खनन में अब AI का 'सुपर कंट्रोल': सिंफर ने बनाया नया मॉडल, जानिए कैसे करेगा काम?
केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (CIMFR) के वैज्ञानिकों ने खनन में सुरक्षित ब्लास्टिंग के लिए एक AI आधारित मॉडल विकसित किया है। यह मॉडल ब्लास्टिंग से उत्पन्न होने वाले वायु अति-दबाव (Air Over pressure) का पूर्वानुमान लगाता है। यह तकनीक ब्लास्ट के लिए सटीक डिज़ाइन और विस्फोटक की मात्रा तय करने में मदद करती है। कोयला मैगनीज यूरेनियम व पत्थर की 33 खदानों से 699 ब्लास्ट डाटा लिए गए।

तापस बनर्जी, जागरण, धनबाद। ओपेनकास्ट माइंस में चट्टानों को विस्फोट से खंडित करना आसान है। बावजूद विस्फोटक ऊर्जा के अचानक निकलने से न केवल चट्टानें खंडित होती है, बल्कि धमाके की आवाज, भूमि कंपन, हवा में छिटकते पत्थर, धूल, विषैले धुएं का खतरा भी उत्पन्न होता है।
हवा के अत्यधिक दबाव (धमाके) से इमारतों में कंपन होता है। इससे दीवारों में दरारें, खिड़कियों के शीशे और दरवाजे टूटने का खतरा होता है। ऐसे हानिकारक प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए धनबाद के केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के विज्ञानियों ने एआइ आधारित पूर्वानुमान माडल विकसित किया है। देशभर की 33 खदानों में 699 ब्लास्ट डाटा संग्रह कर इसे तैयार किया गया है।
इसकी मदद से न केवल ब्लास्ट डिजाइन तैयार होगी, बल्कि ब्लास्टिंग के लिए बार-बार ट्रायल की जरूरत भी नहीं होगी। एआइ माडल पूर्वानुमान कर ब्लास्टिंग के लिए आवश्यक डिजाइन तय कर सकेगा। इससे बार-बार ट्रायल से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सकेगा, सुरक्षित और स्मार्ट माइनिंग भी होगी।
दस प्रकार के लिए गए आंकड़े
डाटा के तहत छेद का व्यास, छिद्र की गहराई, छिद्रों की संख्या, विस्फोटकका भार, अंतराल, स्टेमिंग लंबाई, प्रति छिद्र आवेश, कुल आवेश, अधिकतम आवेश और दूरी जैसे दस इनपुट लिए गए।
इस डाटासेट का उपयोग कर परीक्षण किया गया। जो सफल रहा। पता चला कि बड़े डाटासेट वाले प्रस्तावित मल्टी अडाप्टिव रिग्रेशन स्प्लिन मार्स माडल से वायुदाब की कुशल भविष्यवाणी हो सकती है। इसे विभिन्न भू-वातावरणों में आसानी से लागू किया जा सकता है।
अमेरिकन जर्नल में शोध को स्थान
सिंफर के इस प्रोजेक्ट में नाइजीरिया का युवा रिसर्च स्कालर चार्ल्स कोमाड्जा भी शामिल था। वे इस प्रोजेक्ट में काम करने के बाद इन दिनों में संयुक्त राज्य अमेरिका में रिसर्च स्कालर के तौर पर काम कर रहे हैं। सिंफर के इस प्रोजेक्ट को संयुक्त राज्य अमेरिका की इंस्टीट्यूट आफ नाएज कंट्रोल इंजीनियरिंग के नाएज कंट्रोल इंजीनियरिंग जर्नल में स्थान मिला है।
झारखंड, बंगाल व ओडिशा के खदानों से डाटा
बीसीसीएल की झरिया, गोविंदपुर, चांच विक्टोरिया, पुटकी बलिहारी, ईसीएल की श्रीपुर, एनटीपीसी की बरकागांव, सेल की टासरा, डीवीसी की बेरमो, एसईसीएल की जमुना, एससीसीएल की रामागुंडम समेत अल्ट्राटेक सीमेंट की शंभुपुरा लाइमस्टोन माइन, मेघालय की आधुनिक सीमेंट लाइमस्टोन माइन, राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स लिमिटेड की राक फास्फेट माइन, तोपाडीही की आयान ओर माइन, सुंदरगढ़ की आयरन व मैंगनीज ओर माइन, ओडिशा के किंयोझर की आयरन ओर माइन, ओपनकास्ट यूरेनियम माइंस, सोनभद्र स्टोन माइन व बंगाल की बीरभूम स्टोन माइन समेत 33 खदानों से डाटा एकत्रित किए गए हैं।
इस तकनीक से ऐसे होगा फायदा
अभी इंसान जो ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग कर रहा है, उसमें विस्फोटक कि केवल 20 से 30% ताकत ही चट्टान को तोड़ने के काम आती है। बाकी ऊर्जा कंपन, वायुअतिदाब (एओपी) व उड़ते पत्थरों जैसी समस्याएं पैदा करती है। वायु अतिदाब विस्फोट से उत्पन्न होनेवाली वायु तरंगें हैं सिरदर्द, सुनने की शक्ति पर असर के साथ श्वसन समस्याएं और मस्तिष्क व फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।
संरचनाओं पर इसका असर कांच के दरवाजों, खिड़कियों और दीवारों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ इमारतों में कंपन पैदा करने का हो सकता है । 133 डीबीएल से अधिक स्तर संरचनाओं को और 120 डीबीएल से अधिक स्तर मानव असुविधा का कारण बन सकता है। एआइ से समाधान संभव है।
यह ब्लास्ट डिजाइन, विस्फोटक की मात्रा तय करने में मदद करता है। यह तकनीक न केवल खनन कार्याें को सुरक्षित बनाएगी बल्कि आसपास के समुदायों व पर्यावरण को होनेवाले नुकसान को भी कम करेगी।
प्रोजेक्ट में ये थे शामिल
प्रोजेक्ट लीडर डा. आदित्य राणा, डेटा एकत्रीकरण वरिष्ठ विज्ञानी डा. सी सौम्लियाना के साथ सहयोगी के रूप में चाजर्ल्स कोमाड्जा, हेमंत अग्रवाल, आरके सिंह।
विस्फोट से उत्पन्न वायु का अत्यधिक दबाव पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डालता है। इससे खदान प्रबंधन और आसपास के निवासियों के बीच विवाद की स्थिति भी होती है। भारतीय खदानों के लिए सिंफर की ओर से विकसित एआइ माडल कारगर है। इससे हवा के दबाव का पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। विस्फोट करने वाले इंजीनियरों के लिए भी एआइ माडल सहायक होगा।
-डा. आदित्य राणा, प्रधान विज्ञानी, सिंफर
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