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    Mera Gaon Mera Desh: कोरोना भी नहीं हिला सका माहुरी का अर्थतंत्र, विदेशी मुद्रा से चमक रही गांव की तस्वीर

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jul 2020 02:15 PM (IST)

    Mahuri village of Giridih माहुरी गांव के करीब आठ सौ युवक विदेशों में पसीना बहा रहे हैं। लॉकडाउन में नौकरी छोड़कर कोई स्वदेश नहीं लौटा। आज भी नियमित रूप से घरों में पैसे भेजते हैं।

    Mera Gaon Mera Desh: कोरोना भी नहीं हिला सका माहुरी का अर्थतंत्र, विदेशी मुद्रा से चमक रही गांव की तस्वीर

    गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। Mahuri village of Giridih गिरिडीह से 50 किमी. दूर बगोदर प्रखंड का माहुरी गांव। आबादी करीब चार हजार। गांव में दिखती तरक्की की तस्वीर। हर घर पक्का। कोरोना भी यहां के मजबूत अर्थतंत्र को नहीं हिला सका। दरअसल यहां के युवा ट्रांसमिशन लाइन बिछाने में दक्ष हैं। अपने बड़ों से सीखा यह हुनर उनको सात समंदर पार ले गया। करीब आठ सौ युवक विदेशों में पसीना बहा रहे हैं। लॉकडाउन में नौकरी छोड़कर कोई युवक वापस नहीं लौटा। आज भी नियमित रूप से घरों में पैसे भेजते हैं। गांव की अर्थव्यवस्था इन्हीं मेहनती युवाओं के कमाए पैसों पर टिकी है। 

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    इन देशों में दिखा रहे झारखंडी अपना हुनर

    गांव के युवा मलेशिया, दुबई, सउदी अरब, अबूधाबी, कुवैत, मस्कट, युगांडा, तंजानिया, मोजांबिक, अफगानिस्तान, श्रीलंका में अपना हुनर दिखा रहे हैं। इनको केइसी इंटरनेशनल, कल्पतरु पावर ट्रांसमिशन लिमिटेड, एलएंडटी, गैमन लिमिटेड जैसी कंपनियां काम के लिए ले गई हैं। दो साल में ये एक बार 45 दिनों के लिए छुट्टी पर आते हैं। 

    इस गांव का अर्थशास्त्र  

    प्रवासी मजदूरों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने बताया कि इन कामगारों को उनकी कुशलता का आकलन कर 18 हजार से लेकर 35 हजार रुपये प्रति माह मिलते हैं। ऐसे श्रमिक घर में कम से कम 15 हजार रुपये जरूर भेजते हैं। इससे इनका परिवार आराम से चल रहा है। लॉकडाउन में देश के दूसरे राज्यों में काम करने वाले मजदूर घर लौटकर बेरोजगार हो गए। ये विदेश में ही काम कर रहे हैं। माहुरी गांव के दुर्गेश साव ने बताया कि गांव की तरक्की इन युवाओं के बूते हुई है। खुशी है कि हमारा गांव विदेश मुद्रा ला रहा है। इसलिए यहां के बाजारों में रौनक है। 

    40 साल से विदेश जा रहे गांव के लोग

    1980 के आसपास पहली बार इस गांव के बैजनाथ महतो, सेवा महतो, घमंड महतो, लाटे महतो, जयराम महतो लीबिया में मजदूरी करने गए थे। तब से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जारी है। घमंड महतो के दो पुत्र जीवाधन महतो और लालचंद महतो उसके बाद विदेश गए। कई मजदूर ऐसे हैं जिनके दादा एवं पिता भी विदेशों में रोजगार कर चुके हैं

    पति खूबलाल महतो संयुक्त अरब अमीरात में ट्रांसमिशन लाइन में काम करते हैं। लॉकडाउन में नौकरी को खतरा नहीं हुआ। 

    -प्रमिला देवी, माहुरी गांव

    दुबई, इराक समेत तीन देशों में ट्रांसमिशन लाइन में काम कर चुका हूं। अभी दुग्दा ट्रांसमिशन लाइन में काम कर रहा हूं।

    -प्रवीण कुमार, माहुरी गांव

    मैं इथोपिया में टावर लाइन में काम कर रहा हूं। लॉकडाउन का मेरे काम पर कोई असर नहीं पड़ा है।

    -खिरोधर महतो, माहुरी गांव