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    संताल आदिवासियों के लिए गंगा के समान सीतानाला का पानी, कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों लोगों ने लगाई डुबकी

    By Birendra Kumar PandeyEdited By: Deepak Kumar Pandey
    Updated: Tue, 08 Nov 2022 11:49 AM (IST)

    नैसर्गिक आभा की अतुलनीय छटा हर ओर ह‍र‍ि‍याली कल-कल बहती जलधारा लुगू पहाड़ से न‍िकलता प‍व‍ित्र सीतानाला ज‍िसमें डुबकी लगाना हर संताल आदि‍वासी के ल‍िए अन‍िवार्य है। बात बोकारो के बेरमो में प्राचीन काल से शीश ऊंचा क‍िए लुगू बुरू घंटाबाड़ी तीर्थ की हो रही है।

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    आद‍िवासी मानते हैं, इस जल का घर में छि‍ड़काव करने से बीमार‍ि‍यां दूर होती हैं।

    बोकारो [बीके पाण्डेय]: नैसर्गिक आभा की अतुलनीय छटा, हर ओर ह‍र‍ि‍याली, कल-कल बहती जलधारा, लुगू पहाड़ से न‍िकलता प‍व‍ित्र सीतानाला, ज‍िसमें डुबकी लगाना हर संताल आदि‍वासी के ल‍िए अन‍िवार्य है। बात बोकारो के बेरमो में प्राचीन काल से शीश ऊंचा क‍िए लुगू बुरू घंटाबाड़ी तीर्थ की हो रही है। कार्ति‍क पूर्ण‍िमा पर यहां दो लाख से अध‍िक संताल आदि‍वासी देश के व‍िभ‍िन्‍न क्षेत्रों के अलावा व‍िदेश से भी आएंगे। सीतानाला में डुबकी लगाएंगे, लुगू गुफा में लुगू बुरू बाबा की पूजा कर सीतानाला का प‍व‍ित्र जल अपने साथ ले जाएंगे।

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    आद‍िवासी मानते हैं, इस जल का घर में छि‍ड़काव करने से बीमार‍ि‍यां दूर होती हैं, समृद्धि‍ आती है। ठीक वैसे ही, ज‍िस प्रकार सनातनी परंपरा को मानने वाले गंगाजल को पव‍ित्र मानते हैं। सीतानाला का पानी भी दामोदर नदी से होते हुए गंगा में मि‍लता है। लुगू बुरू पहाड़ पर हो रही यह आराधना उन लोगों के वि‍चारों पर प्रहार करती है, जो आद‍िवास‍ियों को सनातन से अलग बताते हैं।

    लुगू बुरू बाबा में अथाह आस्‍था रखने वाले कि‍शन कहते हैं क‍ि सोमवार से आद‍िवास‍ियों के इस अंतरराष्‍ट्रीय धर्म महासम्‍मेलन का शुभारंभ लुगू पहाड़ पर हुआ। दो साल तक कोरोना के कारण इसका आयोजन नहीं हो सका था। कार्तिक पूर्णिमा पर मंगलवार को विशेष आयोजन हो रहा है। देश व व‍िदेश से आए भक्‍त लुगू बाबा के दर्शन करेंगे। इससे पहले सीतानाला में स्‍नान करेंगे। वे कहते हैं क‍ि यह पहाड़ संताल आदिवासियों के लिए पव‍ित्रतम तीर्थ है। विश्व के 28 देशों में फैले संताल आदिवासियों में इसके प्रति गजब की आस्था है। यह हमारे ल‍िए शक्तिपीठ है। यहां से हमारा गौरवशाली अतीत जुड़ा है। पहाड़ पर मौजूद जंगल के फल व पानी के सहारे आदिवासी साधक यहां आकर शक्ति की साधना करते हैं।

    दरअसल, लुगू बाबा के माध्यम से मारांग बुरू की शक्तियां उन साधकों को प्राप्त हो जातीं हैं। इनका उपयोग वे अपने गांव में जनकल्याण के लिए करते हैं। पहाड़ पर सात किलोमीटर की चढ़ाई पैदल करनी होती है, तब लुगू बाबा की गुफा मि‍लती है।

    लुगू बाबा ने संथालियों को दिया था धर्म का ज्ञान

    संथाली आदिवासियों के आराध्य देव मारांग बुरू हैं। मारांग का अर्थ बड़ा व बुरू का मतलब पहाड़ है। यानी बड़े पहाड़ पर रहने वाले देवता। झारखंड के लोग पारसनाथ पहाड़ पर मारांग बुरू की पूजा करते हैं। बंगाल के लोग अयोध्या पहाड़ में मारांग बुरू की पूजा करते हैं। मान्यता है कि लुगू पहाड़ पर रहनेवाले लुगू बाबा को मारांग बुरू के दर्शन हुए थे। उनके निर्देश पर यहां संताल आदिवासियों का पहला धर्म सम्मेलन हुआ था, जो 12 साल चला था।

    लुगू बाबा ने संताल आदिवासियों को एकत्र कर उन्हें अपने रीति रिवाज व पूजा पाठ की व्यवस्था से अवगत कराया था। सम्मेलन में भाग लेनेवालों को देवता की शक्तियां म‍िलीं थीं। लुगू बाबा ने संथालियों को अपनी भाषा व संस्‍कृत‍ि बचाने का संकल्प दिलाया था। यही वजह है कि संथाली कहीं के भी हों, उनकी मातृभाषा संथाली भाषा ही होती है। असम, बंगाल, ओड‍िशा, बिहार, छत्तीसगढ़ समेत विश्व भर में रहने वाले संथाली अपनी ही भाषा बाेलते हैं।

    जुग जाहेर सुशार सोसाइटी के सचिव आकाश टुडू बताते हैं कि यह हम लोगों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ है। सीतानाला का जल हर संथाली अपने घर में रखता है, ताक‍ि बुरी शक्तियां समाप्त हो जाएं। आद‍िकाल से हमारी यह परंपरा चल रही है। उसका न‍िर्वहन आज भी हो रहा है।