Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किताबों की जगह कचरे के ढेर में खो रहे बचपन के सपने, रोटी के लिए जोखिम भरी जिंदगी जीते नौनिहाल

    Updated: Sun, 14 Dec 2025 06:12 PM (IST)

    मधुपुर और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के कारण बच्चे कचरे के ढेर में भविष्य तलाश रहे हैं। सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा के बावजूद, कई बच्चे काम करने ...और पढ़ें

    Hero Image

    कचरे के ढेर में खो रहे बचपन के सपने

    संवाद सूत्र, मधुपुर। शहर और ग्रामीण इलाकों में गरीबी, बेरोजगारी और संस्थागत समर्थन की कमी के कारण कई नौनिहाल (बच्चे) स्कूल जाने की उम्र में कूड़े के ढेर में अपना भविष्य और आजीविका तलाशने को विवश है। यह एक व्यापक और गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्या है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सरकारी स्कूलों में सरकार बच्चों की पढ़ाई में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है । मुफ्त में ड्रेस, किताब, भोजन व छात्रवृति दे रही है ताकि बच्चे नियमित स्कूल आए और शिक्षा ग्रहण करें । इसके बाद भी स्कूल जाने के उम्र में नौनिहाल काम की जुगाड़ में लगे हुए है। 

    बड़ी संख्या में बच्चे स्कूलों से दूर 

    शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद, बड़ी संख्या में बच्चे स्कूलों से दूर हैं। जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए, वे दो जून की रोटी के लिए कबाड़ (प्लास्टिक, लोहा, कांच आदि) बीन रहे हैं। 

    स्वच्छ भारत मिशन जैसे सरकारी अभियानों और सर्वशिक्षा अभियान के दावों के बावजूद ये बच्चे सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता पर सवालिया निशान खड़ा करते हैं। कचरा चुनने के दौरान इन मासूमों को चोट भी लगती है। बीमारियों का खतरा बना रहता है। साथ ही व्यावसायिक खतरों का सामना करना पड़ता है। 

    आर्थिक आवश्यकता सबसे बड़ी समस्या

    इस तरह की तस्वीर स्थानीय प्रशासन व संबंधित कंपनियों की लापरवाही को सामने लाती है। हालांकि कुछ निजी संस्था जागरूक नागरिक इन बच्चों के जीवन में शिक्षा का प्रकाश बिखरने का प्रयास कर रही हैं, जो एक प्रेरणादायक पहल है। 

    इन सबके पीछे सबसे बड़ी समस्या आर्थिक आवश्यकता है।  अनियमित पारिवारिक आय और गरीबी मुख्य कारण हैं, जिनके चलते बच्चे परिवार के भरण-पोषण में योगदान देने के लिए इस काम में लगते हैं। 

    साथ ही संस्थागत समर्थन की कमी, स्कूलों तक पहुंच का अभाव, और बाल श्रम कानूनों का कमजोर प्रवर्तन इस समस्या को गंभीर बनाता है। जिसके कारण होटल, गैराज आदि में छोटे-छोटे बच्चे काम करते नजर आते है।