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    कोठियों का शहर मधुपुर, बंगाली संस्कृति को दिलाता याद

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 17 Feb 2021 11:27 PM (IST)

    संवाद सहयोगी मधुपुर (देवघर) 1910 से 1975 का कालखंड बंगाली बाबूओं का स्वर्णकाल कहा जाता

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    कोठियों का शहर मधुपुर, बंगाली संस्कृति को दिलाता याद

    संवाद सहयोगी, मधुपुर (देवघर): 1910 से 1975 का कालखंड बंगाली बाबूओं का स्वर्णकाल कहा जाता है। सैलानियों का शहर कभी कोठियों का शहर कहा जाता था। यहां की कोठियों का गौरवशाली इतिहास बाबू मोशाय से जुड़ी यादों को समेटे हुए है। वक्त की ऐसी मार पड़ी कि कोठियां नजर से ओझल होने लगी। माहौल भी ऐसा बदला कि कोठी छोड़कर चला जाना ही लोगों ने मुनासिब समझा। मार्बल हाउस, साधु संघ, जहाज कोठी, खिरोद भवन, रेडकोर्ट के झरोखा से उस अतीत को देखा जा सकता है। इन कोठियों को धरोहर के रूप में संजोकर रखने की जरूरत है। ताकि पर्यटक यहां आकर यहां के अतीत से वाकिफ हो सकें।

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    यूरोपियन शैली से बनी सैकड़ों कोठिया आज भी बंगाली बाबुओं के अतीत की याद दिलाती है। कोठियों की साज-सज्जा, रंग-बिरंगे फूलों की बगिया का मनोरम दृश्य बरबस लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। आज भी ऐसी कुछ कोठियां बाग से निकलनेवाली खुशबू की गवाह बनी हुई है। पर न जाने वह कब तक लोगों के नजरों के सामने रह पाएगी। जानकारों की मानें तो एक जमाने में मधुपुर में बंगाल की नामी-गिरामी हस्तियों की 560 कोठिया थीं। वर्तमान में कुछ को छोड़कर अधिकांश कोठियां तो दिखती ही नहीं है। मौसम परिवर्तन के वक्त बंगाली बाबू सैलानी के रूप में मधुपुर आते थे। बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सर आशुतोष मुखर्जी, प्रद्युमन कुमार मल्लिक, जनसंघ के वरिष्ठ संस्थापक डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी, देवनारायण कुंडू, टीपी बोस, राय बहादुर खगेंद्रनाथ मित्रा, गांधीवादी जगन्नाथ कोले, सर गुरुदास बनर्जी, बैरिस्टर सर देवी प्रसाद सर्वाधिकारी जैसे नामी-गिरामी हस्तियों की कोठियां शहर के शेखपुरा, बड़बाद, पत्थरचपटी, कालीपुर टाउन, लालगढ़, बावनबीघा, सेठ विला, कुशमाहा, जगदीशपुर में हुआ करती थी। कोठियों के मिटते अस्तित्व के कारण अब यहां सैलानियों का आवागमन भी कम हो गया है।

    पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो इलाका : पर्यटक यहां आएंगे तो यहां की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। यहां के लोगों की आमदनी बढ़ेगी। पर्यटन स्थल के रूप में आसपास के पहाड़ को विकसित करने से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा। और यह रोजगार स्थायी होगी। सरकार को सोचना होगा और मधुपुर की पुरानी रौनक को लौटाने की योजना बनानी होगी।