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    Capsule Gill: आइआइटी (आइएसएम) के इतिहास में अमर हुए जसवंत सिंह गिल, इस रियल हीरो के नाम छात्रों को मिलेगा सेफ्टी अवार्ड

    Yashwant Singh Gill जसवंत सिंह गिल मेमोरियल इंडस्ट्रियल सेफ्टी एक्सीलेंस अवार्ड इसी वर्ष से शुरू किया जाएगा। पुरस्कार पाने वाले छात्र के चयन के लिए आइआइटी ने एक श्रेणी बनाई है।

    By MritunjayEdited By: Updated: Thu, 03 Sep 2020 03:29 PM (IST)
    Capsule Gill: आइआइटी (आइएसएम) के इतिहास में अमर हुए जसवंत सिंह गिल, इस रियल हीरो के नाम छात्रों को मिलेगा सेफ्टी अवार्ड

    धनबाद, जेएनएन। Yashwant Singh Gill  रियल लाइफ के सुपर हीरो रहे जसवंत सिंह गिल के नाम पर पुरस्कार दिया जाएगा। यह अवार्ड प्रत्येक वर्ष एक व्यक्ति को दिया जाएगा। इसकी घोषणा आइआइटी (आइएसएम) धनबाद ने कर दी है। गिल आइआइटी-आइएसएम-IIT (ISM) के 1965 बैच के छात्र थे। उनके निधन के बाद संस्थान ने जसवतं सिंह के नाम से पुरस्कार देने का निर्णय कर अपने पूर्ववर्ती छात्र को सम्मान दिया है।

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    जसवंत सिंह गिल मेमोरियल इंडस्ट्रियल सेफ्टी एक्सीलेंस अवार्ड इसी वर्ष से शुरू किया जाएगा। इसके लिए संस्थान ने एक श्रेणी बनाई है जिसके तहत पुरस्कार पाने वाले छात्र का चयन किया जाएगा। संस्थान का मानना है कि कैप्सूल मैन जसवंत सिंह गिल के किए गए कार्य ऐतिहासिक था। पुरस्कार का उद्​देश्य भी कुछ ऐसा ही है कि भारतीय उद्योग में सुरक्षा मानकों में सुधार के लिए आत्म निर्भार भारत अभियान के तहत अभिनव प्रौद्योगिकी विकास और आवेदन को बढ़ावा देना। इस पुरस्कार को पाने के लिए कुछ तकनीकि पक्ष भी हैं। जैसे औद्योगिक सुरक्षा में सुधार के लिए स्वदेशी तकनीक और तकनीकों के विकास में जिन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्हें ही इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा। पुरस्कार पाने वाले को 50,000 हजार रूपये, एक पट्टिका और प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा। आइआइटी (आइएसएम) के निदेशक प्रो. राजीव शेखर ने बताया कि जसवंत सिंह गिल जैसे छात्र ने संस्थान को गौरवांवित करने का काम किया है। उनकी याद में संस्थान ने यह पुरस्कार शुरू किया है। 

    जसवंत सिंह गिल से बने कैप्सूल मेन 

    13 नवंबर 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज के निकट महावीर खदान में 64 मजदूर फंस गए थे। छह की मौके पर ही मौत हो गई थी। जसवंत सिंह गिल ने खदान में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए स्टील का कैप्सूल बनाकर छह घंटे में निकाला था। वे उस समय एडिशनल चीफ माइनिंग इंजीनियरिंग थे।  इस ऑपरेशन का उल्लेख सबसे बड़ा कोयला खदान बचाव अभियान में किया गया है। जानकारों का कहना है कि बाद में उनके कैप्सूल मैथड का इस्तेमाल कर कई देशों ने मजदूरों को बचाया। वर्ष 1988 में बीसीसीएल से ईडी सेफ्टी एंड रेस्क्यू से रिटायर हुए। नवंबर 2019 में 79 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो चुका है। रिटायरमेंट के बाद वे अपने परिवार के साथ अमृतसर में रह रहे थे।