Deoghar News: नवरात्र में तीन दिनों तक बंद रहेगा इन मंदिरों का पट, शिव-पार्वती से जुड़ी है परंपरा
शारदीय नवरात्रि में बाबा मंदिर स्थित मां पार्वती संध्या और माँ काली के मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहेंगे। इस दौरान विशेष पूजाएं की जाएंगी और केवल दीक्षा प्राप्त पुरोहितों को ही पूजा की अनुमति होगी। मान्यता है कि बाबाधाम शक्तिपीठ है जहां माता सती का हृदय गिरा था और यह एकमात्र स्थान है जहां शिव और पार्वती एक साथ विराजमान हैं।

संवाद सूत्र, देवघर। शारदीय नवरात्र के मौके पर बाबा मंदिर स्थित मां पार्वती ,संध्या एवं मां काली के मंदिर को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जायेगा। इन तीन दिनों में आम लोगों को इन मंदिरों में पूजा अर्चना करने के लिए प्रवेश पर रोक रहेगा।
सोमवार को महासप्तमी के दिन मंदिर ईस्टेट की ओर से आचार्य एवं पुजारी दोपहर में सबसे पहले मां पार्वती मंदिर में प्रवेश कर माता को महा स्नान कराने के बाद तांत्रिक विधि से विशेष पूजा करेंगे। उसके बाद माता के खांड़ा बांधा जायेगा।
उसके बाद मंदिर के पट को बंद कर दिया जायेगा। फिर संध्या मंदिर एवं अंत में मां काली के मंदिर में इसी तरह पूजा कर मंदिर के पट को बंद किया जायेगा।
सुबह शाम विशेष दीक्षा प्राप्त लोगों को ही पूजा करने की होगी अनुमति
बाब मंदिर में चली आ रही परंपरा के अनुसार सोमवार को सप्तमी से लेकर नवमी तक तीनों देवियों के मंदिरों का पट आम लोगों के लिए बंद रहेगा। इस दौरान सुबह एवं शाम को मंदिर में पूजा करने के लिए पट को खोला जायेगा।
इस दौरान पुरोहित समाज के लोग जो की विशेष दीक्षा प्राप्त किये हैं उन्हीं को यहां पूजा करने की अनुमति होगी। वहीं दशमी तिथि पर जयंती बली के उपरांत आम लोगों के लिए माता का पट खोल दिया जायेगा।
भगवान शिव से जुड़ी है परंपरा
स्टेट पुरोहित श्रीनाथ महाराज बताते हैं कि बाबाधाम सर्वप्रथम शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता था। पुराणों में वर्णित है कि दक्ष राजा के यज्ञ में माता ने अपना देह त्याग किया था। इसके बाद भोलेनाथ माता के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य करने लगे थे और विक्षिप्त अवस्था में घूम रहे थे।
जिसको लेकर ब्रह्मा, विष्णु एवं आदि देवताओं ने मंत्रणा कर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। इस विचित्र स्थिति को अब प्रतिकूल कैसे बनाया जाए। जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के 51 खंड कर दिया और जहां-जहां माता का शरीर कट कर गिरा वहां पर शक्तिपीठ बन गया।
उसी में से माता का हृदय बाबाधाम में गिरा था। तब से ये शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हो गया। कहते हैं कि यहीं पर भोलेनाथ का मोह भी भंग हुआ और माता सती का अंतिम संस्कार किया गया था। इसलिए बाबाधाम चिता भूमि के नाम से भी बाबाधाम विख्यात है।
इसके बाद रावण के द्वारा जब शिवलिंग लंका ले जाया जा रहा था। तब लघुशंका के कारण रावण ने हरितीकी वन में एक चरवाहा को शिवलिंग पकड़ा कर लघुशंका के लिए गए थे। गडरिया के रूप में भगवान विष्णु थे के द्वारा भोलेनाथ के शिवलिंग को यहां स्थापित किया गया है।
यही कारण है कि पूरे विश्व में एकमात्र एक बाबाधाम है. जहां पर शिव और पार्वती एक साथ हैं। इसलिए शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र के दोरान बाबा मंदिर स्थित पार्वती मंदिर ,संध्या मंदिर एवं मां काली मंदिर में विशेष पूजा अर्चना परंपरा के अनुसार की जाती है। जिसका निर्वाह आज भी किया जा रहा है।
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