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    सिख और जैन भी मनाते हैं दीपों का त्योहार

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 11 Nov 2020 01:53 PM (IST)

    धनबाद सांस्कृतिक सामाजिक धार्मिक आर्थिक हर लिहाज से दीवाली बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है।

    सिख और जैन भी मनाते हैं दीपों का त्योहार

    धनबाद : सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक हर लिहाज से दीवाली बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे सिर्फ हिदू धर्म के लोग ही नहीं, बल्कि सिख समुदाय भी उतनी ही श्रद्धा से मनाते हैं। गुजराती, बौद्ध और जैन समुदाय में भी दीपों का यह पर्व अहम स्थान रखता है। सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस तो जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। धनबाद में पंजाबियों की संख्या 22 हजार, गुजराती लगभग 14 हजार हैं। आइए जानते हैं विभिन्न समुदाय में दीयों का यह पर्व क्या मायने रखता है।

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    बंदी छोड़ दिवस के तौर पर सिखों में दीवाली

    मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु, श्री गुरु हरगोविद साहिब को ग्वालियर के किले में कैद किया था। यहां पहले से ही 52 हिदू राजा कैद थे। जब गुरु साहिब किले में आए तो सभी राजाओं ने उनका सम्मान किया। गुरु हरगोविद साहिब जी की इस प्रसिद्धि से जहांगीर को झटका लगा और साईं मियां मीर की बात मानते हुए जहांगीर ने उन्हें छोड़ने का फैसला सुना। गुरु हरगोविद साहिब ने अकेले रिहा होने से मना कर दिया और 52 राजाओं की रिहाई की बात कही। अंत में जहांगीर को गुरु जी की बात माननी पड़ी और कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली को उन्हें 52 राजाओं सहित रिहा किया गया। यह जानते हुए कि सारे राजकुमार गुरु को एक साथ एक ही समय पर नहीं पकड़ सकते, चालाक जहांगीर ने ऐलान किया कि सिर्फ उन्हीं राजकुमारों को गुरु के साथ छोड़ा जाएगा, जिन्होंने गुरु को पकड़ रखा होगा। गुरु ने तब एक ऐसा वस्त्र बनवाया जिसमें 52 डोरियां थी। हर युवराज ने एक डोरी पकड़ी और इस तरह गुरु ने सफलता से सभी को मुक्त करवाया। सिख कार्तिक अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन आतिशबाजी भी जमकर होती है। सिखों के लिए भी दीवाली इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।

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    त्याग और तपस्या के रूप में जैन धर्म में दीपोत्सव

    दीवाली को हिदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म में भी धूमधाम से मनाया जाता है। 527 बीसी में इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। यही नहीं, इसी दिन भगवान महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जैन ग्रंथों के मुताबिक, महावीर भगवान ने दीवाली वाले दिन मोक्ष जाने से पहले आधी रात को आखिरी बार उपदेश दिया था, जिसे उत्तराध्यान सूत्र के नाम से जाना जाता है। भगवान के मोक्ष में जाने के बाद वहां मौजूद जैन धर्मावलंबियों ने दीपक जलाकर रोशनी की और खुशियां मनाईं। साथ ही, उन्होंने यह निर्णय लिया कि आज यहां जल रहे दीपकों के प्रकाश की तरह भगवान महावीर के ज्ञान को भी सारी दुनिया में फैलाया जाएगा। जैन धर्म में दीवाली को याग और तपस्या के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है, इसलिए इस दिन जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर की पूजा कर उनके त्याग और तपस्या को याद करते हैं और उनके जैसा ही बनने की कामना करते हैं।

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    गुजराती घरों में धनतेरस से ही घरों में जलते हैं दीप

    धनबाद में गुजराती रच-बस गए हैं। धनबाद, झरिया, कतरास में गुजराती समुदाय के लोग अच्छी खासी संख्या में रहते हैं जो यहां रहते हुए गुजराती परिवेश में पर्व-त्योहार मनाते हैं। नवरात्र के बाद दीपावली गुजरातियों का बड़ा त्योहार है। दीपावली के अगले दिन गुजरातियों का नववर्ष शुरू होता है, इसलिए यह इनके लिए महत्वपूर्ण त्योहार है। गुजराती समाज में दीपावली को लेकर विशेष तैयारी की जाती है। घर की महिलाएं, पुरुष व बच्चे मिलकर दीपावली का स्वागत करने के लिए पूरे घर की साफ-सफाई करते हैं। घर में रखी पुरानी व अनुपयोगी वस्तुओं को बाहर कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर चली जाती है। गुजराती घरों में धनतेरस से ही घरों में दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। घर के मुख्य दरवाजे के पास दीप रखे जाते हैं। इस दिन महिलाएं चांदी-सोने की वस्तुएं भी खरीदती हैं। धनतेरस पर खरीदारी बहुत शुभ माना जाता है।

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