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    कैकेयी यानी वह स्‍त्री, जिसने राम को मां से भी बढ़कर प्रेम दिया... उनके चरित्र को गढ़ा और वन भेज दिया

    By Deepak Kumar PandeyEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jul 2022 02:08 PM (IST)

    डॉक्‍टर मीतू बताती हैं कि हम सभी के मन में कैकेयी की एक विमाता के रूप में छवि बनी हुई है तब भी हम यह जानते हैं कि कैकेयी के अलावा किसी ने सामर्थ्य नहीं था कि वह राम को वनवास भेजकर रावण के काल का कारण बने।

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    उस सामर्थ्यशाली स्त्री के सामर्थ्य की चर्चा इस पुस्तक में मिलती है।

    धनबाद [आशीष सिंह]: अभी हाल ही में कवियत्री डॉ मीतू सिन्हा की पुस्तक 'भरत की मां' का विमोचन डॉ शुकदेव भोई, कुलपति विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, डॉ विकास कुमार कुलसचिव बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय एवं इंद्रभूषण सिंह जिला शिक्षा अधीक्षक ने सामूहिक रूप से राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर में किया। डॉ मीतू सिन्हा ने इस पुस्तक में 'भरत की मां' अर्थात कैकेयी के जीवन वृत्त का रेखांकन किया है।

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    डॉक्‍टर मीतू बताती हैं कि हम सभी के मन में कैकेयी की एक विमाता के रूप में छवि बनी हुई है, तब भी हम यह जानते हैं कि कैकेयी के अलावा किसी ने सामर्थ्य नहीं था कि वह राम को वनवास भेजकर रावण के काल का कारण बने और उस सामर्थ्यशाली स्त्री के सामर्थ्य की चर्चा इस पुस्तक में मिलती है।

    डॉक्‍टर मीतू ने विस्तृत रूप में कैकेयी के जीवन का वर्णन किया है। इस पुस्तक में कैकेयी के पिता अश्वपति एवं मां शुभलक्षणा के जीवन से लेकर उस समय तक का वर्णन है, जब राम ने वन से लौटकर कैकेयी के सम्मान को पुनः स्थापित किया था। कैकेयी को उस समय की एक स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और स्वावलंबी स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। कैकेयी अर्थात स्त्री सम्मान का प्रतीक, कैकेयी अर्थात स्त्री भागीदारी का प्रतीक, कैकेयी अर्थात दृढ़ संकल्प शक्ति का प्रतीक। कैकेयी अर्थात वह स्त्री, जिसने राम को मां से भी बढ़कर प्रेम दिया। उनके चरित्र को गढ़ा और उसी सर्वप्रिय राम को वन भेज दिया। उस स्त्री की अंतर्दशा का वर्णन इस पुस्तक में बखूबी किया गया है। एक स्त्री जिसने भरत जैसे पुत्र का निर्माण किया, उसे वह संस्कार दिए कि अपने भाई के पीछे अपने प्राण तक की चिंता ना करे। उस स्त्री ने स्वयं अपने ही पुत्र का आवमान इसलिए झेला कि उसे उसी पुत्र से यह सुनने को मिला कि उसने परिवार को तोड़ दिया। उस समय उत्पन्‍न उसकी पीड़ा का आकलन कर सटीक वर्णन इस पुस्तक में मिलता है।

    यह पुस्तक एक ऐसे विषय का चयन करती है, जो रामायण जैसे महाग्रंथ का एक अनछुआ पहलू है। कैकेयी के चरित्र की बहुत विशेष चर्चा कहीं देखने को नहीं मिलती। मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी पुस्तक साकेत में कैकेयी के अनुताप का वर्णन किया है, लेकिन उस चरित्र का इतना विस्तृत विश्लेषण एवं उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि शायद ही किसी पुस्तक में वर्णित हो। इसमें कैकेयी को किसी राजकुमारी अथवा किसी चक्रवर्ती सम्राट की महारानी के रूप में नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली नारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। डॉक्‍टर मीतू बताती हैं कि भरत की मां शीर्षक उन्‍होंने इसलिए दिया, क्योंकि कैकेयी की पहचान इतिहास में तब हुई, जब उसने भरत की मां बनकर सोचना आरंभ किया और अपने पुत्र के हितों की रक्षा के लिए प्रिय राम को वन भेज दिया।

    लेखिका ने पूरी कथा को संवाद शैली में प्रस्तुत किया है, जो पाठक को अंत तक बांधे रखती है तथा पुस्तक का आकर्षण बनाए रखती है। 'भरत की मां' वास्तव में पढ़ने योग्य एवं संग्रह करने योग्य है।