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    बेरमो में 100 से अधिक स्थानों पर दुर्गा पूजा का आयोजन

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 13 Oct 2021 08:13 PM (IST)

    बेरमो पूरे बेरमो कोयलांचल में मां दुर्गा की भक्ति की गंगा बह रही है। यहां कोयला खनन की

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    बेरमो में 100 से अधिक स्थानों पर दुर्गा पूजा का आयोजन

    बेरमो : पूरे बेरमो कोयलांचल में मां दुर्गा की भक्ति की गंगा बह रही है। यहां कोयला खनन की शुरुआत के पूर्व से ही मां दुर्गा की पूजा होती रही है। यहां दुर्गापूजा की शुरुआत तिरपाल तले की गई, अब पंडालों की भरमार है। आकर्षक प्रतिमाओं के लिए भी यह इलाका प्रसिद्ध हो चुका है। इस बार यहां 100 से अधिक स्थानों में मां दुर्गा की आराधना की जा रही है।

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    कथारा में वर्ष-1964 से की गई शुरुआत :

    कथारा मोड़ स्थित शिव मंदिर प्रांगण में दुर्गापूजा की शुरुआत वर्ष-1964 से की गई। आरएन झा, रामलखन शर्मा, वीएन साहा, केपी घोष आदि ने यहां पूजा को भव्य स्वरूप दिया। कथारा कोलियरी के तत्कालीन अभियंता एचके त्रिपाठी ने जहां शिव मंदिर का निर्माण कराया, वहीं असैनिक विभाग के अभियंता ए कुमार ने दुर्गा मंडप निर्माण कराया। कथारा की बांध कालोनी में पूजा की शुरुआत वर्ष-1086 में की गई। जरीडीह बाजार में सवा सौ वर्ष से हो रही पूजा :

    जरीडीह बाजार में लगभग सवा सौ वर्ष से दुर्गापूजा की जा रही है। यहां नवरात्र के प्रथम दिन से ही श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा के लिए उमड़ पड़ती है। वैष्णवी पद्धति पर पूजा आधारित होने के कारण यहां बलि की प्रथा नहीं है। पहले यह दुर्गा मंडप जरीडीह बस्ती स्थित इमलीटोला में स्थापित था। वहां से एक सौ वर्ष पूर्व इसे ठाकुरबाड़ी परिसर में स्थापित किया गया। अंगवाली ग्राम में 162 वर्ष से की जा रही पूजा :

    अंगवाली ग्राम में मां दुर्गा की पूजा 162 वर्ष से की जा रही है। यहां पूजा की शुरुआत वर्ष-1860 में स्थानीय बुजुर्ग दुर्गा प्रसाद भगत, सालिक साव, अनु प्रगनैत, देबू लायक आदि ने कराई थी। उन लोगों ने यहां लकड़ी व बांस का घेरा डालकर पूजा का शुभारंभ किया था। 10-12 वर्षों तक मां का चित्र रखकर पूजा की गई। वर्ष-1902 में पहली बार प्रतिमा का निर्माण कराया गया। साथ ही पत्थरों से मंदिर का निर्माण हुआ, जो वर्तमान में ग्रामीणों के सहयोग से भव्य स्वरूप पा चुका है। यहां बलि प्रथा को वर्ष-1926 में बंद कर वैष्णवी पद्धति से पूजा की जाने लगी, जो अबतक जारी है। इसमें चलकरी गोशाला के संस्थापक आचार्य द्वारिकाधीश की सक्रिय भूमिका रही थी। तेनुघाट के चार मंडपों में हो रही पूजा :

    तेनुघाट में चार मंडपों में मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। यहां की एक नंबर कालोनी स्थित छाता चौक (बड़ा चौक) एवं मार्केट में वर्ष-1984 से दुर्गा पूजा हो रही है। वहीं, एफ टाइप कालोनी में वर्ष-1964 से दुर्गा पूजा की जा रही है। मार्केट स्थित दुर्गा मंडप में वर्ष-1984 से पूजा की जाती है। यहां पूर्व में एस्बेस्टस शीट के मंडप में मां की प्रतिमा की पूजा होती थी। अब उसे भव्य मंडप का स्वरूप देकर पूजा की जा रही है। चलकरी, खेतको व स्वांग में भी पूजा की धूम :

    चलकरी, खेतको व स्वांग में भी दुर्गापूजा की धूम मची हुई है। वहीं, जारंगडीह स्थित दुर्गा मंडप में भी भक्तों की भीड़ जुट रही है। स्वांग में दुर्गा पूजा का आयोजन वर्ष-1953 से ही किया जा रहा है। यहां दुर्गा पूजा स्वांग वाशरी व स्वांग कोलियरी के संयुक्त सहयोग से की जाती है। यहां पूजा के आयोजन में सीसीएल के अधिकारी व कर्मचारी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।