कोई नहीं सुनता इनका दर्द...रोते, चीखते व चिल्लाते, धरती में समा जाते हैं; तमाशबीन बन टुकुर-टुकुर देखते रहते प्रबंधन व प्रशासन
यहां शांति शांति नहीं। यहां पर तो हर जगह मौत का ही मंजर है। यहां के लोगों अगर सूर्यास्त देख लिए हो तो इस बात पर आश्वस्त नहीं हो सकते की कल सूर्य ...और पढ़ें

गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : झरिया का नाम आते ही दिमाग में कोयले की तस्वीर उभर जाती है। कायेले की संपन्ता के कारण भारत ही नहीं पूरे एशिया में इसकी अलग पहचान है। बीसीसीएल प्रबंधन दुधारू गाय की तरह इसे दुहता आया है। खनन करके इसकी धरती को खोखला कर चुका है। यहां की भूमि इनती खोखली हो चुकी है कि नीचे दहकती रहती है आग व जमीन से निकलती रहती हैं धुआएं। इसी के साथ दशकों से जीवन गुजारने को मजबूर हैं यहां के लोग। मौत की बुनियाद पर टिकी है इनकी जिंदगी। कईको तो धरती अपने में समा भी ली है। अगला नंबर किसका होगा नहीं पता। यहां के लोगों को कहीं अन्यत्र बसाने को लेकर प्रबंधन व सरकार के बीच कई बार चर्चाएं हुई। सब कुछ ठाक के तीन रहा। अब इनको भी पता है इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। रात को सोने के बाद इन्हें तो यह भी नहीं पता की अगले दिन उगते सूर्य के दर्शन होंगे भी या नहीं। इनके हालात को देखकर ऐसा लगता है कि प्रबंधन क्या, सकरार भी इनकों मरने के लिए छोड़ दी है।

मौत से बेपरवाह अंगारों पर दौड़ते झरिया स्थित रजवारी बस्ती के बच्चे। (जागरण)
भू धंसान से कभी भी जा सकती इनकी जान
अग्नि और भू धंसान प्रभावित क्षेत्र दोबारी रजवार बस्ती में बीसीसीएल प्रबंधन और जिला प्रशासन की लापरवाही से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। यहां दर्जनों परिवार खतरनाक क्षेत्र में रहने को दशकों से मजबूर हैं। बावजूद जिला प्रशासन और बीसीसीएल प्रबंधन गंभीर नहीं है। झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति के अध्यक्ष मुरारी प्रसाद शर्मा ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है। मुरारी ने कहा कि पिछले दिनों समिति की कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। इसके बाद दोबारी कोलियरी, बीसीसीएल एरिया नौ के प्रबंधन को यहां की गंभीर स्थिति से अवगत कराया गया था। प्रबंधन को यह कहा गया था कि दोबारी रजवार बस्ती के लोग मजबूरी के कारण खतरनाक क्षेत्र में रहने को मजबूर हैं। यहां के अग्नि प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने कहा कि बीसीसीएल, जेआरडीए प्रबंधन और जिला प्रशासन हमारी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। यहां रह रहे लगभग 60 परिवार के लोग कभी भी भू-धंसान के शिकार हो सकते हैं।
केवल होती हैं बैठके, नहीं निकलता समाधान
यहां की समस्या काफी गंभीर है। इस पर प्रशासन को पूरा ध्यान देना चाहिए। मुरारी ने कहा कि 30.5 .2017 को मुख्य सचिव झारखंड की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी। इस बैठक में जिला प्रशासन, रेलवे, खान सुरक्षा निदेशक और बीसीसीएल के अधिकारियों के साथ झरिया मास्टर प्लान के तहत अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास व सुरक्षा के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए गए। स्पष्ट रूप से कहा गया कि बीसीसीएल को अति अग्नि प्रभावित क्षेत्र झरिया, लोदना, बस्ताकोला, सिजुआ, कतरास एवं कुसुंडा में पुनर्वास हेतु एक्शन प्लान तुरंत तैयार करना चाहिए।
नोटिस चस्पा कर, पल्ला झाड़ता प्रबंधन
उपरोक्त क्षेत्रों में कोई दुर्घटना घटती है तो इसके लिए बीसीसीएल प्रबंधन जिम्मेदार होगा। लेकिन दुख की बात यह है कि पांच साल बाद भी बीसीसीएल, जेआरडीए या प्रशासन तनिक गंभीर नहीं है। झरिया में अगर कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो यह एक बहुत बड़ी त्रासदी होगी। प्रबंधन खतरनाक इलाके में सिर्फ एक नोटिस चस्पा कर अपनी इतिश्री कर ले रहा है। लोगों को केवल घर खाली करने का दबाव बनाया जा रहा है। इससे बीसीसीएल की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है। बीसीसीएल कई क्षेत्र की जमीन का अधिग्रहण कर कोयला भी निकाल लिया है। लोगों को अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया गया है। इसके अलावा घनुडीह, दुर्गापुर, बालूगदा, फतेहपुर बस्ती, कोईरीबाध, बर्फ कल, झरिया स्टेशन रोड की जनता भी प्रभावित है। मुरारी ने अधिकारियों से अनुरोध किया है कि मामलेे की गम्भीरता को देखते हुए अविलंब इन लोगों को वहां से विस्थापित किया जाए ऐसा नहीं हुआ तो झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति चुप नहीं बैठेगी। लोगो को न्याय दिलाने के लिए हर लड़ाई लड़ेगी।

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