Bhutan का वांगचू पुल सिर्फ 42 मिलीसेकंड में ध्वस्त, भारत ने दिखाया विज्ञान कौशल
CIMFR: भारत ने भूटान में वांगचू पुल को सिर्फ 42 मिलीसेकंड में ध्वस्त कर दिया। यह भारत के विज्ञान और इंजीनियरिंग कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है। भारतीय इंजीनियरों ने अपनी दक्षता का प्रदर्शन करते हुए पुल को सुरक्षित रूप से गिराया, जो आधुनिक तकनीकों में भारत की प्रगति को दर्शाता है।

विस्फोट से वांगचू पुल को गिराने का भयावह नजारा। ( सौजन्य सिंफर)
तापस बनर्जी, धनबाद। Wangchu Bridge Bhutan नीचे बहती वांगचू नदी की जलधारा, ऊंची पहाड़ी पर सर्पीली सड़क और लैंड स्लाइडिंग का पल पल खतरा। पल भर की चूक हो जाए तो पहाड़ी के दरकने का खतरा और उससे भी अधिक दरारों से भरा खतरनाक ब्रिज।
तमाम चुनौतियों के बीच धनबाद के केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान-सिंफर Central Institute of Mining and Fuel Research (CSIR-CIMFR) विज्ञानियों ने भूटान की आसमान छूती पहाड़ी पर लटके वांगचू ब्रिज को मात्र 42 मिली सेकंड में गिरा दिया। कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग से गिराए गए वांगचू ब्रिज के लटकते हिस्से ने न विदेश में भारत का सिर ऊंचा कर दिया बल्कि भारत और भूटान के रिश्ते को भी नई ऊंचाई दी।
भूटान में दंतक परियोजना के तहत दामचू और हा के बीच दो पहाड़ों को कनेक्ट करने के लिए बन रहा 204 मीटर लंबा वांगचू ब्रिज का बड़ा हिस्सा टूट कर गिर गया था। साल 2021 में हुई घटना के बाद से दोनों ओर के पहाड़ पर ब्रिज के शेष हिस्से लटके थे।
भूटान सरकार की पहल पर रक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने यह दायित्व धनबाद के सिंफर को सौंपा। सिंफर विज्ञानियों का दल भूटान पहुंचा, जहां ब्रिज का अवलोकन किया गया। फाइनल टेस्टिंग रिपोर्ट तैयार की गई। सारी प्रकियाएं पूरी कर पांच नवंबर को दामचू और 14 नवंबर को हा के हिस्से में लटके ब्रिज को ब्लास्टिंग कर गिराया गया।
मलबे को वांगचू नदी में समाने से भी रोका
ब्रिज के लटके कंक्रीट के हिस्से को ब्लास्टिंग कर गिराने की कई चुनौतियां थीं। ब्लास्टिंग इस प्रकार करना था जिससे पहाड़ किसी भी सूरत न दरके। आसपास हाई टेंशन बिजली के केबल थे, उन्हें भी नुकसान पहुंचने से रोकना था।
जिस स्थान पर ब्लास्टिंग करनी थी, वहां चारों ओर पहाड़ी सड़कें हैं। अक्सर उस स्थान पर लैंड स्लाइडिंग होती है। ब्लास्टिंग से लैंड स्लाइडिंग को भी रोकना था। पहाड़ के नीचे वांगचू नदी है। ब्लास्टिंग के कारण उसके मलबे नदी में न गिरे, इसका भी ध्यान रखना था।
सिंफर विज्ञानियों ने ऐसा डिजाइन तैयार किया, जिससे पलक झपकते ही ब्रिज धमाके से उड़ गया और मलबे पहाड़ की तलहटी पर गिरे।
लटके ब्रिज पर थीं कई दरारें, जान हथेली पर रख कर पूरा किया प्रोजेक्ट
पहाड़ से लटके ब्रिज के अवशेष में जगह-जगह दरारें पड़ गई थीं। दरारों की वजह से वहां काम करने से कामगारों का कलेजा कांप जाता था। उनके मन की आंशका थी कि दरारों वाला ब्रिज हल्के धमाके से ही गिर जाएगा और सभी नीचे नदी में समा जाएंगे।
सिंफर की टीम ने सिस्मोग्राफ जांच कर ब्रिज के लटके हिस्से तक पहुंचने की जगह बनाई। उस जानलेवा जगह पर पहुंच कर कंक्रीट के दीवारों पर अलग-अलग ड्रिल बनाए।
ड्रिल किए जगहों पर विस्फोटक लगाए गए। पहले छोटा ब्लास्ट कर ट्रायल किया। उसके सफल रहने पर एक-एक कर दोनों ओर के ब्रिज को विस्फोट कर गिराया।
पहली बार कैंटिलिवर ब्रिज गिराने में मिली कामयाबी
नोएडा के ट्विन टावर समेत देशभर के कई संरचनाओं को गिराने में सिंफर ने अपना सहयोग दिया है। पर कैंटिलीवर यानी एक ऐसी संरचना जो एक सिरे पर किसी स्थिर संरचना से मजबूती से जुड़ा होता है और दूसरे सिरे पर बिना सहारे के होता है ब्रिज गिराने में पहली बार सफलता मिली है।
यही वजह रही कि पहले भूटान दौरे से लौटे विज्ञानियों ने संस्थान परिसर में उसी संरचना के डमी का ब्लास्टिंग कर परीक्षण किया था।
कौन-कौन थे शामिल: मुख्य विज्ञानी डा. सी सौम्लियाना, प्रधान विज्ञानी एवं प्रोजेक्ट लीडर डा. आदित्य राणा, टेक्निकल आफिसर सैकत बनर्जी, चिरंजीत रक्षित, गौरव कुमार व रौनक साहू।
120 से 150 मीटर ऊंचे पहाड़ पर कैंटिलीवर ब्रिज गिराना सिंफर के लिए माइलस्टोन है। प्रोजेक्ट बेहद चुनौतीपूर्ण था। हर पल जान जाने का खतरा था। हमारी टीम ने केवल 42-42 मिली सेकंड में दोनों ओर के ब्रिज में गिराने में सफलता हासिल की।-डा. आदित्य राणा, प्रधान विज्ञानी एवं प्रोजेक्ट लीडर, सिंफर

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