Holi 2025: बाबा धाम में किस दिन खेली जाएगी होली? होलिका दहन के बाद होगा हरि और हर का मिलन; यहां जानें सबकुछ
Holi in Deoghar बाबानगगरी देवघर में होली की तारीख का ऐलान हो गया है। बाबानगरी में 13 मार्च (गुरुवार) को गुलाल वाली होली मनाई जाएगी। हरि और हर के मिलन की परंपरा के निर्वहण के साथ बाबा वैद्यनाथ का स्थापना दिवस मनाया जाएगा। गुरुवार को रात 1050 बजे होलिका दहन और 1130 बजे हरि और हर का मिलन होगा।

अजय परिहस्त, देवघर। Holi in Deoghar: देवघर परंपराओं का शहर है। यहां सालों भर धार्मिक अनुष्ठान एवं पर्व त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र ऐसी ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ का मंदिर है जहां पर हरी और हर का मिलन होता है।
मान्यता है कि होलिका दहन के बाद बाबा बैद्यनाथ मंदिर में हरी और हर का मिलन हुआ था। हरि का मतलब है भगवान विष्णु, हर का मतलब है बाबा बैद्यनाथ। ये मिलन होली के मौके पर कराया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत रावण के द्वारा आत्म लिंग को लंका ले जाने से जुड़ी हुई है।
जिस समय रावण आत्म लिंग लेकर लंका जा रहे थे, उस वक्त लिंग को धारण करने से पहले भोलेनाथ ने रावण से कहा था कि जहां पर मेरा आत्म लिंग धरती पर स्पर्श करोगे, मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा।
कैलाश से निकाल कर जब वे हार्दिकी वन, जो वर्तमान में हरला जोड़ी के नाम से जाना जाता है, वहां पर रावण को तीव्र लघुशंका लग गई। आसपास में घने जंगल निर्जन स्थल होने के कारण कोई नहीं दिखाई पड़ रहा था। उसी समय भगवान विष्णु चरवाहे के रूप में प्रकट हुए।
रावण ने उन्हें देखकर आत्म लिंग पकड़ने के लिए कहा। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि महाराज यह तो बहुत भारी है मैं ज्यादा देर तक पकड़ कर नहीं रह सकता हूं, इसलिए जल्दी आ जाइएगा।
भगवान हरि ने बाबा बैजनाथ को किया था स्थापित
रावण के बहुत देर तक लघु शंका में रहने के कारण भगवान विष्णु अपनी माया से वहां से निकलकर माता सती का जहां पर हृदय गिरा था, वहां पर बाबा बैजनाथ को स्थापित कर दिया। वह दिन फागुन पूर्णिमा का दिन था। तभी से बाबाधाम ने हरी और हर का मिलन की परंपरा चली आ रही है।
देवघर के लोग इस दिन को बाबा बैद्यनाथ की स्थापना दिवस के रूप में भी धूमधाम से मनाते हैं। इस बार 13 मार्च को हरिहर मिलन रात्रि 11:30 बजे होगा। इससे पूर्व रात 10:50 बजे पर होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। बाबा धाम में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
हरिहर मिलन के समय बाबा मंदिर गर्भ गृह में पूजा करते लोगों की फाइल फोटो।
बाबा मंदिर प्रांगण स्थित राधा कृष्ण मंदिर से 13 मार्च को शाम चार बजे डोली निकाली जाएगी। जिस पर राधा कृष्ण की मूर्ति को बिठाकर बाबा मंदिर में परिक्रमा करने के बाद आजाद चौक स्थित दोल मंच पर उसे विराजमान कराया जाएगा।
जहां पर भक्त राधा कृष्ण की मूर्ति पर अबीर-गुलाल अर्पित करेंगे एवं भंडारी परिवार के द्वारा झूला झुलाया जाएगा। वहीं, दोल मंच के नीचे रात्रि 10:50 बजे पर विधिवत होलिका दहन के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। पूजा के अंत में आहूति दी जाएगी।
इस दिन खेली जाएगी बाबा धाम में होली
इसके पश्चात भगवान श्री हरि और राधा गोपाल को पालकी पर बिठाकर नगर भ्रमण करते हुए बाबा मंदिर 11:50 बजे पर पहुंचेंगे, जहां पर हरी और हर का मिलन कराया जाएगा। इसके बाद बाबाधाम में होली शुरू हो जाएगी। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। होलिका दहन की विशेष पूजा के बाद ही हरिहर मिलन करने की परंपरा है।
तीर्थ पुरोहित विनोद दत्त द्वारी बताते हैं कि होलिका दहन के बाद ही हरी और हर का मिलन कराया जाता है। इसी दिन श्री हरि विष्णु के द्वारा बाबा बैद्यनाथ की स्थापना की गई थी। इसलिए देवघर के लोग बाबा बैजनाथ की स्थापना दिवस धूमधाम से मनाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत
होलिका दहन के दिन हिरण्यकश्यप दैत्य के द्वारा अपनी बहन की मदद से प्रहलाद को जलाने के लिए होलिका को बुलाया था। जिसको वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। इस कारण से प्रहलाद को अपने गोद में लेकर आग में बैठ गई थी।
लेकिन श्री हरि के कृपा से अनन्य भक्त प्रहलाद आग में नहीं जले और उनकी बुआ आग में जलकर भस्म हो गई । उसी दिन से यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा। शहर के विभिन्न हिस्सों में होलिका दहन को लेकर खुले मैदान में तैयारी की जा रही है।
होलाष्टक की करते हैं पूजा-अर्चना
लोग अपने-अपने घरों से पूजन सामग्री गोबर से बने पुतले एवं लकड़ी आदि की व्यवस्था में जुट गए हैं। वहीं, पुरोहित श्रीनाथ महाराज ने बताया कि सात मार्च से ही होलाष्टक शुरू हो गया है। बड़ी संख्या में सुदूर इलाकों में लोग होलाष्टक की पूजा-अर्चना करते हैं।
होलिका दहन के साथ यह अनुष्ठान पूर्ण होता है। जिसमें दान पुण्य स्नान व्रत आदि का प्रावधान है। जो लोग यह अनुष्ठान करते हैं, उन्हें सुख समृद्धि वैभव की प्राप्ति होती है।
होलिका दहन के दिन होलिका दहन करने के बाद भस्म को पुरुष माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं और महिला गले में लगाती हैं।
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