Deoghar News: देवघर में मछली कारोबारियों के बीच मचा हाहाकार! तालाब को लेकर सामने आई नई जानकारी
देवघर के करौं गांव में मछली पालन व्यवसाय सूखे के कारण संकट में है। पर्याप्त बारिश न होने से तालाबों में जलस्तर घट गया है जिससे मछली का उत्पादन प्रभावित हुआ है। 70 परिवार मछली पालन पर निर्भर हैं लेकिन इस वर्ष लागत निकलना भी मुश्किल हो रहा है। सरकारी सहायता के अभाव में यह व्यवसाय विकसित नहीं हो पा रहा है।

मनोज सिंह, करौं (देवघर)। देवघर जिला से 60 किमी दूर करौं एक ऐसा गांव है जो ताजी मछली के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां प्रतिदिन मछली बाजार सजती है।
जहां सालाना लगभग 40 से 50 लाख रुपये का व्यवसाय होता था। लेकिन पहले जैसी बात अब नहीं रही। पिछले दो -तीन साल से पर्याप्त बारिश नहीं होने पर तालाबों में जलस्तर कम हो गया है।
जिस कारण गर्मी के दस्तक देते ही तालाब का जलस्तर गिरते जा रहा है। कई छोटे तालाबों में पानी की काफी कम मात्रा बची है। जिसका असर करौं में मछली पालन के व्यवसाय पर पड़ा है।
इस वर्ष लागत निकल पाना मुश्किल है। करौं में लगभग 70 घर मछली पालकों की है। उनकी जीविका मछली बेच कर चली है।
उल्लेखनीय है कि करौं अंचल में मछली पालन की अपार संभावना है। अगर सही तरीके से यहां मछली पालन किया जाता तो यह उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन सकता है, लेकिन पर्याप्त बारिश नहीं होने से तालाब में जलजमाव नहीं हो पाता है। गर्मी आते-आते तालाब सूखने लगते हैं।
इससे मछली का उत्पादन ठप हो जाता है। अंचल में 219 सरकारी एवं 50 से अधिक जमाबंदी तालाब है। जिसमें बरसात के दिनों में मछली का जीरा डाला जाता है।
मछुआ समिति देता तालाब लीज पर
करौं में मछुआ समिति का गठन 1966 में हुई। इसके माध्यम से सरकारी तालाब को लीज पर दिया जाता है। इसके बाद इस तालाब में लीजधारी मत्स्य पालन करते हैं। तालाब का लीज एक या तीन साल के लिए दिया जाता है। इसके लिए एक निर्धारित राशि चुकानी होती है।
तालाब में डालने के लिए मछली का जीरा बंगाल के नौहाटी से लाया जाता है। यह केवट उपलब्ध कराता है। मछुआरों का कहना है कि मछली का जीरा काफी मंहगा खरीदना पड़ा था। गोल्डन 1200 रूपए, ग्रास कार्प 800 रूपए, रोहू, कतला व मृग प्रजाति के मछली का जीरा 500 रूपए किलो खरीद कर तालाब में डाला गया था।
सरकारी स्तर पर भी मछली का जीरा उपलब्ध कराया गया। लेकिन मछली का जीरा डालने के दो वर्ष के बाद इसका लाभ मिलता है। लेकिन गर्मी आते-आते अधिकांश तालाब सूख जाते हैं। जिससे मछली के आकार में वृद्धि नहीं हो पाती है।
पिछले साल पर्याप्त बारिश नहीं होने से तालाब में पानी कम है। तालाब का जलस्तर लगातार गिरते जा रहा है। जिस कारण मछली का उत्पादन पर असर पड़ा है। लागत भी वापस आना मुश्किल है।-भुवनेश्वर कापरी, मछली विक्रेता
तालाब में डालने के लिए मछली का जीरा बंगाल के नौहाटी से लाया जाता है। लागत के अनुसार आय नहीं होती है। इस धंधे में कम आय होने के कारण मुश्किल से घर में चूल्हा जलता है।-हनुमान कापरी, मछली विक्रेता
करौं अंचल में मछली पालन का अपार संभावना है। अगर सही तरीके से यहां मछली पालन किया जाता तो उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन सकता है। लेकिन यहां किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने से यह व्यवसाय वृहत रूप नहीं ले पाया है।-उज्ज्वल कापरी, मछली विक्रेता
पहले मछली का उत्पादन अच्छा होता था। लेकिन बारिश नहीं होने से तालाब में पर्याप्त जल जमाव नहीं होता है। जिसका असर मछली के उत्पादन पर पड़ता है।-कैलाश कापरी ,मछली विक्रेता
पिछले वर्ष कई सरकारी तालाबों का जीर्णोद्धार कराया जा चुका है। ताकि इसमें पानी उपलब्ध रह सके। लेकिन इस वर्ष पर्याप्त वर्षा नहीं होने से मछली पालकों की परेशानी बढ़ी है।-हरि उरांव , बीडीओ
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