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    जानें-बिहार के उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री का धनबाद कनेक्शन, पुरानी बातों को लोग कर रहे याद

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 11 Feb 2021 08:40 AM (IST)

    बिहार के नए उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार का धनबाद से नाता रहा है। वे धनबाद के पुलिस कप्तान रह चुके हैं। उनकी गिनती ईमानदार पुलिस अधिकारियों के रूप में होती रही है। राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद उन्होंने कभी ताकत का बेजा प्रदर्शन नहीं किया।

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    धनबाद के पूर्व पुलिस अधीक्षक सुनील कुमार बने बिहार के मंत्री ( फाइल फोटो)।

    धनबाद [ जागरण स्पेशल ]। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 9 फरवरी को पटना में अपने मंत्रिमडल का विस्तार किया। उनके मंत्रिमंडल में कुल 17 लोग शामिल किए गए। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मुख्यमंत्री ने विभागों का बंटवारा भी कर दिया। सुनील कुमार को बिहार का उत्पाद एवं मद्य निधेष मंत्री बनाया गया। उनके मंत्री पद की शपथ लेने और उनको उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग मिलने की खबर जैसे ही मीडिया में आई धनबाद के लोग उनकी चर्चा करने लगे। वे बिहार के मंत्री है। धनबाद बिहार से बाहर दूसरे राज्य झारखंड का जिला है। इसके बावजूद सुनील कुमार से धनबाद का एक रिश्ता रहा है। अब जब वे मंत्री बन गए हैं तो यहां के लोग पुराने दिनों को याद कर रहे हैं।  

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    तेज तर्रार आइपीएस अधिकारी के रूप में होती रही गिनती

    सुनील कुमार पुलिस सेवा से बिहार की राजनीति में आए हैं। वे 1987 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं। उनकी गिनती तेज तर्रार आइपीएस अधिकारियों में होती रही है। वह बिहार के एडीजी के पद से 31 जुलाई, 2020 को सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद 29 अगस्त, 2020 को जदयू में शामिल हो गए। बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में जदयू ने सुनील कुमार को गोपालगंज जिले के भोरे सुरक्षित सीट से जदयू प्रत्याशी बनाया। चुनाव में जीत दर्ज की। और अब बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री हैं। कुमार मूल रूप से बिहार के गोपालगंज जिले के ही रहने वाले हैं। दलित समाज से आते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश ने सुनील को मंत्री बनाकर दलित समाज को साधने की कोशिश की है।  

    सुनील कुमार को राजनीति की सीख विरासत में मिली

    सुनील कुमार भले ही पुलिस से राजनीति में आए हैं लेकिन राजनीति के दांव-पेंच उन्होंने बचपन से ही देखे हैं। सुनील कुमार के पिता चंद्रिका राम कांग्रेस के टिकट पर 1952 में बिहार विधानसभा के लिए हुए पहले चुनाव में भोरे सीट से निर्वाचित हुए थे। 1957 में भी जीत दर्ज की। उनकी गिनती बिहार में कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती थी। सुनील कुमार के बड़े भाई अनिल कुमार राजद से राज्यसभा सदस्य रहे हैं। अनिल कुमार ही 2015 में भोरे सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे। बिहार विधानसभा चुनाव- 2020 के दाैरान कांग्रेस ने अनिल कुमार को टिकट नहीं दिया। भोरे सीट कांग्रेस ने गठबंधन में भाकपा माले के लिए छोड़ दिया। इसके बाद जदयू के टिकट पर सुनील कुमार चुनाव मैदान में उतरे। भाकपा माले प्रत्याशी जितेंद्र प्रसाद को 1026 मतों के अंतर से पराजित कर जीत दर्ज की। 

    क्या है सुनील कुमार का धनबाद से रिश्ता

    सुनील कुमार 1987 बैच के आइपीएस अधिकारी रहे हैं। उस समय झारखंड बिहार का हिस्सा था। बिहार का ही धनबाद एक महत्वपूर्ण जिला था। सुनील कुमार की बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नजदीकी अधिकारियों में गिनती होती थी। लालू ने सुनील कुमार को बिहार के कई जिलों की कमान साैंपी। इस क्रम में धनबाद का भी पुलिस कप्तान बनाया। सुनील कुमार 26 जून, 1995 से 27 मार्च, 1997 तक धनबाद के पुलिस अधीक्षक के पद पर रहे। लंपटई के उस काल में सुनील कुमार की ईमानदर अधिकारियों में गिनती होती थी। उनका विवाद से कभी रिश्ता नहीं रहा।  

    उनके कार्यकाल को आज भी लोग करते याद

    मजबूत राजनीतिक परिवार और आइपीएस अधिकारी होते हुए भी सुनील कुमार एरोगेंट नहीं थे। धनबाद के पत्रकार रंजन झा उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं-सुनील कुमार मानवादी थे। धनबाद में एसपी रहते हुए कभी किसी को तंग नहीं किया। आमताैर पर जब जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान की गाड़ी गुजरती है तो आगे-आगे पायलट चलता है। पायलट गाड़ी धुल उड़ाती और सायरन बजाती चलती है। इन सब चीजों से सुनील कुमार परहेज करते थे। भीड़-भाड़ वाले इलाकों से गुजरते समय ड्राइवर को हार्न तक बजाने से मना कर देते थे। उनके समय का बड़ा ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामला आज भी लोग याद करते हैं। एक थानेदार ने एक दलित नेता के मुंह में चाैकीदार से पेशाब करवा दिया। मामला सामने आने पर थानेदार के खिलाफ कार्रवाई हुई। सुनील ने उस नेता से कहा, नेतागिरि छोड़ दो। आइएएस-आइपीएस की तैयारी करो। हम मदद करेंगे। चूंकि उस नेता के बारे में सुनील कुमार को जानकारी मिली थी कि उनके एक बार यूपीएससी परीक्षा पीटी पास की थी। हालांकि उस नेता ने सुनील कुमार की बात नहीं मानी। राजनीति की। राजनीति में सफलता भी नहीं मिली।