चिता भूमि के नाम से जाना जाता है बैद्यनाथ धाम
12 ज्योर्तिलिंग में से एक कामना लिग बाबा बैद्यनाथधाम को चिता भूमि भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था। शिव पुराण के अनुसार यहीं पर माता के हृदय का
संवाद सूत्र, देवघर : 12 ज्योर्तिलिंग में से एक कामना लिग बाबा बैद्यनाथधाम को चिता भूमि भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था। शिव पुराण के अनुसार यहीं पर माता के हृदय का दाह-संस्कार किया गया था। और तब बाबा बैद्यनाथ माता सती के वियोग में उसी राख में लोट-लोटकर पूरे अंग को भस्म विभूषित कर लिए थे। इसलिए भस्म का यहां विशेष महत्व है। और आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भस्म भी दिया जाता है। मान्यता यह भी है कि इस भस्म को अपने ललाट पर लगाकर किसी भी कार्य के लिए निकले वह कार्य पूर्ण होता है। मनोवांछित फलों की प्राप्ति भस्म लगाने से होती है। देवघर के तीर्थ पुरोहित के श्रीनाथ महाराज के मुताबिक सावन और भादो में तीर्थ पुरोहित अपने यजमान को हवन से प्राप्त भस्म देते हैं।
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त्रिपुंड में है 27 देवताओं का वास :
तीर्थपुरोहित श्रीनाथ महाराज बताते हैं कि ललाट पर भस्म या चंदन से जो तीन रेखाएं बनाई जाती है। उसे त्रिपुंड कहते हैं। हथेली पर चंदन या भस्म को रखकर तीन उंगुलियों की मदद से माथे पर त्रिपुंड बनाई जाती है। इन तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है।
शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति नियमित अपने माथे पर भस्म से त्रिपुंड यानि तीन रेखाएं सिर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक धारण करता है। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति शिव कृपा का पात्र बन जाता है। विज्ञान ने त्रिपुंड को लगाने या धारण करने के अनेक लाभ बताएं हैं। विज्ञान के मुताबिक त्रिपुंड चंदन या भस्म से लगाया जाता है। चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुंड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। त्रिपुंड में इन देवताओं का वास :
त्रिपुंड की पहली रेखा में अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रात:स्वन, महादेव का वास होता है। दूसरी रेखा में, ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा, महेश्वर का नाम आता है। तीसरी रेखा में मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीय सवन, वास करते हैं।
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