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    Durga Puja 2025: झरिया राजागढ़ से शुरू हुई मां दुर्गा की अराधना, यहां आज भी जीवित हैं परंपराएं

    Updated: Mon, 29 Sep 2025 08:25 AM (IST)

    झरिया में दुर्गा पूजा की शुरुआत राजा संग्राम सिंह ने 1752 में राजागढ़ से की थी। उन्होंने डोम राजा को हराया और पुरुलिया से मिट्टी लाकर दुर्गा प्रतिमा स्थापित की। बाद में झरिया के चार अन्य स्थानों पर भी मंदिर बनवाए गए। राज परिवार के सदस्य आज भी बंगला पंचांग के अनुसार पूजा करते हैं। दशमी को प्रतिमा का विसर्जन राजा तालाब में किया जाता है।

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    झरिया ऐतिहासिक राजागढ़ का दुर्गा मंदिर। जागरण फोटो

    सुमित राज अरोड़ा, झरिया। झरिया में मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत बकरीहाट राजागढ़ से मानी जाती है। मंदिर में मौजूद लोगों की माने तो डोम राजा को पराजित कर राजा संग्राम सिंह सन् 1752 में झरिया की राजगद्दी संभालने के बाद राजागढ़ में मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत हुई। वहीं, राज परिवार के सदस्यों ने बताया कि सन् 1800 के बाद राजा संग्राम सिंह ने महामाई की पूजा की नींव राजागढ़ में रखी थी।

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    राजा संग्राम सिंह के बाद राजा उदित नारायण सिंह व रासबिहारी सिंह ने इस परंपरा को बनाए रखा और विधिवत पूजा का विस्तार करते रहे। इसके बाद राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने राजगद्दी संभलते ही धार्मिक गतिविधियों को विशेष प्राथमिकता दी। उनके कार्यकाल में पुराना राजागढ़ परिसर में मां दुर्गा का भव्य मंदिर निर्माण कराया गया। साथ ही ठाकुर बाड़ी व सिराघर की स्थापना की गई थी।

    दुर्गा पूजा के दौरान राजा रानी सहपरिवार मंदिर पहुंचते थे। आज भी यहां बंगला पंचांग के अनुसार पूजा किया जाता है। राजपरिवार के कुल पुरोहित मुखर्जी परिवार द्वारा पीढ़ियों से मंदिर की पूजा अर्चना करते आ रहे है।इसके अलावा राजा द्वारा अन्य चार स्थानों में भी मां दुर्गा की पूजा के लिए मंदिर स्थापित की। जिसमें प्रमुख रूप से आमलापाड़ा, पोद्दार पाड़ा, मिश्रा पाड़ा व चार नंबर है जहां विधि विधान से पूजा होता है।

    लोगों की माने तो राजागढ़ में मां दुर्गा की स्थापना के कुछ वर्ष बाद उक्त चारों स्थानों में मंदिर का निर्माण किया गया था। पूजा के दौरान राजपरिवार की बहुएं सिराघर में घटरा पकवान बनाकर मां को भोग लगाती है। दशमी में मां की प्रतिमा को कंधे पर ले जाकर राजा ताला में विसर्जन किया जाता है।

    पुरुलिया में मां दुर्गा की पूजा देख राजा ने शुरू की झरिया में पूजा:

    झरिया राजागढ़ में आयोजित दुर्गा पूजा के सदस्य पहलवान कुमार ने बताया कि डोम राजा को पराजित कर राजगद्दी संभालने के बाद राजा संग्राम सिंह पुरुलिया जा रहे थे। इस दौरान उन्होंने वहां दुर्गा पूजा देखा। उन्होंने भी मां दुर्गा का पूजा अपने राज्य में करने को सोचा। जिसके बाद दूसरे वर्श उन्होंने पुरुलिया से मिट्टी लाकर राजागढ़ में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा शुरू की। उन्होंने कहा कि लगभग 20 साल बाद झरिया के अन्य चारों स्थानों में मंदिर स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा की शुरू हुई है।

    पंचदेव मंदिर में मां दुर्गा की पूजा:

    झरिया के राजा ने राज पुरोहित कतरास में रहने वाले मनोरंजन चक्रवर्ती के पूर्वज को चार नंबर में जमीन देकर मां दुर्गा की मंदिर बनवाया था। मंदिर को चोटिर मेला नाम देकर मां दुर्गा की पूजा शुरू हुई। यहां भी मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर षष्ठी से पूजा की शुरूआत होती है। दशमी को यहां पर मां दुर्गा की प्रतिमा को कंधा देकर विसर्जन किया जाता है।

    दुर्गा मंदिर में होती है पारंपरिक पूजा

    झरिया के राजा ने मिश्रा परिवार को मिश्रा पाड़ा में मां दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दिया था। बंगला पंचाग व राजागढ़ दुर्गा मंदिर की पूजा की तरह षष्ठी से मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। मंदिर मिसिर मेला के नाम से भी जाना जाता है। दशमी को कंधे पर राजा तालाब में प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

    पोद्दारपाड़ा में होती है पारंपरिक पूजा:

    पोद्दारपाड़ा में भी राजा ने अपने पुरोहित मुखर्जी परिवार को मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने के लिए जमीन दिया था। यहां मुखर्जी परिवार के लोग परंपरागत तरीके से मां की पूजा करते हैं। कलश का पानी राजा तालाब से ही लिया जाता है। मां की प्रतिमा का विसर्जन कंधे पर किया जाता है। मंदिर को मुखर्जी मेला के नाम से जाना जाता है।

    अमलापाड़ा में राजा के कर्मियों ने शुरू की थी पूजा:

    झरिया के राजा के कई अमला अमलापाड़ा में रहते थे। राजा ने यहां के लोगों को दुर्गा मंदिर बनाने के लिए जमीन दिया था। यहां भी राजागढ़ की परंपरा के अनुसार ही षष्ठी को मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। प्रतिमा का विसर्जन कंधा देकर राजा तालाब में किया जाता है।

    मां दुर्गा की पूजा राजा संग्राम सिंह द्वारा राजागढ़ में सबसे पहले शुरू की गई। इसके बाद उन्हेांने झरिया के अन्य चार स्थानों में मां दुर्गा की पूजा शुरू कराई। सह परिवार पूजा में भाग लेते है। उन्होंने कहा कि पूजा की शुरूआत लगभग सन् 1800 के बाद शुरू हुई थी। जो आज भी विधि विधान के साथ लगातार पूजा अर्चना चलते आ रहा है। - माधवी सिंह, पुत्र वधु राजपरिवार झरिया