Jagran LIVE: जिस नक्सली को पकड़ने के लिए एक करोड़ का रखा गया इनाम, उसके गांव में 40 साल से ठहरा हुआ है वक्त
धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड का आखिरी गांव नावाटांड़ व दलुगोड़ा। घोर माओवाद प्रभावित। इसके बाद गिरिडीह जिला शुरू हो जाता है। भाकपा माओवादी की केंद्रीय समिति का सदस्य प्रयाग मांझी का गांव यही है। वही प्रयाग मांझी जिसे पकड़ने के लिए सरकार लगातार इनाम की राशि बढ़ाती रही।

दिलीप सिन्हा, धनबाद (दलुगोड़ा से LIVE): भाकपा माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य व एक करोड़ के इनामी नक्सली प्रशांत बोस को 2021 के अंत में पुलिस ने गिरफ्तार किया। हालांकि इसके बावजूद नक्सली संगठन पर पारसनाथ के माओवादियों का शिकंजा नहीं टूटा। प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद पारसनाथ के एक-एक करोड़ के तीन इनामी प्रयाग मांझी, मिसिर बेसरा एवं पतिराम मांझी उर्फ अनल दा ने संगठन की कमान संभाल ली है।
वैसे तो इन तीनों पर शिकंजा कसने के लिए पुलिस एवं सीआरपीएफ की टीम लगातार पसीना बहा रही है, लेकिन इनका थिंक टैंक माना जाता है 1980 में नक्सलवाद की दुनिया में कदम रखने वाले प्रयाग मांझी को। प्रयाग मांझी उर्फ विवेक उर्फ फुचना उर्फ नागो मांझी उर्फ करण दा उर्फ लेतरा। भाकपा माओवादी की सेंट्रल कमेटी सदस्य है। दो दर्जन से अधिक मामले इसके नाम दर्ज हैं। साल 2021 में 21 नवंबर को प्रशांत बोस के पकड़े जाने के बाद माओवादियों ने इस वर्ष की शुरुआत में ही चार जनवरी को पश्चिमी सिंहभूम के गोईलकरा में मनोहरपुर के पूर्व भाजपा विधायक गुरुचरण नायक पर हमला कर दिया। हमले में पूर्व विधायक बाल-बाल बच गए थे, जबकि उनके दो अंगरक्षक शहीद हो गए थे। वारदात को अंजाम देनेवाले माओवादी अंगरक्षकों के तीन एके 47 लूटकर ले गए थे। प्रयाग मांझी के दस्ता संभालने के बाद झारखंड में यह सबसे बड़ी घटना थी।
हालांकि कहानी का यह सिर्फ एक हिस्सा है। दूसरा हिस्सा तो है धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड का आखिरी गांव नावाटांड़ व दलुगोड़ा। घोर माओवाद प्रभावित। इसके बाद गिरिडीह जिला शुरू हो जाता है। भाकपा माओवादी की केंद्रीय समिति का सदस्य प्रयाग मांझी का गांव यही है। वही प्रयाग मांझी, जिसे पकड़ने के लिए सरकार लगातार इनाम की राशि बढ़ाती रही। वही प्रयाग मांझी, जो शायद आज सरकार और पुलिस के सामने खुद आत्मसमर्पण कर दे तो सरकार उसे तत्काल एक करोड़ रुपये सौंप दे, लेकिन उसके गांव की दशा सुधारने के लिए एक करोड़ भी खर्च नहीं हुए हैं। गांव तक जाने को पक्की सड़क नहीं है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर 40 साल से जिस गांव के लोगों ने हथियार उठा रखे हैं, उस गांव की सूरत जो तब थी, कमोबेश वही अब है। मानो 40 साल से वक्त वहीं ठहरा पड़ा है।

दलुगोड़ा गांव से बराकर नदी दो किमी दूर है। रोजमर्रा के कामकाज के लिए नदी तक लोग जा नहीं सकते। एक कुआं और एक चापाकल है। गर्मी में कुआं सूख जाता है। पेयजल के लिए चापाकल का सहारा है। चापाकल से इंसान की प्यास बुझ रही है और सूअर की भी। महिलाएं बर्तन साफ करती हैं तो उससे जमा पानी से सूअर समेत बाकी मवेशी प्यास बुझाते हैं। जहां इंसान वहां सुअर को आने की इजाजत क्यों? ग्रामीण कहते हैं, क्या करे। खुद पानी पीते रहें और जानवर को प्यासा छोड़ दें, ऐसा कैसे संभव है।
सूर्योदय से शुरू सफर सूर्यास्त संग होगा खत्म: धनबाद जिला मुख्यालय से दलुगोड़ा की दूरी 55 किलोमीटर है। अगर दलुगोड़ा के किसी ग्रामीण को जिला मुख्यालय आना है तो सूर्योदय से शुरू हुआ सफर सूर्यास्त होने पर समाप्त होगा। कोई यात्री वाहन नहीं चलता। आटो की भी सुविधा नहीं है। पैदल चलकर नावाटांड़ आना होगा। एकाध घंटा इंतजार करने के बाद यात्री वाहन मिल सकता है। नहीं भी। वहां से मनियाडीह आइए। नावाटांड़ से दलुगोड़ा के लिए रास्ता नहीं है। वर्षों पहले जो रास्ता बना था, वो चलने लायक नहीं है।
नावाटांड़ से ही फैला था माओवाद: धनबाद एवं गिरिडीह में माओवाद की शुरुआत नावाटांड़ गांव से ही हुई थी। रावण मांझी पहला माओवादी था। इस इलाके में माओवाद के विस्तार में उसकी बड़ी भूमिका रही है। प्रशांत बोस का भी यह लंबे समय तक कार्यक्षेत्र रहा है। साथ गिरफ्तार हुई उनकी पत्नी शीला मरांडी भी इसी गांव की है। प्रयाग मांझी भी यहीं का है, जिसकी झारखंड, बिहार, बंगाल समेत कई राज्यों की पुलिस को तलाश है।
ग्रामीणों का दुखड़ा: गांव के लोग प्रयाग मांझी को जानते जरूर हैं, पर कोई बात नहीं करना चाहता। कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें अब नहीं मालूम कि प्रयाग मांझी जीवित है, मृत है या जेल में है। आज की तारीख में अपनी ही समस्याओं में इतने घिरे हुए हैं कि बस सरकार और प्रशासन की ओर उम्मीद भरी नजरें टिकाए हैं। अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का शोर शुरू हुआ है तो विकास की उम्मीद फिर जगी है।
गांव के 26 वर्षीय बाबूजन बास्की कहते हैं कि क्षेत्र में रोजगार नहीं है। विवश होकर बंगाल समेत दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। 42 साल की ललिता देवी कहती हैं कि पीने का पानी नसीब नहीं है, लेकिन इसे कोई देखने वाला भी नहीं है। प्रेमचंद बास्की का कहना है कि गांव के बगल में ही स्कूल बन रहा है। जिला प्रशासन चाहता तो यहां काम दे सकता था, लेकिन बंगाल के लोग काम कर रहे हैं। हम बेरोजगार हैं। सुखलाल बास्की कहते हैं कि पीसीसी सड़क की योजना शुरू हुई, फिर भी सड़क अधूरी है। इसे न अफसर देखते हैं और न कोई नेता।

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