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खनिकों की संरक्षिका रही ढोरी माता

बेरमो : ढोरी माता को कोयला खनिकों की संरक्षिका माना जाता है। उनकी प्रतिमा बेरमो कोयलां

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Oct 2017 09:53 PM (IST)Updated: Fri, 27 Oct 2017 09:53 PM (IST)
खनिकों की संरक्षिका रही ढोरी माता

बेरमो : ढोरी माता को कोयला खनिकों की संरक्षिका माना जाता है। उनकी प्रतिमा बेरमो कोयलांचल अंतर्गत जारंगडीह के ढोरी माता तीर्थालय में स्थापित है, जो मसीही धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है। यही कारण है कि ढोरी माता के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण प्रतिवर्ष अक्टूबर माह के अंतिम शनिवार एवं रविवार को होने वाले वार्षिकोत्सव में देश-विदेश से आकर हजारों श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने जुटते हैं। सीसीएल कामगारों के लिए भी ढोरी माता रक्षा कवच है। यहां इसाईयों के अलावा दूसरे सम्प्रदाय के लोग भी मत्था टेकते हैं।

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ढोरी खदान से निकली थी प्रतिमा :

विगत 12 जून 1956 को एक ¨हदू खनिक रूपा सतनामी को ढोरी खदान से कोयला काटने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी, जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई। वर्ष 1957 के अक्टूबर माह में फादर अलबर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई। फादर बेतरम हेबर्ट लॉट के नेतृत्व में उक्त मूर्ति को गिरजाघर से बाहर लाकर वर्ष 1964 के मई माह में तीर्थालय में स्थापित किया गया।

2006 में मनी थी स्वर्ण जयंती :

वर्ष 1981 में ढोरी माता की मूर्ति मिलने के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती मनायी गई थी। वहीं वर्ष 2006 में स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित किया गया। ढोरी माता की मूर्ति के बारे में पुरातत्वविदों का मत है कि उसकी बनावट भारतीय शैली की नहीं है और यह पुर्तगाली या फ्रांसीसी शैली से बनी है। वर्तमान में ढोरी माता का वार्षिकोत्सव भव्य रूप ले चुका है। प्रतिवर्ष वार्षिकोत्सव स्थानीय लोगों एवं पुलिस प्रशासन के सहयोग से सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न होता है।

28 एवं 29 अक्टूबर को होगा माता वार्षिकोत्सव :

28 अक्टूबर को शोभायात्रा निकाली जाएगी। उसके बाद प्रतिमा दर्शन व सामूहिक प्रार्थना होगी। वहीं 29 अक्टूबर की सुबह समारोही मिस्सा पूजा एवं धर्म सम्मेलन का आयोजन होगा। इसके मुख्य याजक जसपुर धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष इम्मानुएल केरकेट्टा डीडी, हजारीबाग धर्मप्रांत के सेवानिवृत्त धर्माध्यक्ष चार्लस सोरंग एसजे और वर्तमान धर्माध्यक्ष आनंद जोजो डीडी होंगे। यह जानकारी पल्ली पुरोहित माइकल लकड़ा और प्रदीप टोप्पो ने संयुक्त रूप से दी। तीर्थालय के इतिहास पर एक नजर* वर्ष 1965 में रांची धर्मप्रांत के पीयूष केरकेट्टा ने पहली बार ढोरी माता के पास विनती की एवं नोवेना प्रार्थना की रचना की। वर्ष 1969 के अप्रैल माह में प्रशांत महासागर के पश्चिमी सीमा स्थित द्वीप के अजिया शहर से एक धन्यवाद पत्र आया, जिसमें फादर ए फिलिप तारसियुल की ओर से ढोरी माता के बारे में जानकारी दी गई। वर्ष 1971 में डालटेनगंज धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष जार्ज सोपेन ने अपना पहला धर्माध्यक्षीय पवित्र मिस्सा बलिदान ढोरी माता को अर्पित किया था। धर्माध्यक्ष जार्ज सोपेन ने ढोरी माता को धर्मप्रांत की संरक्षिका घोषित कर उनके आदर में तीर्थालय बनवाने की घोषणा की थी। पल्ली पुरोहित फादर आइजक डेमियन के नेतृत्व में वर्ष 1983 में ढोरी माता का भव्य एवं आकर्षक तीर्थालय भवन बनकर तैयार हुआ। इस वर्ष ढोरी माता तीर्थालय को हाइटेक स्वरूप प्रदान करते हुए एक वेबसाइट लांच की की गई, जिसमें ढोरी माता के संबंध में तमाम ऐतिहासिक व अद्यतन जानकारी अपलोड की गई है।


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