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    Deoghar: हथेलियों की छाप बयां करती बाबा ने कितनों की मुराद की है पूरी, जानें क्‍या है सदियों पुरानी यह परंपरा

    By Jagran NewsEdited By: Arijita Sen
    Updated: Mon, 31 Jul 2023 10:40 AM (IST)

    देवघर के बाबाधाम मंदिर में मन्‍नत मांगने की एक अति प्राचीन परंपरा का पालन आज भी किया जाता है। मनोकामना मांगते वक्त बाबा मंदिर की दीवार पर दही-हल्दी हथ ...और पढ़ें

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    बाबा मंदिर की दीवार पर दही-हल्दी से हथेलिया की बनाई गई छाप।

    अजय परिहस्त, देवघर। देवघर में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है। इनको आत्मकामना लिंग कहा जाता है। भक्तों की सभी मनोरथ यहां पूरी होती है। मांगने वाले बताते हैं कि उनकी मनोकामना पूरी हुई। एक प्रथा यहां की है जिसे सब लोग नहीं जानते।

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    दही-हल्‍दी लगी हथेली से दीवार पर थाप लगाते भक्‍त

    मनोकामना मांगते वक्त बाबा मंदिर की दीवार पर दही-हल्दी हथेली पर लगाकर उलटी थाप लगाया जाता है। जब कामना पूरी हो जाती है, तो बाबा दरबार आकर पूजा पाठ करने के बाद उसी दीवार पर दही-हल्दी हथेली पर लेप कर सीधी थाप लगायी जाती है।

    भक्त ऐसा करते हैं कि इसकी खास बात यह है कि कामना करने के दिन जिस पीतल की थाली में हल्दी-दही का लेप तैयार किया गया था उसी थाली का उपयोग कामना पूरी होने के बाद थाप के लिए किया जाता है। यह उलटी और सीधी थाप की परंपरा बाबा मंदिर की प्राचीन परंपरा है। जो विरले ही सुनने को मिलती है।

    मंदिर की यह है अति प्राचीन परंपरा 

    इस संबंध में तीर्थ पुरोहित भक्ति नाथ फलाहारी बताते हैं कि यह मनोकामना लिंग है। यहां पर भक्त पूजा अर्चना करने के बाद अपनी मनोकामना को लेकर विभिन्न प्रकार की धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। यह अति प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है।

    बाबा मंदिर के निकास द्वार से बायीं ओर जहां पर बाबा का चढ़ावा नीर कुंड में गिरता है, उसी स्थान को धरना वैदिक कहा जाता है। जहां पर 24 घंटा धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ आदि भक्त कराते हैं।

    दंडवत प्रणाम कर बाबा को आभार जताते भक्‍त

    यहीं पर दोनों हाथों की हथेली से दीवार पर निशान बनाया जाता है। यह प्रक्रिया तीन बार की जाती है। इस दौरान श्रद्धालु जिस चीज या जिसके लिए मनोकामना करते हैं उसका स्मरण करते हुए यह चिह्न अंकित करते हैं।

    वहीं जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है, तो श्रद्धालु बाबा धाम आते हैं और बाबा की षोडशोपचार पूजा अर्चना कर सीधे हथेलियों से उसी थाल में हल्दी और दही मिश्रित कर सीधे हाथों से निशान बनाते हैं। यह भी तीन बार किया जाता है और उस समय बाबा को दंडवत कर आभार प्रगट करते हैं।

    नारायण पलिवार कहते हैं कि पूर्वजों के द्वारा बताई गई यह परंपरा सदियों पुरानी है। जिन लोगों को संतान की प्राप्ति नहीं होती है। वैसे लोग यहां आकर बाबा से मनोकामना मांगते हुए। उनके हाथों की थापा लगाते हैं।

    उनकी मनोकामना पूर्ण होने के बाद बाबा की पूजा अर्चना कर सीधे हाथ हथेलियों की निशानी लगाते हैं। एक ही थाली का उपयोग किया जाता है इसलिए भक्त इसे घर में संभाल कर रखते हैं।

    ऋषि मुनियों ने की है भोलेनाथ की पूजा

    देवाधिदेव महादेव की नगरी में परंपरा और रहस्य भरा पड़ा हुआ है। आत्मकामना लिंग को पाने के लिए रावण ने कठोर तप किया। बाबा बैद्यनाथ की पूजा-अर्चना देव, दानव, गंधर्व, ऋषि-मुनियों ने अपनी मनोकामना को लेकर किया, जिसका व्याख्यान पुराण एवं ग्रंथों में वर्णित है।

    आज विश्व विख्यात बाबा बैद्यनाथ धाम में लाखों लोग देश के कोने कोने से अपनी मनोकामना को लेकर यहां पहुंचते हैं। बाबा को प्रसन्न करने के लिए अपने अपने तरीके से बाबा की पूजा-अर्चना करते हैं।

    लोग यहां पर अपनी मनौतियों को लेकर आते हैं और दीवार पर अपने पंजों का उल्टा निशान लगाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर सीधे हथेलियों का निशान लगाते हैं। यह बहुत पुरानी परंपरा है।