल डेस्क, धनबाद। भगवा गढ़ बन रहा निरसा फिर से लालगढ़ में बदल गया। कांटे की टक्कर में भाजपा प्रत्याशी अपर्णा सेनगुप्ता को भाकपा माले के अरूप चटर्जी ने 1,808 वोटों के अंतर से पराजित कर दिया। अरूप को 1,04,855 वोट मिले तो अपर्णा को 1,03,047 वोट मिले।
जीत के साथ ही अरूप को चौथी बार निरसा का विधायक बनने का गौरव मिला। सुबह से ही स्ट्रांग के बाहर पार्टी के कैंप में कार्यकर्ताओं का जुटान होता रहा। कुल 22 राउंड वोटों की गिनती चली। पहले ही राउंड से अरूप को बढ़त मिलने लगी, हालांकि बढ़त मात्र दो से तीन हजार की थी। 22 राउंड तक दोनों के बीच कांटे की टक्कर रही।
यही कारण है कि दोनों प्रत्याशियों की सांस अटकी थी। 22 वें राउंड की फाइनल गिनती के बाद अरूप को 1,808 वोटों से विजयी घोषित किया गया। शुरू से ही अरूप की पत्नी आनंदिता चटर्जी कैंप में डटी रहीं।
चौथी बार बने विधायक, आंखों से छलके आंसू विधायक अरूप चटर्जी चौथी बार निरसा के विधायक बने। कार्यकर्ताओं का आभार जताते वक्त उनकी आंखों से आंसू भी छलके।
पत्नी आनंदिता चटर्जी से मिलकर काफी भावुक हुए। उनके पिता गुरदास चटर्जी की मौत के बाद 2000 के उपचुनाव में अरूप पहली बार विधायक बने। 2005 में फारवर्ड ब्लाक से अपर्णा सेनगुप्ता ने जीत दर्ज की। फिर 2009 और 2014 में अरूप विधायक बने। निरसा में हमेशा लाल झंडे का वर्चस्व रहा।
ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक छोड़कर 2019 में अपर्णा सेनगुप्ता ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की। तब अपर्णा ने जीत दर्ज की। 25,458 वोट से अरूप को हरा कमल खिलाया था। बागी अशोक मंडल नहीं कर पाए कमाल झारखंड मुक्ति मोर्चा से बागी होकर अशोक मंडल झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा से खड़े हुए।
बावजूद कोई बड़ा कमाल नहीं कर पाए। मात्र 16,316 वोट मिले। माना जा रहा था वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के पारंपरिक वोट काटेंगे।
महागठबंधन की एकजुटता ने राह की आसान
भाकपा माले को झामुमो का साथ मिला। महागठबंधन के अन्य दलों की भी एकजुटता रही। पांच वर्ष तक लगातार अरूप जनता के बीच रहे। नतीजा कार्यकर्ताओं में जोश भरता गया। उनकी जमीन मजबूत होती गई। अशोक मंडल भी उनके वोट उतने नहीं काट सके, जो जीत की राह में रोड़ा बनते।
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