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    यहां पानी से नहीं, पसीने से पनपती हैं फसलें; एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं किसान

    By Jagran NewsEdited By: Ashish Mishra
    Updated: Sat, 28 Jun 2025 03:38 PM (IST)

    प्रतापपुर के टंडवा गांव में स्थित जयप्रकाश डैम 25 वर्षों से सूखा है जिसका कारण प्रशासनिक लापरवाही है। 1967-68 में बने इस डैम से हजारों एकड़ जमीन सिंचित होती थी लेकिन 2000 में बांध टूटने से यह बदहाल हो गया। फसलों के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। किसान अब राशन के लिए मजबूर हैं और डैम का पुनरुद्धार क्षेत्र के अस्तित्व का सवाल बन गया है।

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    प्रतापपुर प्रखंड के टंडवा गांव में स्थित ऐतिहासिक जयप्रकाश डैम में पानी न होने से बेहाल किसान।

    अजीत पांडेय, प्रतापपुर। प्रतापपुर प्रखंड के टंडवा गांव में स्थित ऐतिहासिक जयप्रकाश डैम में पिछले 25 वर्षों से एक बूंद पानी तक नहीं ठहर रहा है। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, राजनीतिक उपेक्षा और टूटी हुई ग्रामीणों की उम्मीदों की करुण गाथा है।

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    1967-68 के भयानक अकाल के दौरान जब लोग भूख से बिलख रहे थे, तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा और काम के बदले अनाज योजना के तहत नाबार्ड ने इस डैम का निर्माण कराया था।

    जलाशय से हजारों एकड़ फसलों की होती थी सिंचाई

    तब यह डैम पूरे क्षेत्र की जीवनरेखा बन गया था। टंडवा, जोतडीह, घुज्जी, सिकनी, डुमरी, दानापुर, बंदोहरी, चट्टी अनंतपुर, कल्याणपुर, नारायणपुर, खुटियारी सहित दर्जनों गांवों की हजारों एकड़ जमीन जलाशय से सिंचित होती थी।

    अतिवृष्टि से टूटा था बांध

    किसान साल में तीन फसलें उगाते थे। घर-घर में खुशहाली थी, लेकिन वर्ष 2000 में आई अतिवृष्टि ने इस व्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी। डैम का मुख्य बांध टूट गया। उसके बाद से यह कभी पुनर्जीवित नहीं हो सका।

    यहां बरसात केवल कागजों पर आती रही है, जो जमीन पर नहीं दिखाई देती। योजनाएं बनती रहीं, फाइलें खिसकती रहीं, मरम्मत के नाम पर करोड़ों की स्वीकृति मिलती रही। ठेकेदार आते-जाते रहे, मगर डैम की हालत जस की तस रही।

    नीतिगत विफलता का शिकार हो रही हैं फसलें

    कमजोर दीवारें पहली ही बारिश में ढह जातीं और खेतों में पानी की जगह अब सिर्फ उम्मीदों की राख बची है। आज यह डैम सिर्फ एक टूटे हुए बांध की पहचान नहीं, बल्कि नीतिगत विफलता और सिस्टम के संवेदनहीन रवैये की शर्मनाक मिसाल है।

    जिन हाथों से खेत में अन्न उगाए जाते थे, वे हाथ आज सरकारी राशन के लिए झोला लिए कतार में खड़े हैं। खेत में उपजाऊ मिट्टी नहीं बची है। चारो तरफ बंजर भूमि नजर आती है।

    जागरण की टीम जब किसानों से मिलकर उनका हाल जानने का प्रयास किया। जो दर्द किसानों ने बयां की उसके अनुसार यह डैम अब केवल जल प्रबंधन की मांग नहीं, बल्कि पूरे अंचल की आत्मा, अस्मिता और अस्तित्व का सवाल बन चुका है।

    जब तक डैम पुनर्जीवित नहीं होता, तब तक न खेतों में हरियाली लौटेगी और न किसानों के आंखों से आंसू थमेंगे।

    क्या कहते हैं किसान

    पहले खेतों से दूसरों को अन्न भेजते थे, अब अपने बच्चों का पेट भरने के लिए मुफ्त राशन की लाइन में खड़े हैं।

    -रामलखन राम, किसान, घुज्जी

    हमारे गांव के बेटे पंजाब, तेलंगाना में ईंट ढो रहे हैं। अगर डैम रहता, तो गांव छोड़ने की नौबत नहीं आती।

    -बिनोद पांडेय, किसान, जोतडीह

    अब चुप नहीं बैठेंगे। पानी मांगेंगे, नहीं मिला तो आंदोलन करेंगे। यह सिर्फ सिंचाई नहीं, सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई है।

    -रामचंद्र उर्फ चंदन दास, अध्यक्ष, जयप्रकाश डैम टंडवा जीर्णोद्धार संघर्ष समिति

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