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    बच्चों की हर जिद पूरी करना जरूरी नहीं! अपने लाडले को ना कहना सीखें, पर उसे उसका कारण भी बताएं

    By Jagran NewsEdited By: Deepak Kumar Pandey
    Updated: Sat, 03 Dec 2022 12:41 PM (IST)

    आपका बच्चा आपसे बहुत सी चीजों के लिए जिद करेगा उग्र भी होगा आंख भी तरेर सकता है नाराज भी होगा जिसकी आपने कल्पना भी न की होगी लेकिन इन सबके बीच आपको बहुत तरीके से ना करने की आदत डालनी होगी। ना जरूर करें।

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    शुक्रवार को दैनिक जागरण विमर्श कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बच्‍चों के बदलते स्‍वभाव पर चर्चा की।

    जागरण संवाददाता, धनबाद: आपका बच्चा आपसे बहुत सी चीजों के लिए जिद करेगा, उग्र भी होगा, आंख भी तरेर सकता है, नाराज भी होगा जिसकी आपने कल्पना भी न की होगी, लेकिन इन सबके बीच आपको बहुत तरीके से ना करने की आदत डालनी होगी। ना जरूर करें। बच्चे की हर मांग पूरी न करें, लेकिन ना करने का कारण भी उसे जरूर बताएं। समझाएं कि जिसकी वह मांग कर रहा है, वह वाकई जरूरी है भी या नहीं। बच्चों से खुलकर संवाद करें। उन्हें समय दें। अच्छे बुरे का फर्क समझाएं। स्कूल से घर आए तो यह जरूर पूछें कि आज उसने स्कूल में पढ़ा, भले ही उस विषय के बारे में आपकी जानकारी शून्य ही क्यों न हो। इससे बच्चे को यह लगेगा कि पेरेंट्स को उसकी फिक्र है। यह नहीं कि अपना पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें दूसरी चीजों में व्यस्त रहने की सलाह दे दें।

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    शुक्रवार को दैनिक जागरण विमर्श कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ से कई ऐसी बातें निकल कर सामने आयीं जो अभी के समय में बच्चों के उग्र होते स्वभाव, उनकी बेवजह की जिद और अभिभावक व बच्चों के बीच के गैप भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि अभिभावक अपने बच्चों को समय दें, मोबाइल, इंटरनेट मीडिया पर नजर बनाए रखें, टीनएजर्स को बाइक-स्कूटी या कार न दें, उनकी हर गतिविधि पर नजर रखें, दोस्ताना माहौल बनाएं, समय मिले तो उनके साथ खेलें, समय-समय पर काउंसलिंग करें।

    आइआइटी आइएसएम की सहायक प्रोफेसर रश्मि सिंह कहती हैं कि गलती हमारी है। कहते कुछ हैं, करते कुछ और और दिखाते कुछ और हैं। लोग सीमित हो रहे हैं। एक छत के नीचे रहते हुए बच्चों और अपनों को वक्त नहीं दे रहे। मोरल वैल्यू खत्म हो रही है। नैतिक पतन अधिक हुआ है। बच्चे गलती करते हैं तो उन्हें शर्मसार करने की जगह गलत-सही की फर्क बताएं। हम सभी स्वार्थी होते जा रहे हैं। नजरिया बदलना होगा। माहौल खुशनुमा बनाने और खुद में समझदारी लाने की जरूरत है।

    आइआइटी आइएसएम के एसीआइसी की सीईओ डाॅ. आकांक्षा सिन्हा ने कहा कि अभिभावक अपने बच्चों से ना कहना सीखें। उन्‍हें इसका कारण भी बताएं कि क्यों ना कहा। बच्चों का समय किस्से-कहानियों की दुनिया से हटकर मोबाइल पर चला गया है। एकल फैमिली होने की वजह से चीजें अधिक तेजी से बदली हैं। यूट्यूब वगैरह सच्चाई से परे है। यह फेक वर्ल्ड है और बच्चे इसी पर अधिक समय बिता रहे हैं। हम खुद मोबाइल में बिजी रहते हैं। बच्चा कुछ पूछता है तो उसे भी उसी में बिजी कर देते हैं।

    गोविंदपुर में संचालित ग्लोबल स्कूल ऑफ इंडिया की प्राचार्या विद्या सिंह कहती हैं कि बच्चों से संवाद बहुत जरूरी है। उन्हें समय दीजिए, बात कीजिए। वो क्या चाहते हैं यह जानने का प्रयास करें। अपने बच्चे की तुलना किसी दूसरे से न करें। हो सकता है आपका बच्चा गणित में कमजोर हो, लेकिन म्यूजिक में उससे बेहतर कोई न हो। समाज के दबाव में आकर तुलना न करें। अंकों के खेल में न उलझें। बच्चों की सुने, हो सकता है वो मानसिक-शारीरिक तौर पर कहीं प्रताड़ित हो रहा हो।

    जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की सदस्य पूनम सिंह ने कहा कि यूट्यूब बच्चों को सबसे अधिक बिगाड़ रहा है। आप खाने की रैसिपी ढूंढते हैं। इसके बाद इतने लिंक खुल जाते हैं कि आप शर्मिंदा हो जाएंगे। छोटी उम्र में लड़के-लड़कियों के घर से भागने के मामले आ रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं इंटरनेट मीडिया, यूट्यूब और इस तरह के अन्य साधन जिम्मेदार हैं। अभिभावकों को सचेत रहना होगा, बच्चों से बात करनी होगी, उनका मन टटोलना होगा।

    लायंस क्लब आफ धनबाद की अध्‍यक्ष नीरज वर्णवाल ने कहा कि अपने बच्चे पर नियमित ध्यान दें। हो सकता है बच्चा डिप्रेशन में हो। ऐसा है तो उसकी काउंसलिंग कराएं। आज समाज में यह देखने को मिलता है कि डिप्रेशन की काउंसलिंग कराने जाते हैं तो लोग कानाफूसी करने लगते हैं। पागल तक कहते हैं। इसकी परवाह किए बिना काउंसलिंग कराएं, यह काफी कारगर है। इसी के साथ बच्चों को ना कहना भी सीखें। उनकी हर जिद न मानें। ना कहने का कारण भी बताएं।

    बीएसएस बालवाड़ी स्कूल के शिक्षक दिलीप कर्ण का कहना है कि अभिभावकों एवं बच्चों के बीच संवाद नहीं होता है। आज बच्चे ने स्कूल में क्या पढ़ा, यह जरूर पूछें। भले ही आपको उस विषय की जानकारी नहीं है। शिक्षा प्रणाली में भी कुछ दोष है। बच्चे नैतिक शिक्षा से दूर हुए हैं। स्कूलों में इनकी काउंसलिंग जैसा कुछ भी नहीं है। इंटरनेट मीडिया और अन्य सर्वसुलभ संसाधनों ने बच्चों को उग्र बना दिया है। बच्चों को प्यार और अभिभावकों के साथ की बहुत जरूरत है।

    इनरव्हील क्लब ऑफ धनबाद की सदस्य रेणु कौशल का मानना है कि लाॅकडाउन में बच्चे और अभिभावक जरूर एक-दूसरे के पास आए, लेकिन इस बीच घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़े हैं। बच्चों पर ध्यान देना होगा। उनसे बात करनी होगी। उनके पसंद-नापसंद के बारे में जानना होगा। दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार और साथ दिलाना होगा।

    कुसुम विहार में संचालित किड्ज केयर प्ले स्कूल की प्राचार्या रिया सिंह ने कहा कि बच्चा अगर किसी चीज की जिद करे तो उसकी हर बात न मानें। कारण सहित उसे ना कहना भी सीखें। चीजों की वैल्यू समझाएं। यह भी बताएं कि उसके अभिभावक उसके लिए किसी तरह से चीजें लाकर दे रहे हैं। बच्चा घर के बाहर क्या कर रहा है, देख रहा है, इसपर भी नजर रखें।

    मनोरम नगर कला भवन में संचालित विद्या मंदिर के निदेशक मनोज कुमार सिंह का कहना है कि टीवी और मोबाइल पर लड़ाई-झगड़े वाली कार्टून देखने से बच्चों के मनोवृति बदलती है। इससे उनका व्यवहार उग्र होने लगता है। इसके लिए बच्चों की काउंसलिंग जरूरी है। अकेले बच्चे न सिर्फ चिड़चिड़े और जिद्दी हो गए हैं बल्कि अपनी बात न कह पाने के कारण घर में तोड़फोड़ कर रहे हैं। टोकने पर मां बाप से मारपीट भी करते हैं। स्कूल और अभिभावक दोनों को इस ओर ध्यान देना होगा।

    बाल संप्रेषण गृह के काउंसलर प्रियरंजन ने बताया कि किशोरावस्था में मानसिक एवं शारीरिक बदलाव होते हैं। इसलिए बच्चों में काउंसलिंग जरूरी है। किशोरावस्था में जिज्ञासा बढ़ती है। बच्चे 360 डिग्री में सोचते हैं। इसलिए अभिभावकों का दायित्व है कि बच्चों को अपनत्व और सुरक्षात्मक भावना से महसूस कराएं। आजादी दें, पर उसकी सीमा निर्धारित हो।

    बाल संरक्षण आयोग झारखंड की सदस्य डाॅ. आभा वीरेंद्र आकिंचन ने कहा कि नैतिक शिक्षा की शुरुआत घर से ही होती है। माता-पिता व्यस्तता के बीच एक घंटे का भी आदर्श समय बच्चों के लिए निकालें। वो क्या पढ़ रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, मोबाइल पर क्या देख रहे हैं, माता-पिता इसके भागीदार बनें। बच्चों की गलतियां सुधारें, छिपाना बंद करें।