झारखंड के बिजली संयंत्रों को एफजीडी छूट से बढ़ेगा प्रदूषण, स्वास्थ्य को खतरा होने की आशंका
झारखंड के कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन तकनीक से छूट मिलने पर प्रदूषण बढ़ने की आशंका है। राज्य की सभी 13 इकाइयां सी श्रेणी में हैं जिन्हें सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों को नियंत्रित करने से छूट दी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे प्रदूषण कम करने का लक्ष्य मुश्किल हो जाएगा और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा।

जागरण संवाददाता, धनबाद। झारखंड के कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक से छूट दिए जाने से राज्य में प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ने की आशंका बढ़ गई है।
केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार, राज्य की सभी 13 ताप विद्युत इकाइयां सी श्रेणी में हैं, जिन्हें अब सल्फर डाइऑक्साइड, पीएम 2.5 और पारा जैसी खतरनाक गैसों को नियंत्रित करने के लिए एफजीडी की अनिवार्य स्थापना से छूट दी गई है।
बता दें कि एफजीडी तकनीक न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में सहायक है, बल्कि इससे सीमेंट उद्योग में उपयोगी सिंथेटिक जिप्सम का उत्पादन भी होता है। लेकिन झारखंड में अब तक राज्य सरकार के अधीन किसी भी बिजली संयंत्र में यह तकनीक नहीं लगाई गई है। केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले केवल दो संयंत्रों में ही एफजीडी प्रणाली लगाई गई है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषक मनोज कुमार ने बताया कि आईआईटी के अध्ययन में पाया गया है कि रांची, जमशेदपुर और धनबाद जैसे शहरों में पीएम 2.5 प्रदूषण का 4 से 24 प्रतिशत हिस्सा बिजली क्षेत्र से आता है।
ये शहर पहले से ही राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के अंतर्गत आते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस छूट के कारण इन शहरों में प्रदूषण कम करने का 40% लक्ष्य हासिल करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
सीआरईए के विश्लेषक मनोज कुमार ने कहा कि यह फैसला न केवल पर्यावरणीय लक्ष्यों को पीछे धकेलेगा, बल्कि उद्योगों के सतत विकास और आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है।
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