सरकारी अस्पतालों में गजब का खेल! नियमों के खिलाफ डॉक्टर लिख रहे 'ब्रांडेड दवा'; मरीज बाहर से खरीदने को मजबूर
बिहार के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों द्वारा नियमों का उल्लंघन करते हुए ब्रांडेड दवाइयां लिखने का मामला सामने आया है। मरीजों को बाहर से महंगी दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि अस्पतालों में जेनरिक दवाइयां उपलब्ध हैं। यह गरीबों के लिए एक बड़ी समस्या है।

जागरण संवाददाता, धनबाद। SNMMCH के कई चिकित्सकों को ब्रांडेड दवा से मोह नहीं छूट रहा है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के निर्देशों स्पष्ट निर्देशों के बावजूद ओपीडी में चिकित्सक जेनरिक दवा नहीं लिख रहे हैं।
अस्पताल में दो जगहों पर जेनरिक दवा की दुकान है। एक स्त्री व प्रसूति रोग विभाग व दूसरा ओपीडी भवन के दूसरे तल पर, लेकिन चिकित्सक बाहर की दवा लिख रहे हैं। ऐसे में यहां आने वाले गरीब मरीजों की दवा के निजी दुकान जाना पड़ रहा है। यहां आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
जेनरिक में 4 से 6 गुनी कम कीमत पर दवा
ब्रांडेड दवा की तुलना में जेनरिक दवा लगभग 4 से 6 गुनी सस्ती तक होती है। ब्रांडड में जिस दवा की कीमत 100 रुपए होती है, इसकी कीमत जेनरिक में कई बार 20 से भी कम रहती है।
सुगर का मेटफार्मिंग की कीमत ब्रांडेड में 200 तक होती है, जेनरित में 6 रुपए है। एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन ब्रांडेड में 150 हो, तो जेनरिक में 30 से 40 रुपए है।
दवा लिखने पर मिलता है बड़ा कमीशन
अस्पताल के चिकित्सकों के साथ दवा कंपनियों के सांठगांठ है। दवा लिखने पर चिकित्सक को 30 से 40 प्रतिशत तक कमीशन मिल रही है। बताया जाता है कि अस्पताल के बाहर के दवा दुकान से भी कुछ चिकित्सकों के सांठगांठ हैं।
केस एक
निरसा के रहने वाले 30 वर्षीय विकास महतो बुखार व खांसी है। मेडिसिन विभाग में चिकित्सकों से दिखाया। चिकित्सक ने एमोमाक्सी क्लेव 625, ओमजे़ड 20, लिवोवैक्स 80, कालपोल 650, माटिंकप दवा लिख दी।
अस्पताल से एकमात्र एंटीबायोटिक मिला। बाकी के ब्रांडेड दवा के लिए बाहर जाना पड़ा, जबकि इसके जेनरिक दवा अस्पताल के जन औषधि केंद्र में रखा हुआ है। विकास के लिए 350 रुपए की दवा बाहर से लेनी पड़ी।
केस दो
गिरिडीह के बिरनी से 56 वर्षीय दशरथ महतो यहां इलाज के लिए आए। उनके दाहिने पैर में चोट है। चिकिक्सक ने यहां जांच कर जीरोडाल एसपी, ओमेज, लायमे फोर्ट समेत छह दवा लिख ली।
गैस की की दवा अस्पताल से मिली, बाकी दवा को बाहर से लेना पड़ा। दशरथ ने बताया कि चिकित्सक ने एक खास दवा दुकान भेजा था, वहां पर दवा दुकान वाले ने पूरा पैसा लिया और बिल भी नहीं दिया।
जानें एनएमसी का क्या है निर्देश?
-सरकारी डाक्टरों को पर्ची में किसी ब्रांड का नाम नहीं लिखना है। उन्हें जेनरिक दवा नाम लिखना है।
-पर्ची में दवा का नाम बड़े अक्षरों में होना चाहिए, जिससे उसे आसानी से पढ़ा जा सके।
-मनरीजों को दवा खरीदने के लिए जन औषधि केंद्रों से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
जेनरिक दवा लिखने के लिए निर्देश जारी है। इसका पालन करना होगा। समय समय पर ओपीडी में इसे लेकिन निरीक्षण हो रहे हैं। ब्रांडेड दवा नहीं लिखना है। चिकित्सकों से अपील की गई है। -डॉ. सीएस सुमन, वरीय अस्पताल प्रबंधक, एसएनएमएमसीच, धनबाद

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