राजा बलि का अभिमान तोड़ने को लिया वामन का अवतार
संवाद सहयोगी निरसा राधा गोविद मंदिर में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य सनत गोपाल मह

संवाद सहयोगी, निरसा : राधा गोविद मंदिर में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य सनत गोपाल महाराज ने जड़भरत चरित्र, प्रह्लाद चरित्र, नरसिंह अवतार व बलि वामन प्रसंग का वर्णन किया। सनत गोपाल जी महाराज ने कहा कि दैत्यासुर हिरण्यकश्यपु बड़ा ही अहंकारी था। उसको ऐसा भ्रम था कि पूरी पृथ्वी का ईश्वर वो ही है। भक्त प्रह्लाद का जन्म दैत्यासुर हिरण्यकश्यपु की पत्नी कयाधु के गर्भ से हुआ था। दैत्यकुल में जन्म लेने के बाद भी भक्त प्रह्लाद श्रीहरि विष्णु को ही ईश्वर मानते थे। वे नित्य नियमानुसार उनकी आराधना करते थे जिस कारण हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद पर अत्यंत क्रोधित रहता था। वह हमेशा प्रह्लाद से कहता था कि इस पृथ्वी के ईश्वर हम हैं। लेकिन भक्त प्रह्लाद पिता के लाख समझाने के बावजूद श्रीहरि विष्णु को ही ईश्वर मानता था। पिता ने अनेकों बार भक्त प्रह्लाद को मृत्युदंड देने की कोशिश की। लेकिन हर बार श्रीहरि विष्णु किसी न किसी रूप में आकर उसे बचा लेते थे। हिरण्यकश्यपु को यह वरदान प्राप्त था कि न ही उसकी मृत्यु आकाश में होगी न ही पाताल में होगी। इसी कारण श्रीहरि विष्णु ने दैत्यासुर के वध के लिए नरसिंह रूप धारण किया और उसका वध करके उसे मोक्ष प्रदान किया। ठीक उसी प्रकार महाराज बलि को अपने राज पाट पर बड़ा अहम था। उनका ऐसा मानना था कि कोई भी उनके दरवाजे से खाली हाथ नहीं जा सकता। राजा के इसी अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान ने वामन अवतार लिया और राजा बलि को मोक्ष प्रदान किया। मौके पर यजमान भागीरथ लाहा,श्यामल तिवारी,संजय मिश्रा,वृजभूषण शर्मा,विजय शर्मा,मोहन अग्रवाल,रघुवीर खेड़िया,चिन्मय घोष,नोरंग खरकिया, रमेश गोयल, माधव प्रसाद खरकिया,संजीव भगत आदि उपस्थित थे ।
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