वनों से लुप्त हो रही तीतर की चहक
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निज संवाददाता, सिमरिया(चतरा) : प्रखंड के वनों से तीतर पक्षी की चहक लुप्त हो रही है। जंगल-झाड़ के बेतहाशा कटाई और तीतर के अंधाधुंध शिकार ने इस सुंदर पक्षी के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। कभी यहां के वन क्षेत्रों में बहुतायत संख्या में कलोल करने वाला यह पक्षी अब आंखों से ओझल होकर रह गया है। इसकी संख्या में हो रही भारी गिरावट पक्षी प्रेमियों को लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
श्याम श्वेत है यह पक्षी
तीतर काले रंग की पक्षी है। इसके पेट लाल तथा सिर और आंखों की पुतलियां भूरे रंग की होती है। तीतर में सफेद धब्बे तथा पूंछ सफेद व सुनहरी धारियों से सजी होती है।
भूमि के दारारों में बनाता है आशियाना
तीतर पक्षी मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर मई माह तक जमीन के अंदर दरारों में अपना घोसला बनाता है। इसे झुरमुटों में रहना पसंद है। यह घने जंगलों के बजाय वनों के किनारे झाडि़यों में घूमना पसंद करती है। जो पानी के नजदीक हो। यह कम दूरी तक उड़ान भरता है। इसकी उड़ान सीधी रेखा में होती है।
आठ से बारह अंडे देती है मादा तीतर
मादा तीतर का प्रजनन काल अप्रैल से जून तक होता है। यह एक बार में आठ से लेकर बारह अंडे देती है। मादा तीतर अंडों को उन्नीस दिन तक सेती है। चूजों की देखभाल मादा और नर मिलकर करते हैं। सर्दियों में यह परिवार के साथ रहना पसंद करता है। नर तीतर चट्टानों पर अथवा छोटे टहनियों पर खड़ा होकर अपने अनूठे गीत से मादा तीतर को आकर्षित करता है। इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। वनपाल नथुन साव बताते हैं कि वनों के समीप बसे ग्रामीण झूरमुटों को उजाड़ देते हैं और इसका जमकर शिकार करते हैं और बाजार में ऊंची कीमत पर मांसाहारियों से बेचते हैं। इससे इनकी संख्या घट रही है। ग्रामीण इन पक्षियों पर दया भाव रखें तथा इसके संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनें तभी इन पक्षियों की उड़ान देखने को मिल सकती है।
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