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    बैलगाड़ी व साइकिल से मतदान केंद्र पहुंचते थे मतदाता

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 25 Nov 2019 12:36 PM (IST)

    बोकारो बोकारो विधानसभा के पूर्व विधायक अकलू राम महतो अब सक्रिय राजनीति से दूर से हो गए ह

    बैलगाड़ी व साइकिल से मतदान केंद्र पहुंचते थे मतदाता

    बोकारो: बोकारो विधानसभा के पूर्व विधायक अकलू राम महतो अब सक्रिय राजनीति से दूर से हो गए हैं। इन्होंने छात्र संघ की राजनीति से बिहार सरकार के मंत्री तक का सफर तय किया। इस दौरान उन्होंने राजनीति के कई उतार-चढ़ाव एवं बदलाव देखे। बदलते जमाने में मतदान का तरीका बदल गया लेकिन मतदान की अहमियत आज भी वही है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए इसके मायने अहम हैं। पूर्व मंत्री अकलू राम महतो का मानना है कि देश के हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा। देश के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

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    -ग्रामीण बैलगाड़ी व साइकिल पर सवार होकर आते थे मतदान केन्द्र

    पूर्व मंत्री अकलू राम महतो अपने परिजनों के साथ चौरा गांव में रहते हैं। जागरण से वार्ता के क्रम में उन्होंने कहा कि उनके पिता चिटाही गांव निवासी लालू महतो कृषक थे। माता स्व.छुटिया देवी गृहिणी थीं। उन दिनों बोकारो व आसपास के क्षेत्र में डिग्री कालेज नहीं था। इसलिए आरएसपी कालेज झरिया में बीए में दाखिला लिया। 1965 में दोस्तों की सलाह पर छात्र संघ के चुनाव में सचिव पद पर खड़ा हुए और जीत दर्ज की। यहां से स्नातक की डिग्री हासिल करने के पश्चात बोकारो आए और विस्थापितों की हितों की रक्षा को लेकर आंदोलन छेड़ दिया। कहा कि उन्हें भी विस्थापित का दंश झेलना पड़ा। इसलिए 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बोकारो स्टील प्लांट के धमन भट्ठी का उद्घाटन करने के लिए बोकारो आईं तो विस्थापितों के साथ घेराव किया। बाद में वार्ता के पश्चात चतुर्थ वर्ग की नौकरी पर विस्थापितों के आरक्षण की सहमित बनी। वे मजदूरों, विस्थापितों व ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर संघर्षरत रहे। इसलिए इनके बीच इनकी विशिष्ट पहचान बन गई। 1969 में बोकारो स्टील प्लांट में क्लर्क की नौकरी ज्वाइन की। 1977 में बोकारो विधानसभा में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा। लेकिन इसमें वे चौथे स्थान पर रहे। 1980 में लोकदल के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और इसमें विजयी हुए। 1995 में जनता दल के टिकट पर बोकारो विधानसभा चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। 1997 में बिहार सरकार के मंत्री बनाए गए। उन्होंने कहा कि 60 व 70 के दशक में विधानसभा चुनाव में बैनर, पोस्टर लगाने एवं दीवाल लेखन पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई थी। इसलिए चुनावी माहौल में नगर एवं गांव विभिन्न राजनीति पार्टियों के बैनर व पोस्टर से पट जाते थे। भोंपू का शोर भी घर-घर तक सुनाई देता था। उस समय न तो मोबाइल की सुविधा थी और न ही टेलीविजन की। लोग रेडियो पर ही खबर सुनते थे। राजनेताओं का भाषण सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ जाती थी। मतदान के दिन का नजारा कुछ और ही होता था। कई ग्रामीण बैलगाड़ी व साइकिल पर सवार होकर मतदान केन्द्र पहुंचते थे। अधिकतर ग्रामीण पैदल ही यहां आते थे। मतदाता बैलेट पेपर पर मुहर लगा कर मतदान करते थे। उन दिनों 25 एवं इससे अधिक आयु वर्ग के मतदाता को ही मतदान करने का अधिकार था। लेकिन अब 18 एवं इससे अधिक आयु वर्ग के मतदाता मतदान करते हैं। कहा कि जमाना बदल गया है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है। इसलिए अब मतदान का स्वरुप भी बदला है। मोबाइल व टेलीविजन ने लोगों के घर तक पहुंच बना ली है। इसके बावजूद मतदान के मायने नहीं बदले हैं। मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को सबल बनाते हैं।