Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानें-कभी धान से आबाद था धनबाद, अब देश में कोयला ही पहचान Dhanbad News

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 24 Oct 2019 05:10 PM (IST)

    24 अक्टूबर 1956 को धनबाद जिला की स्थापना हुई। 1918 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी मिस्टर लुबी अपर उपायुक्त हुआ करते थे। उन्होंने धानबाइद का नाम बदलकर धनबाद करने का प्रस्ताव दिया।

    जानें-कभी धान से आबाद था धनबाद, अब देश में कोयला ही पहचान Dhanbad News

    धनबाद [बनखंडी मिश्र]। धनबाद के इतिहास में 24 अक्टूबर की तारीख महत्वपूर्ण है। 24 अक्टूबर 1956 को धनबाद जिला की स्थापना हुई थी। इसी दिन सरकार की अधिसूचना के तहत धनबाद जिला बना था। 26 अक्टूबर को इस जिले के पहले उपायुक्त शरण सिंह ने पदभार ग्रहण किया था। एक नवंबर से धनबाद ने प्रशासनिक तौर पर पूर्णरूपेण एक जिले के रूप में काम करना प्रारंभ कर दिया। 1912 से पूर्व धनबाद, बंगाल राज्य के मानभूम जिला के अन्तर्गत एक अनुमंडल-मात्र था। उसके बाद यह बिहार के अन्तर्गत रहा। देश की कोयला राजधानी के रूप में इस कृषि-प्रधान (उन दिनों यहां खेती खूब होती थी) जिले का पूर्व में नाम धानबाइद (बाइद नामक धान के उत्पादन के कारण) था। लेकिन, कालांतर में नाम धनबाद हो गया। अब तो लोग इसके नाम की व्याख्या धन से आबाद से भी जोड़कर करते हैं। आज 63 वर्ष पूरे हो चुके हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मिस्टर लुबी ने बदल कर रखा धनबाद का नाम : 1956  से पूर्व धनबाद, बिहार के मानभूम जिले का उपजिला होता था। उस समय इसके प्रशासनिक प्रमुख अपर उपायुक्त हुआ करते थे। 1918 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी मिस्टर लुबी (जिनके नाम पर आज धनबाद शहर में लुबी सकुर्लर रोड है) धनबाद के अपर उपायुक्त हुआ करते थे। उन्होंने धानबाइद का नाम बदलकर धनबाद करने का आग्रह सरकार से किया, जिसपर सरकार की ओर से स्वीकृति मिल गई और धनबाद नाम पर मुहर लग गई।

    इलाहाबाद की संधि के तहत धनबाद आया था अंग्रेजों के जिम्मे : आधुनिक भारतीय इतिहास की विख्यात एवं बहुचर्चित संधि यानी इलाहाबाद की संधि के तहत अंग्रेजों का अधिकार धनबाद पर पहले-पहल हुआ था। दरअसल, यह संधि मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय एवं ब्रिटिश सेना अधिकारी राबर्ट क्लाइव के बीच 16 अगस्त 1765 को हुई थी। यह संधि बक्सर के युद्ध (22 अक्टूबर 1764 ) के फलस्वरूप अंग्रेजों ने मुगलिया सल्तनत को बाध्य कर किया था। इसके बाद से ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की शुरूआत मानी जाती है। इस संधि के तहत अंग्रेजों को बिहार, बंगाल और उड़ीसा में दीवानी का अधिकार मिल गया था। इस अधिकार के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को इन राज्यों में टैक्स वसूलने का जिम्मा मिला था। सामान्य सी बात है कि जो जहां टैक्स वसूलता है, लगभग शासन भी उसी का चलता है। इसी तरह धनबाद भी ब्रिटिश शासन की छतरी के नीचे आ गया। 1767  में मानभूम के राजा ने इस इलाके के ब्रिटिश अधिकारी फग्यरुसन को 441 रुपए, 05 आने और नौ पाई प्रतिवर्ष टैक्स देना स्वीकार किया था।

    1833 से 1956 तक रहा मानभूम का अंगः धनबाद 1833 से 1956  तक मानभूम का अंग रहा। स्वतंत्र जिला बनने के बाद, धनबाद में दो अनुमंडल बनाए गए-धनबाद और बाघमारा। तोपचांची, बाघमारा और कतरास समेत तीन थाने बाघमारा अनुमंडल के अन्तर्गत थे। वहीं, चास और चंदनकियारी धनबाद के अंतर्गत थे। 22 मार्च 1912 से पहले तक बिहार और उड़ीसा, बंगाल प्रांत के साथ थे। उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने बिहार एवं उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया। वहीं, एक अप्रैल, 1936 को बिहार राज्य उड़ीसा से अलग किया गया। मानभूम बिहार का ही हिस्सा रहा। प्रशासनिक तौर पर मुख्यालय पुरुलिया था। जहां तक राजनीतिक दलों के गठन, एकजुटता और संचालन का सवाल है, इसका भी हेडक्वार्टर पुरुलिया ही था। उन्होंने ही रामचन्द्रपुर नामक स्थान पर पहला मानभूम जिला राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया। उस सम्मेलन की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने की थी। इस संस्था का दूसरा सम्मेलन झालदा में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता यतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता ने की थी।

    भाषाई विवाद ने खड़ा किया था बड़ा बवालः धनबाद जैसे औद्योगिक क्षेत्र में आजादी का जंग ठीक-ठाक चलता रहा। लेकिन, स्वतंत्रता-प्राप्ति (15 अगस्त 1947) के बाद कुछ राजनीतिक विघटन भी शुरू हो गया। मानभूम जिला कांग्रेस कमेटी की एक बैठक (1948 ) में अतुल चन्द्र घोष ने मानभूम जिला को पश्चिम बंगाल में मिलाने का अभियान शुरू कर दिया। यहां पर एक भाषाई विवाद ने आग में घी डाला। युवा कांग्रेसी नेताओं जैसे पार्वती चरण महतो, हरदयाल शर्मा, शिवप्रसाद सिंह आदि ने मिलकर एक संगठन बनाया।