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    मास्को में गूंजेंगे मगही, भोजपुरी व झारखंडी लोक संगीत के तराने, चतरा के आशीष सिखाएंगे संगीत

    चतरा के आशीष दुबे का चयन मास्को में बतौर संगीत प्रशिक्षक हुआ है। इस महीने के अंत रूस के लिए रवाना होंगे। दरअसल भारतीय संस्कृति से मित्र देशों को रूबरू कराने के लिए विदेश मंत्रालय ने 37 देशों में गीत-संगीत नृत्य एवं नाट्य का प्रशिक्षण देने के लिए कुल 96 चुनिंदा शिक्षकों का चयन किया है।

    By Julqar Nayan Edited By: Kanchan Singh Updated: Wed, 06 Aug 2025 11:30 PM (IST)
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    चतरा का आशीष मास्को में सिखाएं शास्त्रीय संगीत ।

    जुलकर नैन,चतरा। आशीष दुबे रूस के मास्को में शास्त्रीय संगीत के साथ मगही, भोजपुरी और झारखंड के लोक गीतों की खुशबू बिखेरेंगे।

    उनका चयन बतौर प्रशिक्षक हुआ है। इस महीने के अंत रूस के लिए रवाना होंगे। तबला पर संगत के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन के अरुण कुशवाहा तथा कथक के लिए पुणे की कल्याणी का चयन हुआ है।

    दरअसल भारतीय संस्कृति से मित्र देशों को रूबरू कराने के लिए विदेश मंत्रालय ने 37 देशों में गीत-संगीत, नृत्य एवं नाट्य का प्रशिक्षण देने के लिए कुल 96 चुनिंदा शिक्षकों का चयन किया है।

    इनमें इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, आस्ट्रलिया, दक्षिण अफ्रीका, भूटान, नेपाल आदि देशों में इन चुनिंदा प्रशिक्षकों को भेजा जा रहा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत भारतीय संगीत के प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की है।

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    भारतीय संस्कृति संबंध परिषद (आइसीसीआर) विदेश मंत्रालय द्वारा जवाहर लाल नेहरू संस्कृति केंद्र को मास्को में संगीत प्रशिक्षण देने के लिए भेज रहा है।

    आशीष दुबे ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि गायन के क्षेत्र में बारह शिक्षकों का चयन हुआ है। इसी तरह तबला संगत, कथक, भारत नाट्य आदि के लिए 84 शिक्षक चयनित हुए हैं।

    उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण तीस से पांच साल तक का है। आशीष दुबे गायन विद्या में पारंगत हैं। पूरा परिवार गीत और संगीत को समर्पित है, बल्कि यूं कहें कि उनकी छह पीढियां संगीत के पुजारी रही है।

    आशीष जिले के हंटरगंज प्रखंड के बारा गांव के रहने वाले हैं। पिता जितेंद्र दुबे संगीत शिक्षक हैं। माता संगीता डूबे व बड़े भाई प्रभात दुबे भी गीत और संगीत की विद्या में माहिर हैं।

    आशीष इसका श्रेय अपने गुरु देश के प्रख्यात कलाकार पंडित कैवल्य कुमार गुरुव (किराना घराना) और प्रोफेसर जयंत खोत (ग्वालियर घराना) को देते हैं।