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    Visually impaired IAS officer Rajesh Kumar Singh: अपनी कमजोरी को ही बना डाली सफलता की सीढ़ी, निराशा में वाजपेयी की कविता से लेते प्रेरणा

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Mon, 20 Jul 2020 08:02 AM (IST)

    IAS officer Rajesh Kumar Singh दिव्यांगों की विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में तीन बार भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है। दृष्टिबाधिता को अपनी विशिष्टता बना लिया है।

    Visually impaired IAS officer Rajesh Kumar Singh: अपनी कमजोरी को ही बना डाली सफलता की सीढ़ी, निराशा में वाजपेयी की कविता से लेते प्रेरणा

    बोकारो [ बीके पाण्डेय ]। झारखंड कैडर के आइएएस अधिकारी राजेश कुमार सिंह (IAS officer Rajesh Kumar Singh)। उनकी दृष्टि बाधित है। आंखों में सिर्फ दस फीसदी रोशनी है। पहली बार उपायुक्त के नाते बोकारो भेजे गए राजेश कुमार सिंह ने अपनी इस कमजोरी को ताकत बना लिया है। वे किसी का चेहरा देख कर फैसले नहीं लेते। जो जायज है, जिससे अधिसंख्य लोगों को फायदा है, उनके निर्णय वही होते हैं। उनके हौसले पर गौर कीजिए। क्रिकेट का बाल पकड़ने में वे कुआं में गिर गए थे। इसी कारण उनकी आंख चली गयी। कोई दूसरा होता तो फिर क्रिकेट के नाम से नफरत करता। राजेश कुमार सिंह की क्रिकेट के प्रति उतनी ही दीवानगी है, जितनी पहले थी। आंखों की रोशनी जाने के बाद भी क्रिकेट खेलते रहे। दिव्यांगों की विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में तीन बार भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने दृष्टिबाधिता को अपनी विशिष्टता बना लिया है। है ना अनोखी बात।

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    अटल बिहारी वाजपेयी की कविता से मिलती प्रेरणा

    राजेश कुमार सिंह (Rajesh Kumar Singh)  का जीवन किसी फिल्म की कहानी की तरह है। छोटे थे तो क्रिकेट खेलने में आंखों की रोशनी गंवा दी। मगर उन्हें जीवन का लक्ष्य हमेशा बिल्कुल स्पष्ट दिखता रहा। जब कभी निराश होते थे तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यह कविता सुनते थे अथवा गुनगुनाते थे, 'हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं।' अटलजी की यह कविता उन्हें मंजिल की ओर बढऩे के लिए प्रेरित करती रही। 2007 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल होने के बाद यूपीएससी ने राजेश कुमार सिंह को आइएएस बनाने पर आपत्ति की। उन्होंने हार नहीं मानी। उच्चतम न्यायालय तक मुकदमा लड़ा। आखिरकार उच्चतम न्यायालय ने उन्हें आइएएस के लिए योग्य माना। न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने टिप्पणी की थी, 'आइएएस अधिकारी के लिए दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण जरूरी है।' 2010 में उनका चयन आइएएस के लिए हुआ। पहले असम कैडर दिया गया। फिर झारखंड कैडर दिया गया। उसके बाद हमेशा सचिवालय में रहे। किसी सरकार ने उपायुक्त बनाने पर विचार नहीं किया। अब पहली बार बोकारो का उपायुक्त (Bokaro Deputy Commissioner Rajesh Kumar Singh) बनाया गया है। राजेश कुमार सिंह कहते हैं, सरकार की प्राथमिकता ही सब कुछ है। संवेदनशील प्रशासन देना दायित्व है।

    'पुटिंग द आइ इन आइएएस' के बाद जल संरक्षण पर किताब
    राजेश कुमार सिंह किताब लिखने के भी शौकीन है। उनकी पहली पुस्तक 'पुटिंग द आइ इन आइएएस' है। इस पुस्तक को पाठकों की सराहना मिली तो उत्साह बढ़ा। दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण चाहिए शीर्षक से उस किताब का हिन्दी संस्करण भी लिखे हैं। और भी कई किताबों की रचना करने के बाद अब जल संरक्षण पर अगली पुस्तक लिख रहे हैं। उनकी किताबें एमेजन व फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां बेच रही हैं। राजेश कहते हैं, 'पहली पुस्तक में मेरा संघर्ष थी। मेरी भावनाएं थी। पुस्तकों से जो आय होती है, उसे वे दिव्यांग लोगों में खर्च करते हैं।'

    विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम का किया प्रतिनिधित्व
    राजेश याद करते हैं कि छह साल के थे तो क्रिकेट की बाल को कैच करने में कुआं में गिर गए थे। रोशनी चली गयी। फिर भी क्रिकेट के प्रति प्रेम पूरी शिद्दत से कायम रहा। 1998, 2002 और 2006 में दिव्यांगों के लिए आयोजित विश्व कप प्रतियोगिता में उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम ( Indian cricket team) का प्रतिनिधित्व किया। विश्व कप में भी क्रिकेट की बाल पकडऩे के लिए उतनी ही चपलता दिखायी जितनी बचपन में थी।

    काम लटकाने की प्रवृति से राजेश को सख्त नफरत
    बोकारो उपायुक्त राजेश कुमार सिंह समय के पाबंद है। उन्हें काम लटकाने की प्रवृति से सख्त नफरत है। कहते हैं कि इसी प्रवृति के कारण सरकारी अधिकारियों के प्रति लोगों की धारणा खराब होती है। उपायुक्त के नाते उनकी कार्यशैली गौरतलब है। खुद लोगों का फोन रिसीव करते हैं। बिना किसी की मदद के फोन से बात करते हैं। इसके लिए तकनीक की मदद लेते हैं। सरकारी फाइलों में दस्तखत करने में उनके हाथ नहीं कांपते।

    दिल्ली में साथ पढ़ने वाले पांच दोस्तों को नहीं भूलते
    दिल्ली में राजेश कुमार सिंह पांच दोस्तों के साथ रहते थे। परिजनों के साथ अपनी कामयाबी का श्रेय दोस्तों को भी देते हैं। कहते हैं, देवघर के किसी प्रखंड में शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के नाते कार्यरत राजेंद्र कुमार ने उन्हें सबसे पहले प्रेरणा दी थी। पटना में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद देहरादून चले गए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में पीजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक भाई अमेरिका के मैनहटन में है तो दूसरे इंडिगो डिजिटल में बड़े ओहदे पर हैं। पिता रवींद्र कुमार सिंह पटना व्यवहार न्यायालय में बतौर प्रशासी अधिकारी थे। बहन व बहनोई पटना में सर्जन हैं। कहते हैं, आज जिस जगह पर हैं, वो परिजन, गुरुजन एवं दोस्तों की बदौलत है।