BIT SINDRI के सर्जक प्रो. देशपांडे ने दिया था अखंड बिहार में मेलियेबुल उद्योग का सूत्र Dhanbad News
1950 के 17 नवंबर को सिंदरी में बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के नाम से प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई। कोयला क्षेत्र का यह दूसरा तकनीकी संस्थान है।
धनबाद [बनखंडी मिश्र ]। 1950 के 17 नवंबर को, सिंदरी में, बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के नाम से (बाद में बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई। कोयला क्षेत्र का यह दूसरा तकनीकी संस्थान है। इसके पहले 1926 में इंडियन स्कूल ऑफ माइंस (आइआइटी आइएसएम) की स्थापना हो चुकी थी।
बीआइटी सिंदरी के आदि निदेशक एवं प्राचार्य प्रोफेसर डीएल देशपांडे (कार्यकाल नवंबर 1950-अप्रैल 1961) थे। वे वैश्विक स्तर के धातुशास्त्रविद् माने जाते थे। बीआइटी को एक मुकम्मल संस्थान बनाने में देशपांडे का अवदान इतना महत्वपूर्ण और विस्तृत रहा कि उन्हें बीआइटी का सर्जक या शिल्पी कहा जाता है। यों, इस संस्थान का बीजारोपण 1949 में पटना में हुआ था, जहां केवल विद्युत एवं यांत्रिक अभियंत्रण की पढ़ाई की शुरुआत हुई थी। बीआइटी सिंदरी के प्रथम कुलसचिव (रजिस्ट्रार) बनकर, मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज के गणित-विभाग के प्राध्यापक डॉ. त्रिभुवन प्रसाद पधारे थे। डॉ. प्रसाद मूलतया शाहाबाद जिले के निवासी थे और जर्मनी से गणितशास्त्र में डॉक्ट्रेक्ट की उपाधि पाई थी। लम्बे समय तक बीआइटी, सिंदरी की सेवा करने के बाद, उनकी पदोन्नति बिहार सरकार के तकनीकी शिक्षा महानिदेशक के रूप में हुई थी।
मुझे भी डॉ. प्रसाद का शिष्य होने का सौभाग्य, मुंगेर स्थित कॉलेज में मिला था। डॉ. प्रसाद के कारण मुझे बीआइटी के निदेशक प्रो. देशपांडे का आशीर्वाद मिला। मैं प्राय: शनिवार को बीआइटी जाया करता था और उत्तर भारत के छात्रों के बीच (रविवार शाम तक) रहकर बौद्धिक आदान-प्रदान करता था। बीआइटी के शुभारंभ होने पर, कोयला राजधानी के व्यपारीगण भी उधर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके। उनलोगों में, झरिया का जालान परिवार सबसे आगे रहा। उस परिवार के प्रह्लाद जालान उस संस्थान के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री, अधिकारियों के लिए ड्रेस-कपड़े की सप्लाई करने लगे। प्रह्लादजी की सेवा-भावना से प्रभावित होकर देशपांडे साहब ने उन्हें मेलियेबुल लोहा बनाने का सूत्र दिया, जो उन दिनों तक पूरे बिहार में कहीं नहीं बनता था। प्रह्लाद जालान ने पूंजी लगाकर 'हिन्दुस्तान मेलियेबुल्स' नामक कारखाना भूली हाल्ट के दक्षिण में शुरू किया। चूंकि, उन दिनों पूरे राज्य भर में मेलियेबुल लोहा कहीं नहीं बनता था, इसलिए जालान फैक्ट्री के उत्पाद की मांग काफी तेजी से बढ़ गई और देखते ही देखते कंपनी की ख्याति चहुंओर फैल गई। देशपांडे साहब के फार्मूले ने, प्रह्लाद बाबू को कपड़ा व्यापारी से उद्योगपति बना दिया। उस कारखाने की देखभाल तो पहले प्रह्लाद जालान खुद करते थे। बाद में, उसकी जिम्मेवारी उन्होंने अपने पुत्र अशोक जालान को सौंप दी। कुछ समय पश्चात, आज जहां सिटी सेंटर है वहां जालान हाउस बना। इसी भवन के ऊपरी तल्ले पर आवास बना और निचले तल्ले पर हिंदुस्तान मेलियेबुल्स का नगरीय कार्यालय खुला। वर्तमान के एशियन जालान अस्पताल की जमीन भी प्रह्लाद जालान एवं उनके पुत्रों ने ही दी थी।
उन दिनों भारत में मेलियेबुल उत्पाद की धूम मची थी। धनबाद के ही धैया रोड में परमेश्वर अग्रवाल (जो बाद में राज्यसभा सांसद बने) ने 'अनूप मेलियेबुल्स' स्थापित किया। 'हिन्दुस्तान मेलियेबुल्स' भूली में आस-पास के श्रमिक (दिहाड़ी) जुटने लगे थे। इस बिंदु पर यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि भूलीनगर, पूरे एशिया महादेश की सबसे बड़ी श्रमिक कॉलोनी है, जिसका निर्माण लेबर डिपार्टमेंट के चीफ वेलफेयर कमिश्नर ब्रिगेडियर बाग सिंह की देख-रेख में हुआ था। देश में उन दिनों फैली बेरोजगारी और सिद्धांतविहीन नेतागिरी अपने में एक भयानक राष्ट्रीय समस्या बनी हुई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि उस कारखाने के इर्द-गिर्द घातक बारूद की फसल लगाने के लिए, सिद्धांतविहीन नेतागण जुटने लगे। एक ऐसा भी समय आया कि कारखाने के निदेशक अशोक कुमार जालान का 14 दिसंबर 2000 को उस वक्त अपहरण कर लिया गया, जब वे अपने चालक के साथ भूली स्थित कारखाना जा रहे थे। हीरक प्वाइंट, मेमको मोड़ के समीप छह से सात की संख्या में जुटे बदमाशों ने कार समेत अशोक का अपहरण कर लिया था।
अपहरण के कुछ घंटे बाद ही बदमाशों ने खलील को छोड़ दिया था। 18 दिनों के बाद अशोक कुमार जालान को भी अपहरणकर्ताओं ने मुक्त कर दिया। यह कांड उस समय काफी चर्चित हुआ था।
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