जब-जब माैका मिला बशीर बद्र ने झरिया में सजाई महफिल, मानते थे गद्दी बंधुओं का शहर
Bashir Badr Birth Anniversary मशहूर शायर बशीर बद्र की आज जयंती है। झरिया कोयला अंचल के शायर और साहित्यकार भी उन्हें याद कर रहे हैं। वे झरिया भी आते रहे हैं। यहां पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने दो बार शिरकत की थी।

गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया। लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता। रात का इंतजार कौन करें, आज कल दिन में क्या नहीं होता। वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, ना कहा हुआ ना सुना हुआ। कोई फूल धूप की पत्तियों में, हरे रिबन से बंधा हुआ। इन पंक्तियों के लेखक, शायर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सैयद मोहम्मद बशीर बद्र का आज जन्मदिन है। बशीर बद्र का झरिया से बहुत लगाव था। वे झरिया को उर्दू साहित्यकार गयास अहमद गद्दी और इलियास अहमद गद्दी के शहर के रूप में जानते थे। यही कारण है कि 80 के दशक में बशीर बद्र पहली बार झरिया चिल्ड्रेन पार्क में आयोजित अखिल भारतीय मुशायरा कवि सम्मेलन में आए। इसके बाद 90 के दशक में किड्स गार्डन स्कूल में आयोजित मुशायरा सम्मेलन में भी भाग लिए।
बशीर ने यहां राष्ट्रीय और स्थानीय शायरों, कवियों की महफिल सजाई थी। यह आज भी यहां के शायरों, कवियों को अच्छी तरह से याद है। चिल्ड्रेन पार्क में पहली बार आए बशीर बद्र शायरों शायरी की ऐसी महफिल सजाई कि लोग वाह-वाह कह उठे थे। चिल्ड्रेन पार्क के मुशायरा में प्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली, मेराज फैजाबादी, मल्लिक जादा मंजूर अहमद भी शरीक हुए थे। यहां के साहित्यकार इलियास अहमद गद्दी, कवि आमिर सिद्दीकी, तैयब खान, अहमद निसार, मदन सागर, रौनक शहरी, अनवर शमीम, इम्तियाज बिन अजीज, हसन निजामी, इम्तियाज दानिश, गयास अकमल, गंगा शरण शर्मा, हरि हरियाणवी, नज्म उस्मानी, अकील गयावी, अहमद फरमान जैसे झरिया और धनबाद के शायर, कवि भी शामिल हुए थे।
शायरी में मेरे पहले उस्ताद से बशीर बद्र : अहमद निसार
झरिया धनबाद में रहने वाले शायर कवि अहमद निसार पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि 40 साल पहले शायरी लिखने में कदम रखे थे। उस समय बशीर बद्र काफी प्रसिद्ध थे। वे मेरे पहले गुरु थे। मैं अपनी रचनाओं को लिखकर उन्हें डाक से उनके घर के पते में भेजता था। उनसे कुछ सिखाने का आग्रह करता था। वे मेरी रचनाओं को संशोधित कर डाक से ही भेज देते थे। इससे हमें बहुत खुशी होती थी।1993 में उनसे मुलाकात करने मेरठ पहुंचा। उनसे मिलकर दिल बाग-बाग हो गया। एक बार उन्होंने झरिया के शायर रौनक शहरी को पत्र लिखकर मुझे शायरी के गुर सिखाने की बात भी कही थी।
झरिया के कमल मेंहदी रत्ता थे बशीर बद्र के खास मित्र
शायर अहमद निसार का कहना है कि चार नंबर झरिया में कोयला व्यवसाई, समाजसेवी, साहित्य प्रेमी कंवल मेहंदी रत्ता अपने परिवार के साथ रहते थे। वे बशीर बद्र के खास मित्र थे। निसार ने कहा कि 30 साल पहले बशीर बद्र ने अपनी एक किताब आज़ादी के बाद की ग़ज़ल का तनकी़दी मुताला मेरे हवाले से कंवल को भिजवाई थी। कंवल अब इस दुनिया में नहीं हैं
महमूद हुसैन के घर पर बाहर से आए शायरों की जमती थी महफिल
शायर अहमद निसार ने कहा कि 80 और 90 के दशक में झरिया में साहित्यिक गतिविधियां खूब थी।अखिल भारतीय मुशायरा कवि सम्मेलन हुए। बाहर से आने वाले प्रसिद्ध शायरों का ठिकाना ऊपर कुल्ही स्थित साहित्य प्रेमी महमूद हुसैन के घर पर होता था। महमूद के पुत्र मोहम्मद अली का कहना है कि पिताजी झरिया उर्दू लाइब्रेरी के पदाधिकारी थे। उनका साहित्य से बहुत लगाव था। यही कारण है कि बाहर से यहां के मुशायरा कवि सम्मेलन में आने वाले प्रसिद्ध शायर और कवि मेरे यहां ही ठहरते थे।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में .....
पद्मश्री पुरस्कार बशीर बद्र की एक शायरी काफी मशहूर है। लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। इसका प्रयोग वामपंथी संगठन के लोग अपने आंदोलनों में खूब करते हैं। देश में जब भी वामपंथी आंदोलन करते हैं तो सरकार के खिलाफ इस शायरी का प्रयोग कर निशाना बनाते हैं। बशीर बद्र की यह शायरी वामपंथियों के लिए काफी अहम बन गया है। आमजन को समर्पित ऐसी अनेक शायरी बशीर बद्र ने लिखी हैं। यह आज भी लोगों की जुबान पर है।
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