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    आजादी के बाद हजारों ने राष्ट्र निर्माण में दी जमीन की आहूती, अब भी न्याय का इंतजार Dhanbad News

    By mritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 15 Aug 2019 10:37 AM (IST)

    झारखंड के धनबाद जामताड़ा और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और वद्र्धमान के ग्रामीणों ने भी 1954 में अपनी जमीन दामोदर वैली कॉरपोरेशन को मैथन और पंचेत बांध बनाने के लिए दी थी।

    आजादी के बाद हजारों ने राष्ट्र निर्माण में दी जमीन की आहूती, अब भी न्याय का इंतजार Dhanbad News

    धनबाद [राजीव शुक्ला]। देश की आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में देशवासी अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे थे। तब झारखंड के धनबाद, जामताड़ा और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और वद्र्धमान के ग्रामीणों ने भी 1954 में अपनी जमीन दामोदर वैली कॉरपोरेशन को मैथन और पंचेत बांध बनाने के लिए दी थी। ताकि देश को बिजली मिले। डीवीसी बना। बावजूद झारखंड और बंगाल के चार जिलों के 240 गांव के वाशिंदों को हक नहीं मिला। उनकी तीसरी पीढ़ी को आज भी नियोजन और मुआवजा का इंतजार है। साठ बरस से इनकी जंग जारी है। इनका दर्द प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। 13 बरस से इनकी आवाज बने घटवार आदिवासी महासभा के सलाहकार रामाश्रय सिंह कहते हैं कि 73 वर्ष का हो गया हूं। पर, संघर्ष करने का अभी भी माद्दा है, इनको हक दिलाकर रहूंगा।

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    बताया कि झारखंड से लेकर दिल्ली तक करीब डेढ़ सौ बार आंदोलन किया है। 2017 में धनबाद में दामोदर नदी के किनारे विस्थापितों के गांव सीमपाथर में तो छह माह तक सत्याग्रह किया था। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, ऊर्जा मंत्री व अन्य जिम्मेदार लोगों तक इनका दर्द पहुंचाया है। बावजूद हक नहीं मिला। इसी वर्ष 23 अप्रैल को उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की है। 1954 में 240 गांव के 12 हजार परिवारों की 38 हजार एकड़ जमीन व पांच हजार घर डीवीसी ने अधिग्रहीत किए। साढ़े नौ हजार लोगों को नौकरी दी गई। इनमें से नौ हजार फर्जी लोगों को विस्थापित बताकर नियोजन दे दिया गया। मामले की सीबीआइ जांच की मांग कर रहे हैं।

    जमीन मालिक कर रहे दिहाड़ी मजदूरी : रामाश्रय कहते हैं कि दो पीढिय़ां तो संघर्ष करते दम तोड़ गईं। अब तीसरी पीढ़ी हक को जंग कर रही है। जो कभी रैयत थे, उनके वंशज दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। सीम पाथर गांव के प्रकाश प्रमाणिक के पूर्वज महेश प्रमाणिक की करीब बारह एकड़ जमीन डीवीसी में गई थी। वह दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है। गांव के शंभू के दादा बुधन मांझी ने दो एकड़ जमीन व मकान डीवीसी को दिया। इस परिवार को भी हक का इंतजार है।

    हमें पूरा भरोसा, हक जरूर मिलेगा: सीमपाथर गांव के विस्थापित शंभू टुडू, कामेश्वर मरांडी, राजू महतो, आनंद महतो, राम प्रसाद सिंह कहते हैं कि हम सच्चाई के मार्ग पर चल रहे हैं। रामाश्रय सिंह के नेतृत्व में हम अपना हक लेकर रहेंगे।

    एफसीआइ में डेढ़ हजार श्रमिकों को कराया था स्थायी : गोपालगंज बिहार में जन्मे रामाश्रय ने 1964 में प्रोजेक्ट डेवलपमेंट इंडिया सिंदरी में नौकरी शुरू की। इस बीच सिंदरी के फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के खाद कारखाने व पीडीआइएल में अस्थायी मजदूरों के बारे में पता चला। उनको स्थायी कराने के लिए आंदोलन किया और करीब डेढ़ हजार श्रमिकों को स्थायी कराया। विभिन्न आंदोलनों के चलते रामाश्रय अब तक 70 बार जेल जा चुके हैं।