सिंदरी की बसंती कुमारी पैरों के सहारे गढ़ रही हैं बच्चों का भविष्य, स्टूडेंट मानते हैं अपना रोल मॉडल
सिंदरी की बसंती कुमारी जन्म से विकलांग हैं पर उन्होंने इसे कमजोरी नहीं बनने दिया। बिना हाथों के वे पैरों से लिखकर बच्चों को पढ़ाती हैं। परिवार में सबसे बड़ी होने के नाते उन्होंने अपनी बहनों की शादी करवाई। बसंती पारा शिक्षिका हैं और स्थायी नौकरी की उम्मीद कर रही हैं ताकि अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें।

बरमेश्वर शर्मा, सिंदरी। इंसान शरीर से नहीं मन से विकलांग होता है। मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा की यह पंक्ति को चरितार्थ कर रही है सिंदरी की बसंती कुमारी।
बसंती जन्म से ही विकलांग है। बच्चों को पैर से लिखकर स्कूल में पढ़ाती है। बसंती के दोनों हाथ नहीं हैं। लेकिन कभी भी अपनी विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने दी। बसंती पांच बहने हैं। जिसमें वो सबसे बड़ी हैं।
पिता की वर्ष 2008 में ही मृत्यु हो गई, जिसके बाद मां के साथ ने उसकी हिम्मत को बल दिया। बसंती को छोड़ बाकी सभी बहने सामान्य है। सभी बहनों की उन्होंने अपने बदौलत शादी भी करवा दी। बसंती सिंदरी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
पैर से लिखने की कला ने बसंती को बनाया रोल मॉडल
बसंती 1993 में मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद 1995 में प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट, फिर 1999 में बीए व 2009 में बीएड की। वर्ष 2005 में ही उत्क्रमित उच्च विद्यालय रोहड़ाबांध में पारा शिक्षक के पद पर बसंती की नियुक्ति हुई और आज भी इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाती हैं।
ब्लैक बोर्ड पर लिखने की जरूरत होती है तो पैर की उंगलियों में चॉक फंसाकर आसानी से लिख लेती हैं। यहां तक की पैर में पेन फंसा कर रजिस्टर पर हाजिरी भी बनाती है। इसी तरह बच्चों का गृह कार्य जांचने से लेकर परीक्षा की कॉपी भी जांचती हैं।
बसंती की इस हौसले से विद्यालय के छात्र-छात्रा को एक नया ऊर्जा देते आ रहा है। दोनों हाथ नहीं होने पर भी पैरों से लिखने की कला ने उसे आज रोल मॉडल बना दिया है। कक्षा में बसंती व छात्रों के बीच रिश्ता बहुत ही मिलनसार है। छात्र उन्हें अपना प्रेरणा मानते है।
जटिल हौसले के बाद भी स्थायी शिक्षिका नहीं बन पाना बसंती को है दर्द
आज भी बसंती पारा शिक्षक के रूप में ही उच्च विद्यालय में अपनी सेवा दे रही है। बसंती की नौकरी स्थायी नहीं हुई है। लेकिन फिर भी बसंती की मजबूत इरादे डगमगाए नहीं बल्कि चट्टानी पहाड़ों के तरह अटल रहा। बसंती ने कई बार सीटीईटी की परीक्षा में भी सम्मिलित हुई पर महज दो/चार अंकों से वह पीछे रह गई।
जिस कारण वह स्थायी शिक्षक नहीं बन पाई। जिसका दर्द उसे आज भी है। बसंती ने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि उसे दिव्यांग कोटे से विशेष श्रेणी में स्थायी शिक्षक की नौकरी दी जाए ताकि परिवार का भरण पोषण हो सके।
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