सप्तमी युक्त अष्टमी करने से होता है अनिष्ट: आचार्य
संवाद सूत्र लावालौंग(चतरा) नवरात्रि के दिनों में देशभर में दुर्गा के अखंड आराधना करने वाल
संवाद सूत्र, लावालौंग(चतरा) : नवरात्रि के दिनों में देशभर में दुर्गा के अखंड आराधना करने वाले लाखों श्रद्धालु प्रतिपदा तिथि से ही माता को खुश करने के लिए विभिन्न प्रयोजनों में लगे हुए हैं। परंतु कठिन तप के बावजूद भी तिथियों के असमंजस में उलझ कर श्रद्धालु पूर्ण फलों से वंचित रह जाते हैं। उक्त बातें रूद्र ज्योतिष संस्थान लावालौंग के आचार्य राधाकांत पाठक ने कही। उन्होंने कहा कि इस नवरात्र में दुर्गा अष्टमी को लेकर श्रद्धालुओं में घोर असमंजस व्याप्त है। कुछ लोग शुक्रवार की सुबह से ही उपवास करने की बात कह रहे हैं, तो कुछ अन्य बातें बता रहे हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं से समक्ष सही जानकारी को रखना अति आवश्यक है। राधाकांत पाठक कहा कि उदया तिथि ही व्रत या उपवास में ग्रहण करने योग्य होता है। सप्तमी वेध अष्टमी तिथि का हमेशा परित्याग करना चाहिए। आगे उन्होंने बताया कि निर्णय सिधु का मत है कि सप्तमी युक्त अष्टमी नित्य शोक तथा संताप कराने वाली होती है। इसी तिथि में दैत्य श्रेष्ठ जंभ ने पूजा की थी जिसके कारण इंद्र नें उसका वध किया था। सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि को व्रत या उपवास करने से मनुष्य घोर नरक में जाता है। साथ ही पुत्र, पशु, धन के साथ-साथ उत्पन्न हुए तथा जो उत्पन्न नहीं हुआ है उसका भी नाश करता है। अत: अगर घटिका मात्र भी अष्टमी तिथि उदया को पड़े तो उसी दिन व्रत एवं उपवास करना चाहिए। अत: स्पष्ट है कि इस वर्ष दुर्गा अष्टमी का उपवास एवं व्रत शनिवार को ही सूर्योदय काल से किया जाएगा।
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